नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्करय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।। तत्पुरषाय विद्म्हे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।। भगवान शिव को सभी विद्याओं के ज्ञाता होने के कारण जगत गुरु भी कहा गया है। भोले शंकर की आराधना से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। शिव की आराधना किसी भी रूप में की जा सकती है।
शिव अनादि तथा अनंत हैं। जिस तरह निराकार रूप में केवल ध्यान करने से भोले शंकर प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार साकार रूप में श्रद्धा से शिवलिंग की उपासना से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है| लोग घर के मंदिरों में भी शिवलिंग की स्थापना करते हैं| उसपर दूध व जल चढ़ाते हैं और अपनी मन इच्छा के लिए प्रार्थना करते है। लेकिन उत्तराखंड में एक ऎसा शिवालय है जहां भक्त शिवलिंग पर न तो दूध चढाता है ना ही जल। इस शिव मंदिर में पूजा करने से लोग डरते है।
यह शिवालय उत्तराखंड के चम्पावत जिला में हथिया नौला नामक स्थान में बना हुआ है। इस शिवालय के विषय में कथा है कि इस गांव में एक शिल्पकार रहता था। हादसे में शिल्पकार का एक हाथ कट गया।गांव वाले उसे उलाहना देते कि भला एक हाथ से अब मूर्तियां कैसे बनाओगे। लोगों के ताने उलहाने सुन सुनकर मर्तिकार दुःख हो गया। एक रात शिल्पकार हाथ में छेनी, हथौड़ी लेकर गांव के दक्षिण दक्षिण दिशा में निकल गया।
शिल्पकार ने रात भर में ही एक बड़े से चट्टान को काटकर मंदिर और शिवलिंग का निर्माण कर दिया। सुबह लोगों ने जब इस मंदिर को देखा तो हैरान रह गए। शिल्पकार को गांव में ढूंढा गया लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं था। लोग समझ गये कि यह उसी शिल्पकार का काम है जिसे वह ताना दिया करते थे।
पण्डितों ने मंदिर का निरीक्षण किया तो पाया कि शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में है। विपरीत दिशा में अरघा होने के कारण माना गया कि इस शिवलिंग की पूजा से कोई अनहोनी घटना हो सकती है। लोगों ने अनहोने के डर से शिवलिंग की पूजा नहीं की और आज भी इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग भक्त का तरस रहा है। संभवतः जल्दबाजी में शिल्पकार से यह गलती हो गयी थी। लेकिन मंदिर के पास मौजूद एक सरोवर है जिसे पवित्र माना जाता है यहां मुण्डन एवं दूसरे संस्कार किये जाते हैं।
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