प्यारे और मन मोहक होते है 'आई' अक्षर वाले

किसी लड़के या लडकी के नामकरण से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या असर पड़ता है, क्या आपको पता है? अगर नहीं तो आज हम आपको "आई" अक्षर वाले व्यक्तियों के बारे में बताते हैं-

यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के I अक्षर से शुऱू होता है तो ऐसे व्यक्ति काफी सुंदर होते हैं और सुंदरता को पसंद भी करते हैं। इन्हें बच्चों की कंपनी भी काफी अच्छी लगती है। धर्म-कर्म में रूचि रखते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसे लोग बहुत ही प्यारे और मोहक होते है जिनका साथ हर कोई पसंद करता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ प्यार का भूखा है। उसे अपनेपन और प्यार की तलाश होती है । ये इंसान बहुत ही भावुक होते हैं। ये हर काम दिल से करते हैं इसलिए इन्हें आसानी से इन्हें बुद्धू भी बनाया जा सकता है। ये अक्सर अपने इस स्वभाव के कारण अपनी बहुत सारी उपयोगी चीजों को खो देते हैं।

इस अक्षर वाले व्यक्तियों को जिंदगी बहुत कुछ देती है लेकिन उसका सुख कम ही मिल पाता है। शिक्षा और लेखनी के क्षेत्र में ये विशेष जानकारी रखते है। खैर इन्हें कभी पैसे की कमी नहीं होती है। प्रेम और पारिवारिक सौगात भी इन्हें थोक मात्रा में मिलती है। समाज में ये अच्छी पकड़ रखते है। सेक्स लाईफ काफी अच्छी होती है।

ऐसा करने से जल्द मिलेगी मनचाही वधू

माँ भगवती की आराधना का पर्व है नवरात्रि| इस बार नवरात्रि 28 सितम्बर ( बुधवार) से प्रारंभ हो चुकी है| माँ भगवती के नौ रूपों की भक्ति करने से हर मनोकामना पूरी होती है। अगर आपके विवाह में अड़चनें आ रही हैं तो नीचे लिखा उपाय करने पर शीघ्र ही आपको मनचाही दुल्हन मिलेगी|

उपाय-

नवरात्रि के हर दिन किसी शिव मंदिर में जाएं और शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाते हुए शिवलिंग को अच्छी तरह से साफ कर लें। फिर शुद्ध जल शिवलिंग पर चढ़ाकर पूरे मंदिर को झाड़ू लगाकर साफ करें।फिर भगवन भोलेनाथ की चंदन, पुष्प एवं धूप, दीप आदि से उपासना करें| उसके बाद रात्रि के करीब 10 बजे के पश्चात अग्नि प्रज्वलित कर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए घी से 108 बार भगवन शंकर को आहुति दें| 11 दिनों तक नित्य इसी मंत्र की पांच माला जप भगवान शिव के सम्मुख करते रहें शीघ्र ही मनोकामना पूर्ण होगी और आपको मनचाही दुल्हन मिलेगी|

अपनी राशि के अनुसार जाने माँ भगवती को प्रसन्न करने का उपाय

आज से नवरात्रि पर्व का आरंभ हो चुका है| इस नवरात्रि में माँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए अपनी राशि के अनुसार जानिए माँ के स्वरूपों की पूजा अर्चना में क्या-क्या करना चाहिए-

मेष राशि:- मेष राशि वाले भक्तों को माँ भगवती की पंच्व्ह्वी शक्ति स्कंद माता की विशेष उपासना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। क्योंकि स्कंदमाता करुणामयी हैं, जो वात्सल्यता का भाव रखती हैं।

वृष राशि:- वृष राशि के लोग महागौरी स्वरूप की उपासना करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। माँ को प्रसन्न करने के लिए ललिता सहस्र नाम का पाठ करना चाहिए। क्योंकि महागौरी जन-कल्याणकारी हैं। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

मिथुन राशि:- मिथुन राशि वाले भक्तों को देवी-यंत्र स्थापित कर माँ भगवती ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए। माँ ब्रम्ह्चारिणी को प्रसन्न करने के लिए तारा कवच का प्रतिदिन पाठ करें। क्योंकि मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता, विद्या के अवरोध दूर करती हैं।

कर्क राशि:- कर्क राशि वाले भक्तों को माँ भगवती के प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री की पूजा-उपासना करनी चाहिए। माँ को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें। क्योंकि माँ शैलपुत्री अभय दान प्रदान करती हैं।

सिंह राशि:- सिंह राशि वाले भक्तों को माँ कूष्मांडा की साधना विशेष फलदायी है| इसलिए माँ को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा मंत्र का जाप करें। क्योंकि माँ कुष्मांडा बलि प्रिया हैं, अत: साधक नवरात्र की चतुर्थी को आसुरी प्रवृत्तियों यानि बुराइयों का बलिदान देवी चरणों में निवेदित करना चाहिए|

कन्या राशि:- कन्या राशि वाले भक्तों कोप माँ ब्रम्ह्चारिणी की पूजा अर्चना करना चाहिए। माँ को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी मंत्रों का साविधि जाप करें। क्योंकि माँ ज्ञान प्रदान करती हुई विद्या मार्ग के अवरोधों को दूर करती हैं। विद्यार्थियों हेतु देवी की साधना फलदायी है।

तुला राशि:- तुला राशि वाले भक्तों को महागौरी की पूजा- अर्चना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। माँ को प्रसन्न करने के लिए काली चालीसा या सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करें क्योंकि जन-कल्याणकारी हैं। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

वृश्चिक राशि:- वृश्चिक राशि वाले भक्तों को स्कंदमाता की पूजा अर्चना करनी चाहिए| माँ को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें क्योंकि माँ वात्सल्य भाव रखती हैं।

