मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के जैत गांव के एक सामान्य किसान परिवार में
जन्मे शिवराज सिंह चौहान ने क्षमता और राजनीतिक कौशल के बल पर अपने नेतृत्व
में लगातार दूसरी जीत दिलाकर पार्टी की जीत की हैट्रिक बनाई है।
चौहान ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से पांच बार चुनाव लड़ा और हर बार जीत उनके खाते में आई। वर्ष 2005 में उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। तब से लेकर वे आज तक इस पद पर हैं। पार्टी ने वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव उमा भारती के नेतृत्व में जीता था तो वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव चौहान की अगुवाई में जीते गए हैं।
चौहान के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि उन्होंने छात्र जीवन में ही राजनीति का ककहरा सीखना शुरू कर दिया था। वर्ष 1975 में वे भोपाल के एक विद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। देश में 1975 में आपातकाल लागू होने पर वे भूमिगत रहकर सक्रिय रहे और बाद में एक वर्ष तक जेल में रहे।
चौहान वर्ष 1977 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक बने और आगे चलकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। उसके बाद उनका नाता भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़ा। इसके वे अनेक पदों पर रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष बने। उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1990-91 में बुदनी से लड़ा और जीते। पार्टी के निर्देश पर 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ा और लगातार पांच बार विदिशा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सांसद के तौर पर चौहान कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे।
पार्टी ने चौहान की क्षमता और राजनीतिक समझ के मद्देनजर उन्हें भाजयुमो का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और वे 2000 से 2003 तक इस पद पर रहे। भाजपा ने 2005 में उन्हें भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। उसके बाद बदले राजनीतिक हालातों ने चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने 29 नवंबर 2005 को इस पद की जिम्मेदारी संभाली। चौहान ने बुदनी से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीते।
चौहान राज्य में गैर भाजपा शासित सरकार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें राज्य में यह जिम्मेदारी संभाले आठ वर्ष से ज्यादा वक्त बीत गया है। इतना ही नहीं पार्टी ने एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर चुनाव लड़ा है, इस चुनाव में भाजपा को जीत भी मिली है।
भाजपा के भीतर और बाहर चौहान के प्रशंसकों की कमी नहीं हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर सुषमा स्वराज तक उनके कायल हैं। यही कारण है कि ये नेता गाहे-बगाहे पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोंदी से भी उनकी तुलना करने से नहीं चूकते हैं। कांग्रेस भी चाहकर सीधे तौर पर चौहान पर हमला करने का मौका आसानी से नहीं ढूंढ पाती है, यही कारण है कि उनके परिजनों या आसपास रहने वालों के जरिए उन पर निशाना साधती नजर आती है।
चौहान ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से पांच बार चुनाव लड़ा और हर बार जीत उनके खाते में आई। वर्ष 2005 में उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। तब से लेकर वे आज तक इस पद पर हैं। पार्टी ने वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव उमा भारती के नेतृत्व में जीता था तो वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव चौहान की अगुवाई में जीते गए हैं।
चौहान के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि उन्होंने छात्र जीवन में ही राजनीति का ककहरा सीखना शुरू कर दिया था। वर्ष 1975 में वे भोपाल के एक विद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। देश में 1975 में आपातकाल लागू होने पर वे भूमिगत रहकर सक्रिय रहे और बाद में एक वर्ष तक जेल में रहे।
चौहान वर्ष 1977 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक बने और आगे चलकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। उसके बाद उनका नाता भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़ा। इसके वे अनेक पदों पर रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष बने। उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1990-91 में बुदनी से लड़ा और जीते। पार्टी के निर्देश पर 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ा और लगातार पांच बार विदिशा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सांसद के तौर पर चौहान कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे।
पार्टी ने चौहान की क्षमता और राजनीतिक समझ के मद्देनजर उन्हें भाजयुमो का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और वे 2000 से 2003 तक इस पद पर रहे। भाजपा ने 2005 में उन्हें भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। उसके बाद बदले राजनीतिक हालातों ने चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने 29 नवंबर 2005 को इस पद की जिम्मेदारी संभाली। चौहान ने बुदनी से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीते।
चौहान राज्य में गैर भाजपा शासित सरकार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें राज्य में यह जिम्मेदारी संभाले आठ वर्ष से ज्यादा वक्त बीत गया है। इतना ही नहीं पार्टी ने एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर चुनाव लड़ा है, इस चुनाव में भाजपा को जीत भी मिली है।
भाजपा के भीतर और बाहर चौहान के प्रशंसकों की कमी नहीं हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर सुषमा स्वराज तक उनके कायल हैं। यही कारण है कि ये नेता गाहे-बगाहे पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोंदी से भी उनकी तुलना करने से नहीं चूकते हैं। कांग्रेस भी चाहकर सीधे तौर पर चौहान पर हमला करने का मौका आसानी से नहीं ढूंढ पाती है, यही कारण है कि उनके परिजनों या आसपास रहने वालों के जरिए उन पर निशाना साधती नजर आती है।
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