लेह: प्राकृतिक खूबसूरती का अद्भुत नजारा

जम्मू और कश्मीर के उत्तर में हिमालय के हसीन वादियों की गोद में बसा 'लेह' बेहद सुंदर और आकर्षक स्थान है। सिंधु नदी के किनारे और 11000 फीट की ऊंचाई पर बसा लेह पर्यटकों को जमीं पर स्वर्ग का एहसास दिलाता है। धरती पर रहकर स्वर्ग के दर्शन करने हों तो लेह से बेहतर जगह शायद ही दूसरी हो। सुंदरता का अनोखा नजारा प्रस्तुत करता लेह रुई नुमा बादलों से ढ़का होता है। लगता है की मानो आसमान ने लेह को कम्बल से ढ़क् दिया हो। गगन चुंबी पर्वतों पर ट्रैकिंग का यहां अपना अलग ही मजा है। लेह में पर्वत और नदियों के अलावा भी कई ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। यहां बड़ी संख्या में खूबसूरत बौद्ध मठ हैं, जिनमें बहुत से बौद्ध भिक्षु रहतें हैं। 

सिंधु नदी के किनारे बसे इस प्राचीन शहर आधुनिकता को अपने अंदर समाहित कर चूका है। यहाँ हमेशा सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता है। लगता है जैसे ये सैलानी यहीं के वासिंदे हों। लेह का बाजार बहुत चौडा है| कहा जता है कि आजादी से पहले अंग्रेज यहां पोलो खेला करते थे। यह एक छोटी सी शांति वाली जगह है। यहाँ लोग प्रकृति गोद में सुखद अनुभूति करतें हैं। लेह में सैलानी धूमने या कुछ विशेष देखने का उद्देश्य ले कर नहीं आते क्योंकि यह कोई बडा शहर नही है, यहां तो सैलानी जिदगी के कुछ दिन प्रक़ति की गोद में बिताने आतें हैं, शांति की तलाश में आतें हैं। 17वीं शताब्दी में बना लेह महल और बैद्व मठ दर्शनीय है। वैसे लेह का मुख्यत बाजार देखने लायक है। जहां सैलानियों को कशमीरी, लद्दाखी और तिब्बती कलाओं वाली ढ़ेरों चीजें सजी देखने को मिलती है। 

पहाडों से बर्फ खिसकने के कारण मई, जून में लद्दाख के रास्ते खतरनाक हो जाते हैं। जुलाई से अक्‍टूबर तक ही इस इलाके में यात्रा करना उपयुक्त होता है। यहां बारि‍श नही होती लेकिन ठंड काफी होती है। हां जुलाई और अगस्त में लेह नगर में ठंड नहीं होती। यहाँ स्थित कुछ स्थल अद्भुत हैं। जिन्हे सैलानी देखना पसंद करतें हैं, जिनमें शेय महल, पहाड़ी की चोटी को सुशोभित करता लद्दाख के प्रथम राजा हेचेन स्पेलगीगोन का यह महल। इस महल के अंदर एक मठ भी है। कॉपर गिल्ट से निर्मित महात्मा बुद्ध की तीन मंजिला मूर्ति यहां स्थापित है।

स्तोक महल यह महल लेह से 17 किमी दूर स्थित है। स्तोक महल में शाही परिवार के लोग रहते हैं। यहां एक आकर्षक संग्रहालय भी है जिसमें यहां के राजा-रानी की काफी दिलचस्प वस्तुएं रखी हुईं हैं।

थिकसी मठ यह मठ लेह के सभी मठों से आकर्षक और खूबसूरत है। यह मठ गेलुस्‍पा वर्ग से संबंधित है। वर्तमान में यहां लगभग 80 बौद्ध सन्यासी रहते हैं। अक्टूबर-नवम्बर के बीच यहां थिकसी उत्सव का आयोजन किया जाता है।

लेह महल राजा नामग्याल द्वारा बनवाया गया नौ मंजिला यह खूबसूरत महल 17 वीं शताब्दी के धरोहरों में से एक है। यह महल तिब्बती कारीगरी का बेहतरीन नमूना है। इस महल से जुड़े कई मंदिर भी हैं जो आमतौर पर बंद रहते हैं। इन मंदिरों को पुजारी सुबह और शाम के वक्त ही पूजा करने के लिए खोलता है। जामी मस्जिद-लेह बाजार के समीप 17 वीं शताब्दी में निर्मित जामी मस्जिद पर्यटकों को खूब लुभाती है। हरे और सफेद रंग की यह मस्जिद पर्यटकों के बीच आर्कषण का केन्‍द्र है।

हेमिस मठ पश्चिमी लेह से 53 किमी दूर यह विशाल और प्रसिद्ध मठ दुपका वर्ग से संबंधित है। जून में यहां हेमिस पर्व का आयोजन किया जाता है। यह पर्व दूर-दूर से बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।

शान्ति स्तूप लेह बाजार से 3 किमी दूर चंगस्पा गांव में स्थित सफेद पत्थर से निर्मित शान्ति स्तूप है। इसका उदघाटन 1983 में शान्ति पैगोड़ा दलाई लामा द्वारा किया गया था। इसके किनारे गिल्ट पेनल से सुसज्जित हैं जो महात्मा बुद्ध के जीवन को दर्शाते हैं।

लेह किला यह किला जोरावर सिंह ने बनवाया था। किले में तीन मंदिर है। यह किला अब सेना के कैम्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

बाजार, लेह का बाजार काफी आकर्षक होता है। लेह के बाजार की सैर अपने आप में अनोखा अनुभव है। यहां पर्यटक स्थानीय लोगों की दुकानों को बड़ी उत्सुकता के साथ देखते हैं। बाजार का सबसे आकर्षक नजारा पास के गांव की महिलाएं होती हैं,जो लाइन से बैठकर फल-सब्जियां बेचती हैं। 

ख़रीददारी के लिए लेह में आकर्षक बाजारों के अलावा डिस्ट्रिक हैन्डीकाफ्ट सेन्टर अच्छा विकल्प है। यहां लद्दाख की संस्कृति और परंपरा से जुड़ी चीजें खरीदी जा सकती हैं। यहां मिलने वाले सामानों में पशमीना शॉल सबसे अधिक लोकप्रिय है। यह शॉल बेहद गर्म और नर्म होती है। यहाँ के बाजारों कि दूसरा मुख्य सामान तिब्बती गलीचे होतें हैं। कारीगर बहुत ही खूबसूरत गलीचे बनातें हैं। यहां की थांग्का पेंटिंग पर्यटकों को खूब पसंद आती है। लेह से लकड़ी के सामान के साथ अन्य बहुत सी वस्‍तुएं भी खरीदी जा सकती हैं।

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