उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आलमबाग में स्थित यह इमारत आज चंदरनगर गेट
के नाम से जानी जाती है। आपको बता दें कि यह चंदर नगर गेट वास्तव में
आलमबाग कोठी का दरवाजा है। यह कोठी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने अपनी
बेगम आलम आरा (आजम बहू) के लिए बनवाई थी।लेकिन बाद में यह कोठी आजादी की
लड़ाइयों में उजड़ गई| फाटक अब भी बाकी है।
यह चंदर नगर गेट आजादी की लड़ाई का एक अहम हिस्सा रहा है। अगर हम बुद्धिजीवियों की माने तो रेजीडेंसी सीज होने के बाद अंग्रेज आलमबाग के रास्ते शहर में प्रवेश कर रहे थे। यहां मौलवी अहमद उल्लाह शाह और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों की हार हुई। बताते हैं सर हेनरी हैवलॉक यहीं बीमार हुए थे, जिनकी मृत्यु दिलकुशा में हुई थी| मौत के बाद उन्हें यहीं दिलकुशा के करीब स्थित कब्रिस्तान में दफन किया गया था।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अंतिम पड़ाव में अंग्रेजों ने इसी फाटक को किले के रूप में प्रयोग किया और कई क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। इसके बाद से इसे फांसी दरवाजा के नाम से जाना जाने लगा था|
यह चंदर नगर गेट आजादी की लड़ाई का एक अहम हिस्सा रहा है। अगर हम बुद्धिजीवियों की माने तो रेजीडेंसी सीज होने के बाद अंग्रेज आलमबाग के रास्ते शहर में प्रवेश कर रहे थे। यहां मौलवी अहमद उल्लाह शाह और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों की हार हुई। बताते हैं सर हेनरी हैवलॉक यहीं बीमार हुए थे, जिनकी मृत्यु दिलकुशा में हुई थी| मौत के बाद उन्हें यहीं दिलकुशा के करीब स्थित कब्रिस्तान में दफन किया गया था।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अंतिम पड़ाव में अंग्रेजों ने इसी फाटक को किले के रूप में प्रयोग किया और कई क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। इसके बाद से इसे फांसी दरवाजा के नाम से जाना जाने लगा था|
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