धनु राशि:- धनु राशि वाले भक्तों को देवी चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए| माँ को प्रसन्न करने के लिए संबंधित मंत्रों का यथाविधि अनुष्ठान करें। क्योंकि घंटा प्रतीक है उस ब्रह्मनाद का, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।

मकर राशि:- मकर राशि वाले लोगों के लिए कालरात्रि की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। माँ को प्रसन्न करने के लिए नर्वाण मंत्र का जाप करें। क्योंकि माँ अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोप, अग्निकांड आदि का शमन करती हैं। माँ शत्रुओं का संहार करने वाली होती हैं।

कुंभ राशि:- कुंभ राशि वाले व्यक्तियों के लिए कालरात्रि की उपासना लाभदायक है | आप माँ को प्रसन्न करने के लिए देवी कवच का पाठ करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोपों का शमन करती हैं और शत्रुओं का विनास करती हैं|

मीन राशि:- मीन राशि के जातकों को माँ चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए। माँ को प्रसन्न करने के लिए हरिद्रा की माला से यथासंभव बगलामुखी मंत्र का जाप करें। घंटा उस ब्रह्मनाद का प्रतीक है, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है। 

इस चमत्कारिक नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र से जाने अपने सवालों के जवाब

नवरात्रि का पर्व आज (बुधवार) से प्रारंभ हो चुका है| इसके लिए हर भक्त अपने तरीके से माँ की आराधना करता है। नवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपके लिए नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र लाएं हैं। इस चमत्कारिक चक्र के माध्यम से आप अपने जीवन की समस्त परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं।


नवदुर्गा प्रश्नावली चमत्कारिक चक्र के उपयोग की विधि-

जिस किसी भक्त को अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का जप करने के बाद 1 बार इस मंत्र का जप करें-

या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


इस मंत्र का जाप करने के बाद भक्त आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और माता दुर्गा का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक (खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के अनुसार नीचे लिखे फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।

1- धन का लाभ होगा एवं मान-सम्मान भी मिलेगा।

2- धन हानि अथवा अन्य प्रकार का अनिष्ट होने की आशंका है।

3- किसी अभिन्न मित्र से मिलन होगा, जिससे मन प्रसन्न होगा।

4- कोई व्याधि अथवा रोग होने की आशंका है, अत: कार्य अभी टाल देना ही आपके लिए अच्छा रहेगा।

5- धैर्य रखिए जो भी कार्य आपने सोचा है, उसमें आपको सफलता मिलेगी|

6- कुछ दिन के लिए कार्य को स्थगित कर दें| किसी से कलह अथवा कहासुनी हो सकती है|

7- आपका अच्छा समय शुरु हो गया है। अतिशीघ्र ही सुंदर एवं स्वस्थ पुत्र होने के योग हैं। इसके अतिरिक्त आपकी अन्य मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगी।

8- विचार पूरी तरह त्याग दें| इस कार्य में मृत्यु भी होने की आशंका है।

9- देश समाज अथवा सरकार की दृष्टि में सम्मान बढ़ेगा। आपका सोचा हुआ कार्य अच्छा है।

10- अपना कार्य आरंभ करें, अपेक्षित लाभ प्राप्त होगा|

11- जिस कार्य के बारे में सोच रहे हैं, उसमें हानि होने की सम्भावना है|

12- मनोकामना पूर्ण होगी और पुत्र से भी आपको विशेष लाभ मिलेगा।

13- कार्य में आ रही बाधाएं दूर करने के लिए शनिदेव की उपासना करें|

14- चिंता न करें, अच्छा समय शुरु हो गया है, सुख-संपत्ति प्राप्त होगी।

15- आर्थिक तंगी के कारण ही आपके घर में सुख-शांति नहीं है। धैर्य एवं संयम रखें, एक माह बाद स्थितियां बदलने लगेंगी।

दूसरों पर हुकूमत करने वाले होते हैं एच अक्षर वाले व्यक्ति

किसी लड़के या लडकी के नामकरण से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या असर पड़ता है, क्या आपको पता है? अगर नहीं तो आज हम आपको "एच " अक्षर वाले व्यक्तियों के बारे में बताते हैं-

यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के H अक्षर से शुऱू होता है तो ऐसे व्यक्ति संकोची और संवेदनशील होते हैं और इसके साथ ही इस अक्षर वाले व्यक्ति अपनी ख़ुशी और अपना दर्द किसी से शेयर नहीं करते | ये रहस्यमयी व्यक्ति होते हैं, इनको समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन दिल के अच्छे और सच्चे व्यक्ति होते हैं। ये तेज़ दिमाग वाले होते हैं| ये व्यक्ति ना काहू से दोस्ती और ना ही काहू से बैर वाले होते हैं | इस अक्षर के व्यक्ति अक्सर राजनीति और प्रशासनिक क्षेत्र में दिखायी देते हैं।

इस अक्षर के व्यक्ति किसी से भी अपने प्यार का इजहार नहीं करते हैं लेकिन ये जिसे चाहते हैं, उसे दिल की गहराई से प्यार करते हैं। इनका वैवाहिक जीवन काफी अच्छा होता है। ये इंसान पैसा खूब कमाते है लेकिन ये अपने पैसों को सिर्फ अपने ऊपर खर्च करते हैं। फिलहाल ये काफी तरक्की करने वाले होते है। ऐसे लोग सिर्फ अपनी मर्जी के मालिक होते है ये दूसरों पर हुकूमत करते हैं लेकिन कोई इन पर हुकूम चलाये ये इन्हें बर्दाश्त नहीं। ज्ञान का अथाह सागर कहलाने वाले ये व्यक्ति समाज के लिए अलग मिसाल बनते हैं।

अपने स्वभाव के चलते इन्हें कुछ लोग घमंडी की भी उपाधि दे देते हैं लेकिन जो लोग इन्हें जानते हैं वो समझ जाते है कि इनका घमंड से दूर-दूर तक लेना देना नहीं है।

