अपने मंदिरों और स्थापत्य कला के लिए लिए दुनिया में मशहूर खजुराहो की छटा देखते ही बनती है। बड़े-बड़े देवालयों पर पत्थरों पर उकेरे गए जिंदगी के हर रंग अद्भुत अनुभव देतें हैं। चंदेल तथा राजपूत कुलों द्वारा 950 से 1100 ई. के बीच निर्मित यह मंदिर अनुपम हैं, जो हिंदू वास्तुकला और मूर्तिकला के कुछ सबसे उत्तम नमूनों का प्रतिनिधित्व करते है।
मंदिरों की उत्कृष्ट वास्तुकला, उनकी भित्तियों पर जड़ी सर्वोत्तम मूर्तिकला तथा सुव्यस्थित शिल्पकला के कारण इन भव्य मंदिरों का नाम आज यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में भी दर्ज है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर बनी कामक्रीणारत मूर्तियों के लिए भी जाना जाता है। इन मंदिरों का शिल्प हमें अपने उदार अतीत की झाँकी दिखाते हैं। काम, धर्म, मोक्ष के जीवन दर्शन को दर्शाते हैं ये मन्दिर। जीवन के हर पक्ष को मूर्तिकारों ने बड़े सजीव तरीके से पत्थरों पर उतरा है।
यहाँ के मंदिरों कि खास बात ये है कि भौगोलिक स्थिति के आधार पर मंदिरों को पश्चिमी, पूर्वी व दक्षिणी समूहों में बांटा गया है। इसमें पश्चिमी मंदिर समूह में यहां के महत्वपूर्ण मंदिर माने जातें हैं। खजुराहों का सबसे प्राचीन मंदिर मतंगेश्वर मंदिर है। जिसे राजा हर्षवर्मन ने 920 ई में बनवाया था। इन मंदिरों में यही एकमात्र मंदिर है, जिसमें आज भी पूजा अर्चना होती है। पिरामिड शैली में बने इस एक ही शिखर वाले मंदिर की शिल्प रचना साधारण है। गर्भगृह में एक मीटर व्यास का ढाई मीटर ऊंचा शिवलिंग है। मतंगेश्वर मंदिर के सामने ही मंदिरों का मुख्य परिसर है। जिनकी देखरेख पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है। लक्ष्मण मंदिर पंचायतन शैली में बना है। इसके चारों कोनों पर एक-एक उप मंदिर है। मुख्य द्वार पर रथ पर सवार सूर्यदेव की प्रतिमा बनी है। बाहरी दीवारों पर मूर्तिकला का भव्य प्रदर्शन है। अधिकतर मूर्तियां उस काल के जीवन और परपंराओं को दर्शाती हैं, जिनमें नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार जैसे दृश्यों के बीच विष्णु, शिव, अग्निदेव आदि के साथ ही गंधर्व, नायिका, देवदासी, तांत्रिक, पुरोहित आदि की मूतियां हैं।
इसके अलावा कन्दारिया महादेव मंदिर यह खजुराहो के मन्दिरों में सबसे बड़ा मंदिर है। इसकी ऊँचाई लगभग 31 मीटर है। यह भगवन शिव का मन्दिर है, इसके गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर के मुख्य मण्डप में देवी-देवताओं और यक्ष-यक्षिणियों की प्रेम लिप्त तथा अन्य प्रकार की मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां इतनी बारीकी से गढी ग़ईं हैं की इनकी कलाकारी देखते बनती है। इनके आभूषणों का एक-एक मोती अलग से दिखाई देता है और वस्त्रों की सलवटें तक दिखतीं है। चित्रगुप्त मंदिर के नाम से प्रसिद्ध सूर्य देवता का मंदिर है इसलिए यह मन्दिर पूर्वमुखी है। इस मंदिर के गर्भगृह में पाँच फीट ऊँचा रथ पत्थरों की शिलाओं पर बहुत सुन्दरता और बारीकी के साथ उकेरा गया है। इस मंदिर की दीवारों पर उकेरे दृश्य चन्देल साम्राज्य की भव्य जीवन शैली की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। मसलन शाही सवारी, शिकार, समूह नृत्यों के दृश्य। यहाँ पार्श्वनाथ मन्दिर, दुलादेव मन्दिर, चतुरभुज मन्दिर आदि हैं।
चंदेल इतिहास की उत्कृष्ट अवधि के दौरान निर्मित यह मंदिर, पूरी तरह से बलुआ पत्थर में बने हुए है, जो केन नदी के पूर्वी तट की पन्ना खदानों से लाया गया था। चुने का उपयोग मालूम न होने के कारण पत्थर की सिल्ली को एक साथ जोड़ा जाता था। खजुराहो के सभी मंदिर एक सजातीय शैली और एक विशिष्ट वास्तुकला के साथ शैव, वैष्णव और जैन संप्रदायों से संबंधित हैं।
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