मुजफ्फरनगर हिंसा: मुआवजा बना गले की हड्डी

मुजफ्फरनगर हिंसा के कारण शिविरों में रहने को मजबूर हुए लोग अब पांच लाख रुपये मुआवजे के बदले हलफनामा मांगे जाने से असमंजस में पड़ गए हैं। मुआवजा उनके गले की ऐसी हड्डी बन गई है जिसे वे न निगल पा रहे हैं न निकाल पा रहे हैं। वे निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार की यह मदद स्वीकार की जाए या नहीं। हालांकि, इस बीच कुछ पीड़ितों ने हलफनामा भरकर मुआवजा स्वीकार भी कर लिया है।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीते दिनों घोषणा की थी कि मुजफ्फरनगर हिंसा के जो पीड़ित फिलहाल राहत शिविरों में रह रहे हैं और भय या अन्य कारणों से अपने गांव-घर नहीं लौटना चाहते हैं, उन्हें पांच लाख रुपये आर्थिक मदद दी जाएगी। अब उस मुआवजे के वितरण का समय आया तो मुजफ्फरनगर जिला प्रशासन मुआवजा लेने वालों से हलफनामा जमा करवा रहा है।

मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने कहा कि शासन ने हिंसा भड़कने के करीब पौने दो महीने बाद घोषणा की थी कि जिन लोगों के गांव में हिंसा हुई और वे गांव वापस नहीं लौटना चाहते हैं, वे शासन से पांच लाख रुपये का मुआवजा लेकर कहीं और बस सकते हैं। शर्मा ने कहा कि जो लोग मुआवजा ले रहे हैं, उनसे हलफनामा भरवाया जा रहा है कि वे मुआवजा लेने के बाद अपने गांव वापस नहीं लौटेंगे। सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं करेंगे। किसी सहायता शिविर में नहीं रहेंगे। शासन से प्राप्त पांच लाख रुपये का उपयोग जमीन और घर खरीदने में करेंगे।

जिलाधिकारी ने कहा कि यह लोगों की स्वेच्छा पर है कि हलफनामा भरें और पांच लाख रुपये लें। उल्लेखनीय है कि राहत शिविरों में लगभग 1800 परिवार अभी भी रह रहे हैं। ये लोग असमंजस में पड़ गए हैं कि यह मुआवजा उनके लिए कहीं घाटे का सौदा न बन जाए। अबतक करीब 100 परिवारों ने ही मुआवजा प्राप्त किया है।

बुढ़ाना स्थित राहत शिविर में रह रहे मोहम्मद असलम ने कहा कि राज्य सरकार ने हलफनामे में इस तरह की शर्ते लगाई है कि समझ नहीं आ रहा कि सरकार आर्थिक मदद दे रही है या जख्मों पर नमक छिड़क रही है।

उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार मुआवजा लेने के मुद्दे पर असमंजस में पड़ गए हैं। ज्यादातर लोग इसे घाटे का सौदा मान रहे हैं। शाहपुर निवासी इश्तियाक ने कहा कि राज्य सरकार हमें मुआवजे का लालीपाप देकर राहत शिविरों से निकालना चाहती है। सरकार की मंशा है कि राहत शिविर बंद कर यह दिखाया जाए कि मुजफ्फरनगर में सब कुछ सामान्य है। जबकि सच में ऐसा नहीं है।

कैराना निवासी अफजल ने कहा कि पांच लाख रुपये मुआवजे में राज्य सरकार की शर्त है कि मुआवजा लेने वाले अपने गांव नहीं लौट सकते। भला कोई पांच लाख रुपये के बदले अपना पुस्तैनी घर कैसे छोड़ सकता है। फिलहाल माहौल तनावपूर्ण होने के चलते हम घर लौटने से जरूर डर रहे हैं, लेकिन हमेशा हालात ऐसे ही थोड़े रहेंगे।

इस बीच जिन पीड़ितों ने हलफनामा भरकर मुआवजा प्राप्त कर लिया है, वे भी इसे अपनी मजबूरी बता रहे हैं। मुआवजा प्राप्त कर चुके कुटबा गांव निवासी 45 वर्षीय मोहम्मद जफर ने कहा, "हमारे पास शर्ते स्वीकार कर हलफनामा भरने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि दंगे में हमारा सब कुछ तबाह हो गया। कम से कम सरकार से पांच लाख रुपये की मदद मिलने के बाद हम कहीं छोटा-सा आशियाना बनाकर सुकून की जिंदगी तो जी सकेंगे।"

उल्लेखनीय है कि मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में 7 सितंबर को दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा में करीब 50 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए थे। सैकड़ों परिवार घर छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हो गए थे। 

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