मूवी रिव्यू : 'गुलाब गैंग'

कलाकार: माधुरी दीक्षित, जूही चावला
निर्देशक: सौमिक सेन 

मुंबई। सौमिक सेन निर्देशित फ़िल्म गुलाब गैंग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 8 मई तक रोक लगा दी थी। लेकिन फिर कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद ये फ़िल्म शुक्रवार को रिलीज हो गई। इस फ़िल्म में जूही और माधुरी बिल्कुल नए अवतार में नजर आयेगीं। यह फिल्म कथित रूप से उत्तर प्रदेश की सामाजिक कार्यकर्ता संपत पाल की जीवनी पर आधारित है। पाल ने अपने दम पर समाजिक बुराइयों से लड़ने वाली महिलाओं की फौज तैयार की जिसका नाम 'गुलाबी गैंग' है। लेकिन फिल्म के निर्देशक सौमिक सेन इस बात से इंकार करते हैं।

'गुलाब गैंग" में रज्जो (माधुरी दीक्षित) और सुमित्रा देवी (जूही चावला) के संघर्ष की कहानी है। रज्जो महिलाओं के हक़ के लिए लड़ती हैं। वो एक महिला आश्रम चलाती है। उसकी कोशिश होती है कि महिलाओं को अपने पांव पर खड़ा किया जाए। उनका एक समूह है जो महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाता है। धीरे धीरे अब रज्जो की पहचान बन चुकी है। जैसा होता है उसकी लोकप्रियता जैसे जैसे बढ़ती है उसके दुश्मन भी बनते जातें हैं। सुमित्रा देवी ऐसी राजनेता हैं जो अपने कुर्सी के लिए कुछ भी भी कर सकती है। जो रज्जो की बढ़ती लोकप्रियता का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहती है। यहीं शुरू होती हैं दोनों के बीच जंग। 

माधुरी दीक्षित का एक्शन अवतार देखने को मिला है। माधुरी अपने किरदार में पूरी तरह फिट बैठी है। वहीं जूही चावला ने कोई कमी नहीं रखी। कई सीन में जूही माधुरी से एक कदम आगे नजर आई है। दोनों एक्ट्रेस अपनी एक्टिंग के जरिए दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब हुई है। माधुरी और जूही केमिस्ट्री और नोकझोंक पर्दे पर अच्छी लगती है। मगर ज्यादा ड्रामा डालने की वजह से फिल्म प्लॉट से भटकी हुई नजर आती है। वहीं तनिष्ठा चटर्जी, प्रियंका बोस और दिव्या जगदाले ने भी अपने रोल को बखूबी निभाया है। एक निर्देशक के तौर पर सौमिक सेन ने इतनी शानदार स्टारकास्ट का सही इस्तेमाल नहीं कर पाए। इस तरह के सब्जेक्ट पर पहले फिल्में बन चुकी हैं। फिल्म के संवाद अच्छे हैं। फ़िल्म के कुछ सीन काफी मनोरंजक हैं।

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