...तो आचमन के काबिल नहीं रहेगी गंगा

काशी नदियों का शहर था, जहां कभी मंदाकिनी, गोदावरी, किरणा और सरस्वती आदि नदियां काशी में प्रवाहमान थीं। इनमें पांच नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, ध्रुतपापा और किरणा पंचगंगा घाट पर मिलती थीं। लेकिन अब प्रदूषण के चलते गंगा को छोड़कर सभी नदियों का सोता ही रह गया है।

कभी सुर्ख सफेद जलधारा का प्रवाह करने वाली गंगा आज प्रदूषण और गंदगी के कारण अपना रंग खो चुकी हैं। जिस जल में लोग स्नान करते थे आज उससे आचमन करने से कतराते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए गंगा की स्थिति इन्हीं नदियों की तरह हो सकती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा में बढ़ता प्रदूूषण केवल गंगा में होने वाला प्रदूषण ही नहीं बल्कि गिरने वाले नालों का पानी, अस्सी और वरुणा नदी से निकलने वाला कचरा भी है। आंकड़ों के मुताबिक वरुणा नदी से प्रतिदिन करीब 80 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) कचरा गंगा में गिरता है। 

इसके साथ ही कभी नदी और आज नाले में रूप में बहने वाली अस्सी से भी 30 एमएलडी पानी गंगा में बहाया जाता है। अगर सभी नालों को मिलाया जाए तो 300 एमएलडी गंदा पानी निकलता है। इसमें से 200 एमएलडी गंगा में बहाकर बाकी 100 एमएलडी को ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए साफ किया जाता है। 

सवाल यह उठता है कि आखिर शहर के बीच में गिरने वाले कचरे का आकलन तो होता है, लेकिन गोमती और अन्य नदियों के जरिए आने वाले कचरे का हिसाब कौन रखेगा। विशेषज्ञों की मानें तो अब गंगा मोक्षदायिनी और जीवनदायिनी नहीं रह गई, क्यों कि जिस गंगा का जीवन ही संकट में हो आखिर वह दूसरों के जीवन को मोक्ष कैसे दे सकती हैं। 

विशेषज्ञ अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं कि यह शहर नदियों, जलाशयों और नालों का शहर था। आज सभी जलाशय और छोटी नदियां विलुप्त हो गईं। फिर भी लोग नहीं चेते और गंगा की दशा बद से बदतर हो गई। गंगा अपना बोझ तो उठा नहीं पा रहीं, साथ ही अन्य नदियों का पानी भी इन्हीं की धारा में प्रवाहित कर दिया जाता है। पश्चिम में गोमती, दक्षिण से वरुणा और पूरब में अस्सी ने गंगा को प्रदूषित कर दिया और लगातार यह क्रम जारी है। न तो सरकार के पास कोई योजना है और न ही लोग सतर्क हैं। अगर ऐसा ही रहेगा तो गंगाजल आचमन के काबिल भी नहीं रहेगी।

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