दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लगातार तीन कार्यकाल तक काबिज रहने वाली और कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अपने पहले ही चुनाव में पराजित करने वाले अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक सनसनी माना जाए तो अतिशयोक्ति नहीं। केजरीवाल की जीत का डंका सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई देने वाला है।
आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले केजरीवाल (45) ने न केवल दो बड़ी राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुकाबले महज एक वर्ष पुरानी अपनी पार्टी को खड़ा कर लिया, बल्कि एक ऐसे शख्स के रूप में खुद को स्थापित कर लिया जिसे आम आदमी के चेहरे रूप में पहचाना जाने लगा है।
भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाले मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के वर्ष 2011 के आंदोलन के दौरान निकटवर्ती और प्रवक्ता की भूमिका में रहे केजरीवाल ने बाद में हजारे के विरोध के बावजूद अपनी पार्टी खड़ी करने का फैसला लिया और अपनी राह चले भी।
केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया है। दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी।
एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरा रहे।
आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले केजरीवाल (45) ने न केवल दो बड़ी राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुकाबले महज एक वर्ष पुरानी अपनी पार्टी को खड़ा कर लिया, बल्कि एक ऐसे शख्स के रूप में खुद को स्थापित कर लिया जिसे आम आदमी के चेहरे रूप में पहचाना जाने लगा है।
भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाले मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के वर्ष 2011 के आंदोलन के दौरान निकटवर्ती और प्रवक्ता की भूमिका में रहे केजरीवाल ने बाद में हजारे के विरोध के बावजूद अपनी पार्टी खड़ी करने का फैसला लिया और अपनी राह चले भी।
केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया है। दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी।
एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरा रहे।
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