झारखंड की राजधानी रांची से करीब 18 किलोमीटर दूर पिठौरिया गांव में दो शताब्दी पुराना यह किला राजा जगतपाल सिंह का है, जो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले पर दशकों से हर साल आसमानी बिजली गिरती है, जिससे हर साल इसका कुछ हिस्सा टूटकर गिर जाता है। पिठौरिया गांववासियों की मान्यता है कि ऐसा एक क्रांतिकारी द्वारा राजा जगतपाल सिंह को दिए गए श्राप के कारण होता है। बिजली गिरना वैसे तो एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन यहां के लोग एक ही जगह पर दशकों से लगातार बिजली गिरने को एक आश्चर्यजनक की बात मानते हैं।
इतिहासकार डा. भुवनेश्वर अनुज ने बताया कि पिठौरिया शुरुआत से ही मुंडा और नागवंशी राजाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। यह इलाका 1831-32 में हुए कौल विद्रोह के कारण इतिहास में अंकित है। पिठौरिया के राजा जगतपाल सिंह ने क्षेत्र का चहुंमुखी विकास किया। इसे व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बनाया। वह क्षेत्र की जनता में काफी लोकप्रिय था, लेकिन उनकी कुछ गलतियों ने उसका नाम इतिहास में खलनायकों और गद्दारों की सूची में शामिल करवा दिया।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1831 में सिंदराय और बिंदराय के नेतृत्व में आदिवासियों ने आंदोलन किया था, लेकिन यहां की भौगोलिक परिस्तिथियों से अनजान अंग्रेज, विद्रोह को दबा नहीं पा रहे थे। ऐसे में अंग्रेज अधिकारी विलकिंग्सन ने राजा जगतपाल सिंह के पास सहायता का संदेश भिजवाया, जिसे उसने स्वीकार करते हुए अंग्रेजों की मदद की। उनकी इस मदद के बदले तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम वैंटिक ने उन्हें 313 रुपये प्रतिमाह आजीवन पेंशन दी।
इतिहासकारों के मुताबिक, 1857 के दौरान भी उसने अंग्रेजों का साथ दिया था। स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि जगतपाल सिंह की गवाही के कारण ही झारखंड के क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ नाथ शाहदेव को फांसी दी गई थी। मान्यता है कि विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह श्राप दिया कि आने वाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नामलेवा नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल बिजली गिरेगी। तब से हर साल इस किले पर बिजली गिरती आ रही है। इस कारण किला खंडहर में तब्दील हो चुका है।
भूगर्भशास्त्री ग्रामीणों की इस मान्यता से सहमत नहीं हैं। किले पर शोध कर चुके जाने-माने भूगर्भशास्त्री नितीश प्रियदर्शी इसके दूसरे ही कारण बताते हैं। उनके मुताबिक, यहां मौजूद ऊंचे पेड़ और पहाड़ों में मौजूद लौह अयस्कों की प्रचुरता दोनों मिलकर आसमानी बिजली को आकर्षित करने का एक बहुत ही सुगम माध्यम उपलब्ध कराती है। इस कारण बारिश के दिनों में यहां अक्सर बिजली गिरती है। बहरहाल ग्रामीणों की मान्यता और भूगर्भशास्त्रियों की शोध के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन कई लोगों के लिए आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि यह किला जब दशकों तक आबाद रहा, तब क्यों नहीं बिजलियां गिरी थी? उस समय तो और ज्यादा पेड़ और लौह अयस्क रहे होंगे।
www.pardaphash.com
ليست هناك تعليقات:
إرسال تعليق