बहुत ही प्यारे और ज़रूरत से ज्यादा भावुक होते हैं ऍफ़ अक्षर वाले व्यक्ति

किसी लड़के या लडकी के नामकरण से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या असर पड़ता है, क्या आपको पता है?
अगर नहीं तो आज हम आपको "ऍफ़" अक्षर वाले व्यक्तियों के बारे में बताते हैं-

यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के F अक्षर से शुऱू होता है तो वे व्यक्ति बहुत ही प्यारे और ज़रूरत से ज्यादा भावुक और लोगों की मदद करने वाले होते हैं| इस अक्षर के लोगों की जिंदगी प्यार से शुऱू होती है और प्यार पर ही खत्म होती है। ये व्यक्ति सभी कार्य दिल लगाकर करते हैं | इन लोगों की खासियत होती है कि जहाँ भी जाते हैं वहां लोगों को अपना बना लेते हैं| इनके अन्दर आत्म विश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। इस अक्षर के व्यक्ति झगडालू नहीं होते हैं|

ऍफ़ अक्षर वाले व्यक्ति काफी आकर्षक, सेक्सी और रोमांटिंक होते हैं| जिंदगी में हर चीज का लुत्फ उठाते हैं| अपनी मन मोहक छवि से लोगों का दिल जीतने वाले होते है |

कान देखकर जान सकते हैं कैसी होगी स्त्री

किसी स्त्री के बारे में आपको अगर जानकारी हासिल करनी है तो उसके अंगों की सरंचना देखकर आप उस स्त्री के बारे में जान सकते हैं कि वह स्त्री कैसी होगी| स्त्री के कान की संरचना देखकर भी उसके बारे में जान सकते हैं कि वह स्त्री कैसी होगी-

अगर किसी स्त्री के कान छोटे होते हैं तो वह सौभाग्यशाली होती है| छोटे कान वाली स्त्रियाँ पति के लिए लाभदायक, परिवार में सामंजस्य स्थापित कर चलने वाली होती हैं| यदि ये स्त्रियाँ नौकरी करेंगी तो वे उच्च पद तक पहुंचती हैं। वहीँ अधिक छोटे कानों वाली स्त्रियां अधिक सौभाग्यशाली होती हैं, अपने पति के सुख-दुख में साथ देने वाली होती हैं|

लम्बे कान वाली स्त्रियाँ अपने पति के लिए घातक होती है और परिवार में कलह की स्थिति उत्पन्न करती है। जिस स्‍त्री की कान लालिमा लिए और छोटे होते हैं वे स्त्रियाँ कानून के क्षेत्र में जैसे अधिवक्ता, न्यायधीश, कानून मंत्री आदि पद से सुशोभित होती हैं।

जिस स्त्री के कान चौड़े होते हैं, ऐसी परिवार विखंडन में निपुण होती हैं, इतना ही काफी नहीं यह स्त्रियाँ अपने वैवाहिक जीवन में भी कलह बनाये रखती हैं| वहीँ जिन स्त्रियों के कान ऊपर को उठे हुये होते है वह स्त्रियां वाक्पटुता और बुद्धिमान होती हैं| ऐसी स्त्रियाँ परिवार को जल्दी विखरने नहीं देती|

जिन स्त्रियों के कान का निचला हिस्सा लम्बा और पतला होता है तो ऐसी स्त्रियां दूसरों पर शासन करने वाली होती हैं।

नवरात्रि के पांचवे दिन होती है स्कन्दमाता की पूजा

भगवती दुर्गा की पांचवी शक्ति का नाम स्कन्दमाता है| नवरात्री के पांचवे दिन इन्हीं की पूजा की जाती है| इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में होता है। स्कन्द कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है| इनके विग्रह में स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं। स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है|

माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है | यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है| एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है|

स्कन्द माता के उपासना मंत्र-

“सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी.
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |


स्कन्द माता की कथा-

दुर्गा पूजा के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है| कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से पुकारा गया है| माता इस रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नज़र आती हैं| माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है| जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता अपने भक्तों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं| देवी स्कन्दमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं और मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है|

स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही महेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है| देवी स्कंदमाता पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं| माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है| जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं|

स्कन्दमाता की पूजन विधि- 

कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से अगर हम दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है| इस चक्र का भेदन करने के लिए पहले मां की विधिपूर्वक पूजा करते हैं| पूजन के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करते हैं जैसे अब तक के चार दिनों में किया है | देवी की पूजा के पश्चात भगवन भोले नाथ और ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं | देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है| देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है| वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिएइ

स्कन्दमाता का ध्यान-

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कन्दमाता का स्तोत्र पाठ-

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

स्कन्दमाता का कवच-


ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

नवरात्रि के आठवें दिन होती है महागौरी की पूजा

माँ दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम है महागौरी| महागौरी आदी शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाश-मान होता है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी हैम माँ महागौरी की अराधना से भक्तों को सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है| दुर्गा सप्तशती में शुभ निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवतागण कर रहे थे वह महागौरी हैं| देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया| यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं यही शिवा और शाम्भवी के नाम से भी जानी जाती हैं| महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कून्द के फूल की गयी है। इनकी आयु आठ वर्ष बतायी गयी है। इनका दाहिना ऊपरी हाथ में अभय मुद्रा में और निचले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। बांये ऊपर वाले हाथ में डमरू और बांया नीचे वाला हाथ वर की शान्त मुद्रा में है। पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। जो स्त्री इस देवी की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वयं करती हैं. कुंवारी लड़की मां की पूजा करती हैं तो उसे योग्य पति प्राप्त होता है. पुरूष जो देवी गौरी की पूजा करते हैं उनका जीवन सुखमय रहता है देवी उनके पापों को जला देती हैं और शुद्ध अंत:करण देती हैं. मां अपने भक्तों को अक्षय आनंद और तेज प्रदान करती हैं|

