भारतीय नौसेना के स्पेशल कमांडोज जिन्हें आम नज़रों से बचा कर रखा गया है। मार्कोस को जल, थल और हवा में लड़ने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। समुद्री मिशन को अंजाम देने के लिए इन्हें महारत है। मार्कोस को दुनिया के बेहतरीन यूएस नेवी सील्स की तर्ज पर ट्रेंड किया जाता है। मार्कोस कमांडो बनने के लिए कड़े मुकाबले से गुजरना होता है। 20 साल उम्र वाले प्रति 10 हजार युवा सैनिकों में एक का सिलेक्शन मार्कोस के लिए होता है।
जानिए कैसे हुई इस कमांडो यूनिट की स्थापना
पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध के बाद नौसेना में ऐसे कमांडो यूनिट की आवश्यकता महसूस की गई और तब नेवी ने कुछ खास अधिकारियों को इंडियन आर्मी और सिक्योरिटी फोर्सेज की ओर से शुरूआती ट्रेनिंग दिलवाई।1986 में नेवी ने एक मैरीटाइम स्पेशल फोर्स की योजना शुरू की। इसके बाद तीन आॅफिसर्स को पहले यूएस नेवी सील्स कमांडो और फिर ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस के पास एक विशेष कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। इंडियन मैरिटाइम स्पेशल फोर्स की स्थापना फरवरी 1987 में हुई। इसका नाम वर्ष 1991 में आईएमएसएफ से बदलकर एमसीएफ कर दिया गया। मार्कोस अक्सर विषम परिस्थितियों में हीं बुलाये जाते हैं। मार्कोस कमांडो बनने के लिये 20 साल के युवा सैनिको को चुना जाता है जिन्हे कड़े परीक्षण से गुजरना होता है। करगिल युद्ध में भी मार्कोस कमांडो ने पाकिस्तान को बहुत नुकसान पहुंचाया था।
हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में होते हैं माहिर-
मार्कोस भारतीय नौसेना के स्पेशल मरीन कमांडोज हैं। स्पेशल ऑपरेशन के लिए इंडियन नेवी के इन कमांडोज को बुलाया जाता है। ये कमांडो हमेशा आम नज़रों से बचकर रहते हैं। मार्कोस हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं। नौसेना के सीनियर अफसर की मानें तो परिवार वालों को भी उनके कमांडो होने का पता नहीं होता है। मार्कोस का मकसद आतंकियों को उन्हीं के तरीके से मारना, जवाबी कार्रवाई, मुश्किल हालात में युद्ध करना, लोगों को बंधकों से मुक्त कराना जैसे खास ऑपरेशनों को पूरा करना है।
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