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महाभारत के आदि पर्व में हिडिंबा का प्रसंग आता है। कुटिल कणिक की कूटनीति से प्रेरित हो कर धृतराष्ट्र व दुर्योधन ने पाण्डवों को वारणावत नाम स्थान में भेज दिया। यहां उन्हें जीवित जला देने की योजना बनाई गई थी। पाण्डवों के रहने के लिए पूरा महल लाख का बनाया गया था जो जरा सी आग लगते ही जल उठे। पाण्डवों का इस षडयन्त्र का पता चल गया और उन्होंने रात को भीतर ही भीतर एक सुरंग खोद डाली। रात्रि को भवन में आग लगने पर वे सुरंग के रास्ते भाग निकले। इस सुरंग के रास्ते वे निकल कर गंगातट पर आ गए। नाव से गंगा को पार किया और दक्षिण दिशा की ओर बढ़े। बहुत थके होने से वे कुछ दूर चलने पर एक घने जंगल में ठहर गए। सभी थके मांदे थे। उन्हें प्यास भी लगी थी। महाबली भीम पानी लेने गए। जब वे पानी ले कर वापिस आए तो क्या देखते हैं कि माता कुंती सहित सभी भार्इ थक कर सो चुके हैं। भीम इस तरह अपनी माता और भार्इयों को जंगल में जमीन पर सोते देख बहुत दुखी हुए। उस जंगल में हिंडिब नाम का राक्षस अपनी बहन हिंडिबा सहित रहता था।
हिडिंब ने अपनी बहन हिंडिबा से वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा परन्तु वहां हिंडिबा ने पाँचों पाण्डवों सहित उनकी माता कुन्ति को देखा। इस राक्षसी का भीम को देखते ही उससे प्रेम हो गया इस कारण इसने उन सबको नहीं मारा जो हिडिंब को बहुत बुरा लगा। फिर क्रोधित होकर हिडिंब ने पाण्डवों पर हमला किया, इस युद्ध में भीम ने इसे मार डाला और फिर वहाँ जंगल में कुंती की आज्ञा से हिंडिबा एवं भीम दोनों का विवाह हुआ। इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ।
पाण्डुपुत्र भीम से विवाह करने के बाद हिडिंबा राक्षसी नहीं रही, मानवी बन गई। और कालांतर में मानवी से देवी बन गई। हिडिम्बा का मूल स्थान चाहे कोर्इ भी रहा हो, जिस स्थान पर उसका दैवीकरण हुआ, वह मनाली ही है। मनाली में देवी हिडिंबा का मंदिर बहुत भव्य और कला की दृषिट से बहुत उतकृष्ठ है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है जिसके नीचे देवी का स्थान माना जाता है। चटटान को स्थानीय बोली में 'ढूंग कहते हैं इसलिए देवी को 'ढूंगरी देवी कहा जाता है। देवी को ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है।
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