महागौरी मंत्र-

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

महागौरी की कथा-

माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं. जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं| इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं. पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं|

एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा| महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं.देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”| महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं| देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया| इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया| देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है, और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी| इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं|

महागौरी की पूजन विधि-

अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं| देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं |

महागौरी मंत्र


या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

महागौरी का ध्यान -
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

महागौरी का स्तोत्र पाठ-


सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

महागौरी का कवच मंत्र-


ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥

महागौरी की आरती-

जै माहांगौरी जगत की माया|
जै उमा भवानी जय महांमाया||

हरिद्वार कनखल के पासा|
महांगौरी तेरा वहा निवासा||

चन्द्रकली और ममता अम्बे|
जै शक्ति जै जै मां जगदम्बे||

भीमा देवी विमला माता|
कौशकी देवी जग विख्याता||

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा|
महांकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा||

सती सत हवन कुण्ड में था जलाया|
उसी धुएं ने रूप काली बनाया||

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया|
तो संकर ने त्रिशूल अपना दिखाया||

तभी मां ने महांगौरी नाम पाया|
शरण आने वाले का संकट मिटाया||

शनिवार को तेरी पूजा जो करता|
मां बिगङा हुआ काम उसका सुधरता||

चमन बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो|
महांगौरी मां तेरी हरदम ही जय हो||

रविवार व्रत के नियम, कथा व आरती

|| रविवार व्रत के नियम ||

सुबह स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, शान्त मन से व्रत का संकल्प लें| सत्य बोले व ईमानदारी का व्यव्हार करें और परोपकारी का काम अवश्य करें | व्रत के दिन एक ही समय भोजन करें | भोजन तथा फलाहार सूर्यास्त से पहले ही कर लें | यदि सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य भगवान को जल देकर ही अन्न ग्रहण करें | व्रत की समाप्ति के पूर्व रविवार की कथा अवश्य सुनें या पढ़ें| व्रत के दिन नमकीन या तेलयुक्त भूलकर भी न खाएं| इस व्रत के करने से नेत्र रोग को छोड़कर सभी रोग दूर होते हैं | राज सभा में सम्मान बढ़ता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है|

|| रविवार व्रत कथा ||

एक बुढ़िया का नियम था प्रति रविवार को प्रातः स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर, भिजन तैयार कर, भगवान को भोग लगा कर, स्वयं भोजन करती थी| ऐसा व्रत करने से उसका घर सभी धन धान्य से परिपूर्ण था| इस प्रकार कुछ दिन उपरांत, उसकी एक पड़ोसन, जिसकी गाय का गोबर यह बुढ़िया लाया करती थी, विचार करने लगी कि यह वृद्धा, सर्वदा मेरी गाय का ही गोबर ले जाती है|

अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी| बुढ़िया, गोबर ना मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से ना लीप सकी| इसलिये उसने ना तो भोजन बनाया, ना भोग लगाया, ना भोजन ही किया| इस प्रकार निराहार व्रत किया. रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गयी| रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न में भोजन ना बनाने और भोग ना लगाने का कारण पूछा | वृद्धा ने गोबर ना मिलने का कारण बताया तब भगवान ने कहा, कि माता, हम तुम्हें सर्व कामना पूरक गाय देते हैं|

भगवान ने उसे वरदान में गाय दी| साथ ही निर्धनों को धन, और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर किया| साथ ही उसे अंत समय में मोक्ष दिया, और अंतर्धान हो गये| आंख खुलने पर आंगन में अति सुंदर गाय और बछड़ा पाया| वृद्ध अति प्रसन्न हो गयी| जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय बछडे़ को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी. साथ ही देखा, कि गाय ने सोने का गोबर किया है| उसने वह गोबर अपनी गाय्त के गोबर से बदल दिया| रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी ना लगी. भगवान ने देखा, कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है|

तो उन्होंने जोर की आंधी चला दी| इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया| सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही| अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी| उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी, कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है| राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली| बुढ़िया ने वियोग में, अखंड व्रत रखे रखा. उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया| राजा ने रात को उसे स्पने में गाय लौटाने को कहा. प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया\ साथ ही पड़ोसन को उचित दण्ड दिया. राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया| तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे| और वे खुशियों को प्राप्त हुए|



|| रविवार की आरती ||

कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे ।।
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेघ धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम ।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो रामा ।

शनिवार व्रत की विधि, कथा और आरती

|| शनिवार व्रत की विधि ||


शनिवार का व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक ही बार भोजन करना चाहिए | भोजन में काले तिल और उरद का विशेष महत्त्व है | शनिदेव की पूजा में तांबे के पैसे, काले उरद और काला वस्त्र चढ़ाया जाता है| इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं |


|| शनिवार के व्रत की कथा ||


एक समय सूर्य, चंद्रमा, मंगल,बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू, केतु इन सब ग्रहों में आपस में विवाद हो गया कि हममे से सबसे बड़ा कौन है | सब अपने को बड़ा कहते थे | जब आपस में कोई निश्चय ना हो सका तो सब आपस में झगड़ते हुए देवराज इंद्र के पास गए और कहने लगे कि आप सब देवताओं के राजा है अतः आप हमारा न्याय करके बतलावे कि हम नव ग्रहों में से सबसे बड़ा कौन है |
देवराज इंद्र देवताओं का प्रश्न सुनकर घबरा गए और कहने लगे कि मुझमे यह सामर्थ्य नहीं है कि मै किसी को छोटा या बड़ा बतला सकूँ | मै अपने मुख से कुछ नहीं कह सकता, हाँ , एक उपाय हो सकता है | इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य दूसरों के दुखों को निवारण करने वाले है | इसलिए आप सब उनके पास जाएँ, वाही आपके विवाद का निवारण करेंगे |

