मौनी अमावस्या आज, जानिए इस दिन क्यों रखते हैं मौन

नई दिल्ली: किसी भी महीने की अमावस्या जब सोमवार को होती है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहते है| हिन्दू ग्रंथों में माघ मास को बेहद पवित्र माना जाता है। माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि इसी दिन से द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। दुख दरिद्र और सभी को सफलता दिलाने वाली मौनी अमावस्या 08 जनवरी दिन सोमवार को पड़ रही है। इस बार अमावस्या सोमवार के दिन पड़ने से सोने पर सुहागा से कम नहीं है।

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है| इस दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं| ऐसा माना गया है कि इस दिन सृष्टि के निर्माण करने वाले मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है| लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने मनु महाराज तथा महारानी शतरुपा को प्रकट करके सृष्टि की शुरुआत की थी, इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है|

मौनी अमावस्या में स्नान करने की विधि-

माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है । मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगममें देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इस करणभक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर गंगा सेवन करते हैं। इस दिन व्यक्ति विशेष को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए| यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं क्योंकि पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है| स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें| इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें|

इस दिन क्यों रखा जाता है मौन-

विद्वानों के अनुसार इस दिन व्यक्ति विशेष को मौन व्रत रखना चाहिए| मौन व्रत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए| धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना ही मौन व्रत है| कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं | वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है|

प्रत्येक मनुष्य के अंदर तीन प्रकार का मैल होता है| कर्म का मैल, भाव का मैल तथा अज्ञान का मैल| इन तीनों मैलों को त्रिवेणी के संगम पर धोने का महत्व है| त्रिवेणी के संगम पर स्नान करने से व्यक्ति के अंदर स्थित मैल का नाश होता है और उसकी अन्तरआत्मा स्वच्छ होती है, इसलिए व्यक्ति को इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि त्रिवेणी के संगम में मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने से सौ हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है अथवा इस दिन संगम में स्नान करना और अश्वमेघ यज्ञ करना दोनों के फल समान है|

मौनी अमावस्या की कथा-

प्राचीन समय में कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का ब्राह्मण रहता था| उसकी पत्नी का नाम धनवती था| देवस्वामी की आठ संताने थी| सात पुत्र और एक पुत्री थी| उसकी पुत्री का नाम गुणवती था| ब्राह्मण ने अपने सातों पुत्र के विवाह के बाद अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की तलाश में अपने सबसे बडे़ पुत्र को भेजा| उसी दौरान किसी ज्योतिषी ने कन्या की कुण्डली देखकर कहा कि विवाह समाप्त होते ही वह विधवा हो जाएगी| इससे देवस्वामी तथा अन्य सदस्य चिन्तित हो गये| देवस्वामी ने गुणवती के वैधव्य दोष के निवारण के बारे में ज्योतिषी से पूछा तब उसने कहा कि सिंहल द्वीप में सोमा नाम की धोबिन रहती है| सोमा का पूजन करने से गुणवती के वैधव्य दोष का निवारण हो सकता है| आप किसी भी प्रकार सोमा को विवाह होने से पहले यहाँ बुला लें| यह सुनने के पश्चात गुणवती और उसका सबसे छोटा भाई सिंहल द्वीप की ओर चल दिए| सिंहल द्वीप सागर के मध्य स्थित था| दोनों बहन-भाई सागर तट पर एक वृक्ष के नीचे सागर को पार करने की प्रतीक्षा में बैठ गए| दोनों को सागर पार करने की चिन्ता थी उसी वृक्ष के ऊपर एक गिद्ध ने अपना घोंसला बना रखा था| उस घोंसले में गिद्ध के बच्चे रहते थे जब शाम को गिद्ध अपनी पत्नी के साथ घोंसलें में लौटा तब उसके बच्चों ने बताया कि इस वृक्ष के नीचे बहन-भाई सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं| जब तक वह दोनों खाना नहीं खाएंगें, हम भी भोजन ग्रहण नहीं करेगें|

गिद्ध ने दोनों बहन-भाइयों को भोजन कराया तथा उनके वहाँ आने का कारण पूछा तब उन्होंने सारा वृतांत सुनाया| सारी बातें जानने के बाद गिद्ध ने उन्हें सिंहल द्वीप पर पहुंचाने का अश्वासन दिया| अगले दिन सुबह ही गिद्ध ने दोनों को सिंहल द्वीप पहुंचा दिया| सिंहल द्वीप पर आने के बाद दोनों बहन-भाइयों ने सोमा धोबिन के घर का काम करना शुरु कर दिया| सारे घर की साफ सफाई तथा घर के अन्य कार्य दोनों बहन-भाई बहुत ही सफाई से करने लगे| सुबह सोमा जब उठती तब उसे हैरानी होती कि कौन यह सब कम कर रहा है| सोमा ने अपनी पुत्रवधु से पूछा तब उसने बडे़ ही चतुराई से कहा कि हम करते हैं और कौन करेगा| सोमा को अपनी बहु की बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उसने उस रात जागने का निर्णय किया| तब सोमा ने देखा कि गुणवती अपने छोटे भाई के साथ सोमा के घर का सारा कार्य निबटा रही है| सोमा उन दोनों से बहुत प्रसन्न हुई और उनके ऎसा करने का कारण पूछा तब उन्होंने गुणवती के विवाह तथा उसके वैधव्य की बात बताई|

सोमा ने गुणवती को आशीर्वाद दिया, लेकिन दोनों बहन-भाई सोमा से अपने साथ विवाह में चलने की जिद करने लगे| सोमा उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गई और अपनी पुत्रवधु से कहा कि यदि परिवार में किसी कि मृत्यु हो जाती है तब उसका अंतिम संस्कार ना करें, मेरे घर आने की प्रतीक्षा करें| गुणवती का विवाह होने लगा| विवाह समाप्त होते ही गुणवती के पति का देहांत हो गया| सोमा ने अपने अच्छे कर्मों के बल पर गुणवती के मरे हुए पति को अपने आशीर्वाद से दोबारा जीवित कर दिया, लेकिन ऎसा करने पर सोमा के सभी अच्छे कर्म समाप्त हो गये और सिंहल द्वीप पर रहने वाले उसके परिवार के सदस्यों का देहान्त हो गया|

सोमा ने वापस अपने घर जाते हुए रास्ते में ही अपने संचित कर्मों को फिर से एकत्रित करने की बात सोची और रास्ते में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की| ऎसा करने पर उसके परिवार के मृतक सदस्य दोबारा जीवित हो गये, सोमा को उसके नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल मिल गया|

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