…यहाँ झूले पर झूलती हैं मां

अभी तक आपने कई मंदिरों के दर्शन किये होंगे लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन कराने जा रहे हैं जहाँ झूले में झूलती हैं मां| उत्तराखंड के रानीखेत माल रोड में घने जंगल के बीच सुरम्य स्थल पर स्थित मां झूला देवी का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केन्द्र है। मान्यता है कि झूला देवी मां के आशीर्वाद कई लोगों के लिए बेहतर फलीभूत हुआ है। मंदिर की स्थापना करीब 700 साल पहले मानी जाती है।

जनश्रुतियों के अनुसार, लगभग 700 साल पहले चौबटिया क्षेत्र के घनघोर जंगल में बड़ी संख्या में चीते, बाघ, शेर व अन्य जंगली जानवरों का वास था। उस दौर में क्षेत्र के ग्रामीण इनके आतंक से बेहद दुखी हो गए। ग्रामीणों व उनके मवेशियों पर आए दिन हमला होने लगा। इसके बाद दुखी ग्रामीणों ने मां की भक्ति की। इस भक्ति से खुश होकर मां देवी ने पिलखोली निवासी एक व्यक्ति को सपने में दर्शन दिए और दबी मूर्ति के बारे में बताया। उस जगह खुदाई में ग्रामीणों को आकर्षक मूर्ति मिली। उसी स्थान पर मां का मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित की गई और कहते हैं कि तब से पूजा-अर्चना शुरू हुई, तो जंगली जानवरों के आतंक से ग्रामीण मुक्त हुए।

झूले के पीछे मान्यता है कि एक बार सावन माह में मां ने एक व्यक्ति को फिर स्वप्न में बच्चों की भांति झूले में झूलने की इच्छा जताई। तो ग्रामीणों ने एक झूला तैयार कर मां की मूर्ति उसमें स्थापित कर दी। तभी से मंदिर झूला देवी मां के नाम से विख्यात हो गया। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 14वीं सदी का है। आज भी रात को बाघ व गुलदार मंदिर के इर्द-गिर्द विचरण करते हैं, किंतु माता की कृपा से कोई नुकसान नहीं पहुंचाते।

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