सभी गृह-देवता देवलोक से चलकर भूलोक में राजा विक्रमादित्य की सभा में उपस्थित हुए और अपना प्रश्न राजा के सामने रखा |

राजा विक्रमादित्य ग्रहों की बाते सुनकर गहन चिंता में पड़ गए कि मै अपने मुख से किसको छोटा और किसे बड़ा बतलाऊंगा | जिसे छोटा बतलाऊंगा, वही क्रोध करेगा | उनका झगडा निपटने के लिए उन्होंने एक उपाय सोचा और सोना, चाँदी, कांसा, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लोहा नौ धातुओं के नौ आसन बनवाएं | सब आसनों को क्रम में जैसे सोना सबसे पहले और लोहा सबसे पीछे बिछाया गया |

इसके बाद राजा ने सब ग्रहों से कहा कि सब अपना अपना आसन ग्रहण करें | जिसका आसन सबसे आगे, वह सबसे बड़ा और जिसका आसन सबसे पीछे वह सबसे छोटा जानिए | क्योकि लोहा सबसे पीछे था और शनिदेव का आसन था इसलिए शनिदेव ने समझ लिया कि राजा ने मुझे सबसे छोटा बना दिया है|

इस निर्णय पर शनिदेव को बहुत क्रोध आया | उन्होंने कहा कि राजा तू मुझे नहीं जानता | सूर्य एक राशी पर एक महीना, चन्द्रमा सवा दो महीना दो दिन, मँगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने , बुध और शुक्र एक-एक महीना विचरण करते है | परन्तु मै एक राशी पर ढाई वर्ष से लेकर साढ़े सात वर्ष तक रहता हूँ | बड़े बड़े देवताओं को भी मैंने भीषण दुःख दिया है | राजन सुनो ! श्री रामचन्द्रजी को भी साढ़े साती आई और उन्हें वनवास हो गया | रावण पर आई तो राम ने वानरों की सेना लेकर लंका पर चढाई कर दी और रावण के कुल का नाश कर दिया | हे राजन ! अब तुम सावधान रहना |
राजा विक्रमादित्य ने कहा- जो भाग्य में होगा, देखा जायेगा |

इसके बाद अन्य ग्रह तो प्रसन्नता से अपने अपने स्थान पर चले गए परन्तु शनिदेव क्रोध से वहां से गए |

कुछ काल व्यतीत होने पर जब राजा विक्रमादित्य को साढ़े साती की दशा आई तो शनिदेव घोड़ों के सौदागर बनकर अनेक घोड़ो सहित राजा की राजधानी में आये | जब राजा ने घोड़ो के सौदागर के आने की बात सुनी तो अपने अश्वपाल को अच्छे अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी | अश्वपाल ऐसी अच्छी नस्ल के घोड़े देखकर और एक अच्छा- सा घोडा चुनकर सवारी के लिए राजा घोड़े पर चढ़े |

राजा के पीठ पर बैठते ही घोडा तेजी से भागा | घोडा बहुत दूर एक घने जंगल में जाकर राजा को छोड़कर अंतर्ध्यान हो गया | इसके बाद राजा विक्रमादित्य अकेले जंगल में भटकते फिरते रहे | भूख-प्यास से दुखी राजा ने भटकते-भटकते एक ग्वाले को देखा | ग्वाले ने राजा को प्यास से व्याकुल देखकर पानी पिलाया | राजा की अंगुली में अंगूठी थी | वह अंगूठी राजा ने निकल कर प्रसन्नता से ग्वाले को दे दी और स्वयं नगर की ओर चल दिए|

राजा नगर पहुंचकर एक सेठ की दुकान पर जाकर बैठ गए और अपने आप को उज्जैन का रहने वाला और अपना नाम विका बताया | सेठ ने उनको एक कुलीन मनुष्य समझ कर जल आदि पिलाया | भाग्यवश उस दिन सेठ की दुकान पर बहुत अधिक बिक्री हुई | तब सेठ उसे भाग्यवान पुरुष समझकर अपने घर ले गया | भोजन करते समय राजा ने एक आश्चर्यजनक घटना देखि, जिस खूंटी पर हार लटक रहा था, वह खूंटी उस हार को निगल रही थी|

भोजन के पश्चात जब सेठ उस कमरे में आया तो उसे कमरे में हार नहीं मिला | उसने यही निश्चय किया कि सिवाय विका के यहाँ कोई नहीं आया, अतः अवश्य ही उसने हार चोरी किया है | परन्तु विका ने हार लेने से इनकार कर दिया | इस पर पाँच-सात आदमी उसे पकड़कर नगर-कोतवाल के पास ले गए|

फौजदार ने उसे राजा के सामने उपस्थित कर दिया और कहा कि यह आदमी भला प्रतीत होता है, चोर मालूम नहीं होता, परन्तु सेठ का कहना है कि इसके सिवा और कोई घर में आया ही नहीं, इसलिए अवश्य ही चोरी इसने की है | राजा ने आगया दी कि इसके हाथ-पैर काटकर चौरंगिया किया जाये | तुरंत राजा की आज्ञा का पालन किया गया और विका के हाथ-पैर काट दिए गए |
कुछ काल व्यतीत होने पर एक तेली उसे अपने घर ले गया और उसको कोल्हू पर बिठा दिया | वीका उसपर बैठा हुआ अपनी जबान से बैल हांकता रहा | इस काल में राजा कि शनि कि दशा समाप्त हो गयी | वर्षा ऋतु के समय वह मल्हार राग गाने लगा | यह राग सुनकर उस राजा की कन्या मनभावनी उस राग पर मोहित हो गयी | राजकन्या ने राग गाने वाले की खबर लाने के लिए अपनी दासी को भेजा | दासी सारे शहर में घुमती रही | जब वह तेली के घर के निकट से निकली तो क्या देखती है कि तेली के घर में चौरंगिया राग गा रहा था | दासी ने लौटकर राजकुमारी को सारा वृतांत सुना दिया | बस उसी क्षण राजकुमारी ने यह प्राण कर लिया कि अब कुछ भी हो मुझे उसी चौरंगिया से विवाह करना है |

