हिंदू मान्यता में तीन देव ब्रह्मा, विष्णु व शिव को अनादि अौर अनंत माना जाता है। अनादि या अनंत का अर्थ है, जिनका न कभी जन्म हुआ और न कभी अंत होगा। इसलिए इनके स्वरूप को लेकर पुराणों में अलग-अलग वर्णन मिलता है। ब्रह्मा को पूरे ब्रह्मांड का रचयिता माना गया है। वहीं भगवान विष्णु को पालनकर्ता और शिव को संहारक कहा गया है। पुराणों से पहले वेद और उपनिषदों ने ब्रह्मा को तत्व रूप में बताया है, जबकि पुराणों में उन्हें मानवीय रूप में चित्रित किया गया है।
श्रीमद् भागवत पुराण में बताया गया है कि ब्रह्माजी की उत्पति भगवान विष्णु की नाभि से हुई है। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्हें कोई लोक दिखाई नहीं दिया। तब वे आकाश में चारों ओर देखने लगे, इससे उनके चारों दिशाओं में चार मुख हो गए। दरअसल ब्रह्माजी के चार मुख चारों युगों के प्रतीक हैं। चारों दिशाओं के प्रतीक हैं।
चारों पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। चारों वेदों के प्रतीक हैं। ब्रह्माजी के चार मुख ब्रह्म तत्व की सर्वव्यापकता का प्रतीक है। सरल शब्दों में कहे तो ब्रह्मा यानी भगवान शरीर रूप में नहीं, बल्कि तत्व रूप में हर जगह मौजूद हैं। किसी भी लोक में ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां भगवान न रहते हों।
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