वैसाख के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता
है| इस बार नृसिंह जयंती 13 मई दिन मंगलवार को मनाई जाएगी| पुराणों में
वर्णित कथाओं के अनुसार इसी पावन दिवस को भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के
लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार लिया था. जिस कारणवश यह दिन
भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ मनाया
जाता है|
व्रत विधि-
इस दिन स्नानादि करे संपूर्ण घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव कर पूरा घर पवित्र करें।
नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे।
उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥
इस मंत्र के साथ इस मंत्र के साथ दोपहर के समय क्रमशः तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आँवला मलकर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए। अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएँ।
कथा-
जब- जब पृथ्वीलोक पर असुरों का पाप बढ़ा तब-तब भगवान ने अवतार लिया| आपको बता दें कि नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है| नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था|
प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे उनकी पत्नी का नाम दिति था| उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था| हिरण्याक्ष को भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वाराह रूप धरकर मार दिया था| अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया| सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया, उसकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया| वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मार भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया|
देवता निरूपाय हो गए थे वह असुर को किसी प्रकार वे पराजित नहीं कर सकते थे अहंकार से युक्त वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा| इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया एक राक्षस कुल में जन्म लेने पर भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था| भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ तब उसने प्रह्लाद को मारने के षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा| भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था|
इस बातों से क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया| होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती परंतु जब प्रल्हाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई किंतु प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ|
इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु को पूजने लगी, तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता, तेरा भगवान कहाँ है? इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं| क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि 'क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ में भी है? प्रह्लाद ने हाँ, में उत्तर दिया|
यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया| श्री नृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा अत: इस कारण से दिन को नृसिंह जयंती-उत्सव के रूप में मनाया जाता है|
व्रत विधि-
इस दिन स्नानादि करे संपूर्ण घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव कर पूरा घर पवित्र करें।
नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे।
उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥
इस मंत्र के साथ इस मंत्र के साथ दोपहर के समय क्रमशः तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आँवला मलकर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए। अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएँ।
कथा-
जब- जब पृथ्वीलोक पर असुरों का पाप बढ़ा तब-तब भगवान ने अवतार लिया| आपको बता दें कि नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है| नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था|
प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे उनकी पत्नी का नाम दिति था| उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था| हिरण्याक्ष को भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वाराह रूप धरकर मार दिया था| अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया| सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया, उसकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया| वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मार भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया|
देवता निरूपाय हो गए थे वह असुर को किसी प्रकार वे पराजित नहीं कर सकते थे अहंकार से युक्त वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा| इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया एक राक्षस कुल में जन्म लेने पर भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था| भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ तब उसने प्रह्लाद को मारने के षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा| भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था|
इस बातों से क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया| होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती परंतु जब प्रल्हाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई किंतु प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ|
इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु को पूजने लगी, तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता, तेरा भगवान कहाँ है? इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं| क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि 'क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ में भी है? प्रह्लाद ने हाँ, में उत्तर दिया|
यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया| श्री नृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा अत: इस कारण से दिन को नृसिंह जयंती-उत्सव के रूप में मनाया जाता है|
WWW.PARDAPHASH.COM
ليست هناك تعليقات:
إرسال تعليق