प्रातःकाल होते ही जब दासी ने राजकुमारी को जगाना चाहा तो राजकुमारी अनशन व्रत ले कर पड़ी रही | दासी ने रानी के पास जाकर राजकुमारी के ना उठने का वृतांत कहा | रानी ने वहां आकर राजकुमारी को जगाया और उसके दुःख का कारन पुछा | राजकुमारी ने कहा कि माताजी तेली के घर में जो चौरंगिया है , मै उसी से विवाह करुँगी |माता ने कहा-पगली, तू यह क्या कह रही है? तुझे किसी देश के राजा के साथ परिणय जायेगा | कन्या कहने लगी कि माताजी मै अपना प्रण कभी ना तोडूंगी| माता ने चिंतित होकर यह बात राजा को बताई | महाराज ने भी आकर उसे समझाया कि मै अभी देश-देशांतर में अपने दूत भेजकर सुयोग्य,रूपवान एवं बड़े-से-बड़े गुणी राजकुमार के साथ तुम्हारा विवाह करूँगा | ऐसी बात तुम्हे कभी नहीं विचारनी चाहिए | परन्तु राजकुमारी ने कहा- "पिताजी, मै अपने प्राण त्याग दूंगी किसी दुसरे से विवाह नहीं करुँगी | " यह सुनकर राजा ने क्रोध से कहा यदि तेरे भाग्य में यही लिखा है तो जैसी तेरी इच्छा हो, वैसे ही कर | राजा ने तेली को बुलाकर कहा तेरे घर में जो चौरंगिया है मै उससे अपनी कन्या का विबाह कराना चाहता हूँ | तेली ने कहा- महाराज यह कैसे हो सकता है ? राजा ने कहा कि भाग्य के लिखे को कोई टाल नहीं सकता | अपने घर जाकर विवाह की तैयारी करो |

राजा ने सारी तैय्यारी कर तोरण और बन्दनवार लगवाकर राजकुमारी का विवाह चौरंगिया के साथ कर दिया | रात्रि को जब विक्रमादित्य और राजकुमारी महल में सोये तब आधी रात के समय शनिदेव ने विक्रमादित्य को स्वप्न दिया और कहा कि राजा मुझको छोटा बतलाकर तुमने कितना दुःख उठाया | राजा ने शनिदेव से क्षमा मांगी | शनिदेव ने राजा को क्षमा कर दिया और प्रसन्न होकर विक्रमादित्य को हाथ-पैर दिए | तब राजा विक्रमादित्य ने शनिदेव से प्रार्थना की कि महाराज मेरी प्रार्थना स्वीकार करें, जैसा दुःख मुझे दिया है ,ऐसा किसी को ना दें | शनिदेव ने कहा कि तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार है | जो मनुष्य मेरी कथा कहेगा या सुनेगा उसे मेरी दशा में कभी भी दुःख नहीं होगा | जो नित्य मेरा ध्यान करेगा या चींटियों को आटा डालेगा उसके सब मनोरथ पूर्ण होंगे | इतना कह कर शनिदेव अपने धाम को चले गए |

जब राजकुमारी मनभावनी की आँख खुली और उसने चौरंगिया को हाथ-पैरो के साथ देखा तो आश्चर्यचकित हो गयी | उसको देखकर राजा विक्रमादित्य ने अपना सारा हाल कहा की मै उज्जयिनी का राजा विक्रमादित्य हूँ| यह घटना सुनकर राजकुमारी अति प्रसन्न हुई | प्रातकाल जब सखियों ने राजकुमारी से पिछली रात का हाल-चाल पूछा तो उसने अपने पति का समस्त वृतांत कह सुनाया | तब सबने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा की इश्वर आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करे | जब सेठ ने यह घटना सुनी तो वह राजा विक्रमादित्य के पास आया और उनके पैरो पर गिरकर क्षमा मांगने लगा की आप पर मैंने चोरी का झूठा दोष लगाया था | आप जो चाहे,मुझे दंड दे | राजा ने कहा-मुझ पर शनिदेव का कोप था इसी कारण यह सब दुःख मुझे प्राप्त हुए,इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है | तुम अपने घर जाकर अपना कार्य करो, तुम्हारा कोई अपराध नहीं | सेठ बोला-"महाराज! मुझे तभी शांति मिलेगी, जब आप मेरे घर चलकर प्रीतिपूर्वक भोजन करेंगे|" राजा ने कहा जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करें |

सेठ ने अपने घर जाकर अनेक प्रकार के सुंदर व्यंजन बनवाए और राजा विक्रमादित्य को प्रीतिभोज दिया | जिस समय राजा भोजन कर रहे थे उस समय एक आश्चर्यजनक घटना घटती सबको दिखाई दी | जो खूंटी पहले हार निगल गयी थी वह अब हार उगल रही थी | जब भोजन समाप्त हो गया तब सेठ ने हाथ जोड़कर बहुत-सी मोहरें राजा को भेंट की और कहा-"मेरी श्रीकंवरी नामक एक कन्या है, आप उसका पाणिग्रहण करे |" राजा विक्रमादित्य ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली | तब सेठ ने अपनी कन्या का विवाह राजा के साथ कर दिया और बहुत-सा दान-दहेज़ आदि दिया | कुछ दिन तक उस राज्य में निवास करने के पश्चात राजा विक्रमादित्य ने अपने श्वसुर राजा से कहा की मेरी उज्जैन जाने की इच्छा है |

