'गया का तिलकुट' बिना मकर संक्रांति अधूरी

मकर संक्रांति के दिन लोगों के भोजन में आम तौर पर चूड़ा-दही और तिलकुट शामिल होता है और तिलकुट की बात हो रही हो और उसमें गया की तिलकुट की चर्चा न हो, यह तो संभव नहीं। गया का तिलकुट पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी काफी पसंद किया जाता है। मकर संक्रांति यानी 14 जनवरी को लेकर बिहार की गलियों से लेकर सड़कों तक में तिलकुट की दूकानें सज गई हैं। गया की तिलकुट बिहार और झारखंड में ही नहीं पूरे देश में भी प्रसिद्ध है।

मकर संक्रांति के एक महीने पहले से ही बिहार के गया की सड़कों पर तिलकुट की सोंधी महक और तिल कूटने की 'धम-धम' आवाज लोगों को मकरसंक्रांति की याद दिला देती है। गया के तिलकुट के स्वाद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बोधगया में जनवरी महीने में आने वाला कोई भी पर्यटक गया का तिलकुट ले जाना नहीं भूलता, चाहे ये पर्यटक देश के हों या विदेशी। बोधगया में पिछले महीने काग्यू मोनलम पूजा में आए विदेशी बौद्ध धर्मावलंबी भी गया का तिलकुट खरीद कर अपने-अपने घर ले गए।

मकर संक्रांति के एक से डेढ़ महीने पूर्व से यहां तरह-तरह के तिलकुट बनने लगते हैं। गया में हाथ से कूटे जाने वाले तिलकुट न केवल खास्ता होते हैं, बल्कि यह कई दिनों तक खास्ता रहते हैं। गया के इस सांस्कृतिक मिष्ठान्न की अपनी अलग पहचान है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन (14 जनवरी) तिल की वस्तु दान देने और खाने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसी मान्यता को लेकर धर्म नगरी गया में करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तिलकुट बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ था।

गया के प्रसिद्ध तिलकुट प्रतिष्ठान श्रीराम भंडार के कारीगर महावीर आईएएनएस को बताते हैं कि गया में रमना मुहल्ले में पहले तिलकुट निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। वैसे अब टेकारी रोड, कोयरीबारी, स्टेशन रोड सहित कई इलाकों में कारीगर हाथ से कूटकर तिलकुट का निर्माण करते हैं, परंतु रमना रोड और टेकारी के कारीगरों द्वारा बने तिलकुट आज भी बेहद लजीज होते हैं। वे बताते हैं कि गया में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जिनका यह खानदानी पेशा बन गया है।

खास्ता तिलकुट के लिए प्रसिद्ध गया का तिलकुट झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि अन्य राज्यों में भेजा जाता है। तिलकुट के एक अन्य दुकानदार रामदेव कहते हैं कि इस वर्ष तिलकुट के व्यापार पर भी महंगाई की मार पड़ी है। इस वर्ष तिलकुट की कीमत में करीब 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। हालांकि वे कहते हैं कि महंगे तिलकुट होने के बावजूद लोग तिलकुट खरीद जरूर रहे हैं, लेकिन उसकी मात्रा में कमी आ गई है। पिछले वर्ष तिल 120 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाता था, पर इस वर्ष तिल की कीमतों में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

वे कहते हैं कि आम तौर पर मकर संक्रांति के मौके पर तिलकुट की बिक्री में बढ़ोत्तरी हो जाती है परंतु बोधगया में आए विदेशी पर्यटक भी यहां के तिलकुट ले जाते हैं, जिस कारण यह व्यवसाय साल भर चलता रहता है। तिलकुट के एक अन्य कारीगर मुकुंद प्रसाद बताते हैं कि तिलकुट कई प्रकार के होते हैं। मावेदार तिलकुट, खोवा तिलकुट, चीनी तिलकुट, गुड़ तिलकुट बाजार में मिलते हैं। हर प्रकार के तिलकुट बनाने में काफी मेहनत लगती है, लेकिन उसके अनुसार मजदूरी नहीं मिलती है।

वह कहते हैं कि तिलकुट बनाने का कार्य ठंड के मौसम में जरूर मिल जाता है, परंतु शेष दिनों अन्य कार्य करने पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि गया के तिलकुट कारीगर अब राज्य के अन्य शहरों में भी जाने लगे हैं। गया में प्रत्येक वर्ष तिलकुट का बाजार सजा रहता है। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक अपने साथ गया के तिलकुट जरूर ले जाना चाहते हैं। विदेशियों को खोया वाला तिलकुट बहुत पसंद आता है। गया में तिलकुट के अलावा 'खूबी' मिठाई की भी अलग पहचान है। यहां तिलकुट खरीदने वाले खूबी भी खरीदते हैं हालांकि मकर संक्रांति के दौरान खूबी की बिक्री में कुछ गिरावट आ जाती है। 

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