मध्य प्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ हादसे ने हर किसी को हिलाकर रख दिया
है। अगर कोई नहीं हिला है तो वह है सरकार और प्रशासनिक अमला। यही कारण है
कि 111 लोगों की मौत हो जाने के बाद भी सरकारी मशीनरी को बचाने के लिए सभी
लामबंद हो गए हैं। उनका स्वर एक है और वे हादसे के लिए पुल टूटने की अफवाह
को ही मूल वजह बताने में तुले हुए हैं।
रतनगढ़ के देवी मंदिर में हर साल हजारों लोग नवरात्रि, दीपावली और भाईदूज पर पहुंचते हैं। रविवार को नवमी थी और दतिया सहित उत्तर प्रदेश के नजदीकी जिलों के श्रद्धालु भी मंदिर पहुंचे थे। भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाए, इसका कोई इंतजाम नहीं था। मंदिर तक जाने के लिए सिंध नदी पर बना पुल संकरा है।
इस पुल पर से एक साथ हजारों लोगों का रेला गुजर रहा था, मगर उन्हें नियंत्रित करने के लिए गिनती के पुलिस वाले तैनात किए गए थे। कोई भी बड़ा अफसर मौके पर नहीं था। पुलिस अधीक्षक चंद्रशेखर सोलंकी तो कई घंटे बाद मौके पर पहुंचे। भगदड़ में 111 लोगों की मौत हो चुकी है, मगर अब तक किसी पर जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू है, सरकार इसका हवाला देकर अपने को बचाने का प्रयास कर सकती है, मगर सरकार के प्रवक्ता ने हादसे के कुछ घंटे बाद ही कह दिया कि हादसा पुल टूटने की अफवाह के चलते हुआ। जबकि पीड़ितों का साफ कहना है कि पुलिस ने जाम लगने पर लाठीचार्ज किया, जिससे भगदड़ मची।
राज्य के मुख्य सचिव एंटोनी डिसा भी लगभग वही कह रहे हैं, जो सरकार के प्रवक्ता ने कहा है। उनका कहना है कि ट्रैक्टर रेलिंग से टकराया और पुल का कुछ हिस्सा टूटा, फिर अफवाह फैली कि पुल टूट गया और भगदड़ मच गई। साथ ही वह कहते हैं कि इस मामले की जांच जल्द होगी और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। मगर पुलिस अधिकारी रेलिंग टूटने की बात से इंकार कर रहे हैं। हादसे के एक दिन बाद भी सरकार और मुख्य सचिव की ओर से न तो किसी पर जिम्मेदारी तय की गई है, और न ही किसी पर कार्रवाई की गई है। मामले की न्यायिक जांच के आदेश देकर मामले को ठंडे बस्ते में डालने का काम जरूर किया गया है।
रतनगढ़ में वर्ष 2006 में भी हादसा हुआ था। तब 47 लोगों की मौत हुई थी। तब सरकार ने प्रशासनिक अफसरों को दतिया से हटाने के साथ ही उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस.के. पांडे की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया था। आयोग ने मार्च 2007 में रपट सरकार को सौंप दी। लेकिन सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया। उसके बाद 2010 में रपट सार्वजनिक करने के लिए आरटीआई दायर की गई। तब से अबतक विपक्षी दल व सामाजिक कार्यकर्ता रपट सार्वजनिक करने की लगातार मांग कर रहे हैं, मगर सरकार ने आजमक रपट सार्वजनिक नहीं की है।
वर्ष 2006 में हुए हादसे के बाद सरकार ने चार अफसरों पर कार्रवाई की थी मगर इस बार 111 लोगों की मौत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह सरकार और प्रशासन की हठधर्मिता को जाहिर करता है।
रतनगढ़ के देवी मंदिर में हर साल हजारों लोग नवरात्रि, दीपावली और भाईदूज पर पहुंचते हैं। रविवार को नवमी थी और दतिया सहित उत्तर प्रदेश के नजदीकी जिलों के श्रद्धालु भी मंदिर पहुंचे थे। भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाए, इसका कोई इंतजाम नहीं था। मंदिर तक जाने के लिए सिंध नदी पर बना पुल संकरा है।
इस पुल पर से एक साथ हजारों लोगों का रेला गुजर रहा था, मगर उन्हें नियंत्रित करने के लिए गिनती के पुलिस वाले तैनात किए गए थे। कोई भी बड़ा अफसर मौके पर नहीं था। पुलिस अधीक्षक चंद्रशेखर सोलंकी तो कई घंटे बाद मौके पर पहुंचे। भगदड़ में 111 लोगों की मौत हो चुकी है, मगर अब तक किसी पर जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू है, सरकार इसका हवाला देकर अपने को बचाने का प्रयास कर सकती है, मगर सरकार के प्रवक्ता ने हादसे के कुछ घंटे बाद ही कह दिया कि हादसा पुल टूटने की अफवाह के चलते हुआ। जबकि पीड़ितों का साफ कहना है कि पुलिस ने जाम लगने पर लाठीचार्ज किया, जिससे भगदड़ मची।
राज्य के मुख्य सचिव एंटोनी डिसा भी लगभग वही कह रहे हैं, जो सरकार के प्रवक्ता ने कहा है। उनका कहना है कि ट्रैक्टर रेलिंग से टकराया और पुल का कुछ हिस्सा टूटा, फिर अफवाह फैली कि पुल टूट गया और भगदड़ मच गई। साथ ही वह कहते हैं कि इस मामले की जांच जल्द होगी और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। मगर पुलिस अधिकारी रेलिंग टूटने की बात से इंकार कर रहे हैं। हादसे के एक दिन बाद भी सरकार और मुख्य सचिव की ओर से न तो किसी पर जिम्मेदारी तय की गई है, और न ही किसी पर कार्रवाई की गई है। मामले की न्यायिक जांच के आदेश देकर मामले को ठंडे बस्ते में डालने का काम जरूर किया गया है।
रतनगढ़ में वर्ष 2006 में भी हादसा हुआ था। तब 47 लोगों की मौत हुई थी। तब सरकार ने प्रशासनिक अफसरों को दतिया से हटाने के साथ ही उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस.के. पांडे की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया था। आयोग ने मार्च 2007 में रपट सरकार को सौंप दी। लेकिन सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया। उसके बाद 2010 में रपट सार्वजनिक करने के लिए आरटीआई दायर की गई। तब से अबतक विपक्षी दल व सामाजिक कार्यकर्ता रपट सार्वजनिक करने की लगातार मांग कर रहे हैं, मगर सरकार ने आजमक रपट सार्वजनिक नहीं की है।
वर्ष 2006 में हुए हादसे के बाद सरकार ने चार अफसरों पर कार्रवाई की थी मगर इस बार 111 लोगों की मौत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह सरकार और प्रशासन की हठधर्मिता को जाहिर करता है।
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