कुछ दिन बाद विदा लेकर राजकुमारी मनोभावनी, सेठ की कन्या तथा दोनों की जगह से मिला दहेज़ में प्राप्त अनेक दास-दासी, रथ और पालकियों सहित राजा विक्रमादित्य उज्जैन की तरफ चले | जब वो नगर के निकट पहुंचे और पुरवासियों ने आने का संवाद सुना तो उज्जैन की समस्त प्रजा आगवानी के लिए आई | प्रसन्नता से राजा अपने महल में पधारे | सारे नगर में भारी उत्सव मनाया गया और शनिदेव को दीप माला की गयी | दुसरे दिन राजा ने अपने पूरे राज्य में यह घोषणा करवाई की शनिदेव सभी ग्रहों में सर्वोपरि है | मैंने इन्हें छोटा बतलाया, इसी से मुझे यह दुःख प्राप्त हुआ | इसप्रकार सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा होने लगी | राजा और प्रजा अनेक प्रकार के सुख भोगने लगे | जो कोई शनिदेव की इस कथा को पढता या सुनता है, शनिदेव की कृपा से उसके सब दुःख दूर हो जाते है | व्रत के दिन शनिदेव की कथा को अवश्य पढ़ना चाहिए |

|| अथ शनिवार व्रत की आरती ||


आरती कीजै नरसिंह कुँवर की। वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥
पहली आरती प्रहलाद उबारे। हिरणाकुश नख उदर विदारे॥
दूसरी आरती वामन सेवा। बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे। सहसबाहु के भुजा उखारे॥
चौथी आरती असुर संहारे। भक्त विभीषण लंक पधारे॥
पाँचवीं आरती कंस पछारे। गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा। हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥

शुक्रवार व्रत की विधि, कथा और आरती

|| शुक्रवार व्रत करने की विधि ||

इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड व चने रखे, सुनने वाला संतोषी माता की जय | संतोषी माता की जय | इस प्रकार बोलते जायें| कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड चना गौ माता को खिलावें | कलश में रखा हुआ गुड चना सबको प्रसाद के रूप में बाँट दें, कथा से पहले कलश को जल से भरें उसके ऊपर गुड चने से भरा कटोरा रखें | कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के पानी को घर में सब जगहों पर छिडकें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल देवें | सवा रूपए का गुड चना लेकर माता का व्रत करें | गुड घर में हो तो लेवें विचार न करें माता भावना की भूखीं हैं कम ज्यादा का कोई विचार नहीं इसलिए जितना भी बन पड़े अर्पण करें, श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन हो व्रत करना चाहिए| व्रत का उद्यापन में आधी सेर ख़जा मोमनदार पूर्वा, खीर, चने का शाक, नैवैध रखें, घी का दीपक जला संतोषी माता की जय- जयकार नारियल फोड़ें | इस दिन घर में कोई खाते न खावे और न किसी को खाने दे| इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें, देवर जेठ के लड़के मिलते हों तो दुसरे को न बुलावें| उन्हें खाते की कोई वास्तु न दें तथा भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा देवें, नगद पैसे न दें, कोई वास्तु दक्षिणा में दें| व्रत करने वाला कथा सुन प्रसाद ले एक समय भोजन करें, इस तरह से माता प्रसन्न होगी, दुःख दरिद्रता दूर होकर मनोकामना पूरी होगी|




|| शुक्रवार व्रत कथा ||
एक बुढिय़ा थी, उसके सात बेटे थे। छह कमाने वाले थे। एक निक्कमा था। बुढिय़ा मां छहो बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और कुछ झूटन बचती वह सातवें को दे देती थी, परन्तु वह बड़ा भोला-भाला था, मन में कुछ विचार नहीं करता था। एक दिन वह बहू से बोला- देखो मेरी मां को मुझ पर कितना प्रेम है। वह बोली-क्यों नहीं, सबका झूठा बचा हुआ जो तुमको खिलाती है। वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आंखों से न देख लूं मान नहीं सकता। बहू ने हंस कर कहा- देख लोगे तब तो मानोगे?

कुछ दिन बात त्यौहार आया, घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया, वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, मां ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जिमाया। वह देखता रहा। छहों भोजन कर उठे तब मां ने उनकी झूंठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया। जूठन साफ कर बुढिय़ा मां ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा? वह कहने लगा- मां मुझे भोजन नहीं करना, मै अब परदेस जा रहा हूं। मां ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा। वह बोला- हां आज ही जा रहा हूँ । यह कह कर वह घर से निकल गया। चलते समय स्त्री की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे थाप रही थी।

वहां जाकर बोला-दोहा- हम जावे परदेस आवेंगे कुछ काल। तुम रहियो संन्तोष से धर्म आपनो पाल।

वह बोली- जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय। राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।

दो निशानी आपनी देख धरूं में धीर। सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।

वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे। वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुंचा। वहां एक साहूकार की दुकान थी। वहां जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो। साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा। लड़के पूछा- तनखा क्या दोगे? साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह ७ बजे से १० बजे तक नौकरी बजाने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया। सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उस छोड़कर चला गया।

अब बहू पर क्या बीती? सो सुनों, सास ससुर उसे दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली मे पानी। इस तरह दिन बीतते रहे। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते मे बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी। वह वहां खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसकेकरने से क्या फल मिलता है? इस व्रत को करने की क्या विधि है? यदि तुम अपने इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगी तो मै तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी। तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनों, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है। लक्ष्मी आती है। मन की चिन्ताएं दूर होती है। घर में सुख होने से मन को प्रसन्नता और शान्ति मिलती है। निपूती को पुत्र मिलता है, प्रीतम बाहर गया हो तो शीध्र घर आवे, कवांरी कन्या को मन पसंद वर मिले, राजद्वारे में बहुत दिनों से मुकदमा चल रहा हो खत्म हो जावे, कलह क्लेश की निवृति हो सुख-शान्ति हो। घर में धन जमा हो, पैसा जायदाद का लाभ हो, रोग दूर हो जावे तथा और जो कुछ मन में कामना हो सो सब संतोषी माता की कृपा से पूरी हो जावे, इसमें संदेह नहीं।

