दंगों का दंश झेलने वाले मुजफ्फरनगर के सैकड़ों ग्रामीण इस साल दिवाली पर न
तो पटाखे छोड़ेंगे और न ही मोमबत्तियां जलाकर घरों की सजावट करेंगे। बीते
माह भड़की हिंसा के दौरान राज्य सरकार की 'भूमिका' से नाराज कई गावों के
लोग इस साल दिवाली नहीं मनाएंगे।
सिसौली, बुढ़ाना, पुरकाजी और सिखेड़ा क्षेत्र के करीब 15 गांवों के ग्रामीणों ने सितंबर में भड़की दो वर्गो के बीच हिंसा में निर्दोष लोगों की मौत और घटना में राज्य सरकार की कथित एक पक्षीय कार्रवाई से नाराज होकर इस साल दिवाली नहीं मनाने का ऐलान किया है।
सलेमपुर गांव निवासी पूर्व ग्राम प्रधान प्रेम सिंह राणा ने कहा, "आस-पास के करीब पांच गावों की पंचायत करके हमने ये फैसला लिया है कि राज्य सरकार द्वारा सिर्फ समुदाय विशेष को खुश करने के लिए की गई एक पक्षीय कार्रवाई के खिलाफ हम दीपावली नहीं मनाएंगे।"
राणा ने कहा, "किसी भी सरकार की नजर में हर नागरिक एक समान होना चाहिए, लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार जाति और धर्म के चश्मे से देखकर कार्रवाई करती है। हिंसा के बाद एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए हमें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, इसीलिए हमने दिवाली नहीं मनाने का फैसला लिया है।"
सलेमपुर की तरह अन्य गावों के लोगों ने भी पंचायत कर फैसला किया कि वे दिवाली की रात न तो घरों में दीप जलाएंगे, न मोमबत्ती से घर को सजाएंगे और न ही पटाखे छोड़ेंगे। उनकी दिवाली केवल गणेश-लक्ष्मी की पूजा तक सीमित रहेगी।
लखनौती गांव के निवासी प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि अगर कवाल की घटना में राज्य सरकार निष्पक्ष कार्रवाई करती तो दंगे के हालात पैदा ही न होते और निर्दोष लोग मारे नहीं जाते।
शर्मा ने कहा, "हिंसा के बाद अब हमारे समुदाय के सैकड़ों निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। कई गावों के युवक तो दूसरे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं पुलिस उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में पकड़ न ले। राज्य सरकार की एकतरफा कार्रवाई से हम लोग बहुत आहत हैं, ऐसी हालत में हम खुशियां क्या मनाएं।"
याद रहे कि राज्य सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते हुए करीब दर्जनभर गांवों के लोगों ने दशहरे के दिन बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने के बजाय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनट मंत्री आजम खान के पुतले जलाए थे।
विगत 27 अगस्त को जिले के कवाल गांव में एक छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद के तूल पकड़ने के बाद सात सितंबर को जिलेभर में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें 62 लोग मारे गए थे और करीब 50,000 लोग बेघर हो गए थे।
हिंसा के बाद एक निजी समाचार चैनल के स्टिंग आपरेशन में इस तरह की बातें सामने आई थीं कि राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अधिकारियों से कवाल की घटना के दोषियों को पुलिस हिरासत से छोड़ने को कहा, जिसके बाद दूसरे समुदाय के लोगों में अंसतोष पैदा हुआ और हालात बिगड़ने शुरू हो गए।
सिसौली, बुढ़ाना, पुरकाजी और सिखेड़ा क्षेत्र के करीब 15 गांवों के ग्रामीणों ने सितंबर में भड़की दो वर्गो के बीच हिंसा में निर्दोष लोगों की मौत और घटना में राज्य सरकार की कथित एक पक्षीय कार्रवाई से नाराज होकर इस साल दिवाली नहीं मनाने का ऐलान किया है।
सलेमपुर गांव निवासी पूर्व ग्राम प्रधान प्रेम सिंह राणा ने कहा, "आस-पास के करीब पांच गावों की पंचायत करके हमने ये फैसला लिया है कि राज्य सरकार द्वारा सिर्फ समुदाय विशेष को खुश करने के लिए की गई एक पक्षीय कार्रवाई के खिलाफ हम दीपावली नहीं मनाएंगे।"
राणा ने कहा, "किसी भी सरकार की नजर में हर नागरिक एक समान होना चाहिए, लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार जाति और धर्म के चश्मे से देखकर कार्रवाई करती है। हिंसा के बाद एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए हमें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, इसीलिए हमने दिवाली नहीं मनाने का फैसला लिया है।"
सलेमपुर की तरह अन्य गावों के लोगों ने भी पंचायत कर फैसला किया कि वे दिवाली की रात न तो घरों में दीप जलाएंगे, न मोमबत्ती से घर को सजाएंगे और न ही पटाखे छोड़ेंगे। उनकी दिवाली केवल गणेश-लक्ष्मी की पूजा तक सीमित रहेगी।
लखनौती गांव के निवासी प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि अगर कवाल की घटना में राज्य सरकार निष्पक्ष कार्रवाई करती तो दंगे के हालात पैदा ही न होते और निर्दोष लोग मारे नहीं जाते।
शर्मा ने कहा, "हिंसा के बाद अब हमारे समुदाय के सैकड़ों निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। कई गावों के युवक तो दूसरे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं पुलिस उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में पकड़ न ले। राज्य सरकार की एकतरफा कार्रवाई से हम लोग बहुत आहत हैं, ऐसी हालत में हम खुशियां क्या मनाएं।"
याद रहे कि राज्य सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते हुए करीब दर्जनभर गांवों के लोगों ने दशहरे के दिन बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने के बजाय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनट मंत्री आजम खान के पुतले जलाए थे।
विगत 27 अगस्त को जिले के कवाल गांव में एक छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद के तूल पकड़ने के बाद सात सितंबर को जिलेभर में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें 62 लोग मारे गए थे और करीब 50,000 लोग बेघर हो गए थे।
हिंसा के बाद एक निजी समाचार चैनल के स्टिंग आपरेशन में इस तरह की बातें सामने आई थीं कि राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अधिकारियों से कवाल की घटना के दोषियों को पुलिस हिरासत से छोड़ने को कहा, जिसके बाद दूसरे समुदाय के लोगों में अंसतोष पैदा हुआ और हालात बिगड़ने शुरू हो गए।
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