
राम गांव (मजरे काल्हीगांव) की प्रधान हाजिरा बानो हैं। उन्होंने बताया कि सुरैया का मकान उनके घर के बगल में ही है, जो अब खंडहर में तब्दील हो गया है। सुरैया का बचपन यहीं बीता था। वह यहीं खेला करती थीं। नन्ही सुरैया की आवाज इतनी मीठी थी कि लोग उसे घेर लेते और कुछ सुनाने को कहते। गांव के शब्बीर अली के बेटे का कहना है कि सुरैया के पिता भगवान दास थे, मगर उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। सत्रह वर्ष की आयु में ही वह किसी के साथ बम्बई चली गईं और फिल्मजगत में छा गई। फिर देश का बंटवारा हो गया और आजादी के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में बस गया। मगर राम गांव के लोगों को यकीन था कि एक दिन सुरैया अपने गांव जरूर आएंगी।
लोग सुरैया का इंतजार करते रहे और उनके सम्मान में किसी ने उस मकान पर कब्जा नहीं किया। लेकिन वक्त की मार और सरकारी अवहेलना का शिकार सुरैया का वह पैतृक मकान अब खंडहर हो चला है। उस मकान के नजदीक जाते ही गांव के बुजुर्गो की आखों से आंसू निकल आते हैं। वे सोचते हैं, काश! देश का बंटवारा न हुआ होता या सुरैया का परिवार पाकिस्तान जाने की नहीं सोचता। शब्बीर अली के परिवार वालों का कहना है कि गांव वालों को इस बात का मलाल भी है कि सुरैया की स्मृतियां संजोए रखने के लिए उनके मकान को सुरक्षित रखने के उपाय कोई क्यों नहीं करता। शासन-प्रशासन इस धरोहर की सुध क्यों नहीं लेता। यह गांव तो पर्यटन स्थल बन सकता है।
ग्राम प्रधान हाजिरा बानो ने गांव में सुरैया के नाम से एक स्कूल खोलने की इच्छा भी जताई। अब तो यह समय ही बताएगा कि हाजिरा की हसरत पूरी हो पाती है या नहीं।
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जो च;ए जाते हैं उनकी सुध कौन लेता है ... ये तेज़ी से चलता हुआ ज़माना है अपने अलावा कुछ नहीं सोचता ...
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