वह पूछने लगी- यह व्रत कैसे किया जाए यह भी बताओ तो बड़ी कृपा होगी। वह कहने लगी- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लेवे। बिना परेशानी और श्रध्दा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रतयेक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना,इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना, परन्तु नियम न टूटे। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना। तीन मास में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना। आठ लड़कों को भोजन कराना, जहां तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ौसियों को बुलाना। उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में खटाई न खाय।

यह सुन बुढिय़ा के लडके की बहू चल दी। रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी-'यह मंदिर किसका है? सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी। दीन हो विनती करने लगी- मां में निपट अज्ञानी हूं, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूं, हे माता जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं। माता को दया आई - एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे। इतने दिनों में इतना पैसा आया, इसमें क्या बड़ाई? लड़के ताने देने लगे- काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी, अब तो काकी बोलने से भी नहीं बोलेगी। बेचारी सरलता से कहती- भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है। ऐसा कह कर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी। मां मैने तुमसे पैसा कब मांगा है। मुझे पैसे से क्या काम है? मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मै तो अपने स्वामी के दर्शन मांगती हूं। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा-जा बेटी, तेरा स्वामी आवेगा। यह सुनकर खुशी से बावळी होकर घर में जा काम करने लगी।

अब संतोषी मां विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैने कह तो दिया कि तेरा पति आवेगा, कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता। उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढिय़ा के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है। वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूं कहो क्या आज्ञा है? मां कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं? वह बोला- मेरे पास सब कुछ है मां-बाप है बहू है क्या कमी है। मां बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेर मां-बाप उसे त्रास दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले। वह बोला- हां माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं? मां कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ। देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, साझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा।

अब सवेरे जल्दी उठ भाई-बंधुओं से सपने की सारी बात कहता है। वे सब उसकी अनसुनी कर दिल्लगी उड़ाने लगे। कभी सपने भी सच होते हैं। एक बूढ़ा बोला- देख भाई मेरी बात मान, इस प्रकार झूंठ-सांच करने के बदले देवता ने जैसा कहा है वैसा ही करने में तेरा क्या जाता है। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठता है। थोड़ी देर में क्या देखता है कि देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहां काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।

वह बेचारी जंगल में लकड़ी लेने जाती है। लौटते वक्त माताजी क मंदिर में विश्राम करती है। वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता, यह छूल कैसे उड़ रही है? माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकडिय़ों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर रख। तेरे पति को लकडिय़ों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहां रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर मां से मिलने जाएगा, तब तू लकडिय़ों का बोझ उठाकर जाना और चौक मे गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? बहुत अच्छा। माताजी से कहकर वह प्रसन्न मन से लकडिय़ों के तीन ग_र ले आई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा। इतने में मुसाफिर आ पहुंचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गांव को गया। सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकडिय़ों का भारी बाझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है?

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है। अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है। मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां कहती है-बेटा यह तेरी बहु है। आज १२ बर्ष हो गए, जब से तू गया है तब से सारे गांव में जानवर की तरह भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। अब तुझे देख भूसी की रोटी और नारियल के खोपड़े में पानी मांगती है। वह लज्जित हो बोला- ठीक है मां मैने इसे भी देखा और तुम्हें भी देखा है, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूंगा। अब मां बोली-ठीक है बेटा, जैसी तेरी मरजी हो सो कर। यह कह ताली का गुच्छा पटक दिया। उसने ताली लेकर दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी।

इतने में शुक्रवार आया। उसने अपने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसका पति बोला -अच्छा, खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो रे, भोजन के समय सब लो खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरूचि होती है। वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है। लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पेसे दे दिए। लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकठ्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा।

बहु से यह वचन सहन नहीं हुए। रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी? माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। इतनी जन्दी सब बातें भुला दी? वह कहने लगी- माता भूलती तो नहींं, न कुछ अपराध किया है, मैने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मै फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली- अब भूल मत करना। वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे? मां बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलगा। वह निकली, राह में पति आता मिला। वह पूछती है- तुम कहां गए थे? वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो।

घर गए, कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया। वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा- करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना। लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमे खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो। वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।

माता की कृपा होते ही नवें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी। मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसक घर चलूं? इसका आसरा देखू तो सही। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी। देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुडैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा। वह बोली-रांड देखकर क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे। वह बोली- मां मै जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है। इतना कहकर झट से सारे किवाड़ खोल दिए।

सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।

बोलो संतोषी की माता की जय।





|| श्री संतोषी माता की आरती ||



जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥ जय…

सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥ जय…

गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे ।
मंद हँसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥ जय…

स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥ जय…

गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥ जय…

शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥ जय…

मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥ जय…

भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥ जय…

दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए ।
बहु धन-धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥ जय…

ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥ जय…

शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥ जय…

संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे ।

ॠद्धि-सिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥ जय…

मंगलवार व्रत विधि,कथा व आरती

|| मंगलवार के व्रत की विधि ||

- यह हनुमान जी का व्रत है|
- पूजन में लाल फूल और मिष्ठान चढ़ाये जाते हैं|
- इस दिन शाम के समय, हनुमान जी का पूजन करने के बाद एक बार भोजन करना होता है|
भोजन में मीठी चीजें खाई जाती हैं|
- मंगलवार का व्रत सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है|
- इसे करने से भक्त के रक्त विकार दूर होते हैं|
- उसको राज सम्मान व पुत्र की प्राप्ति होती है|

|| मंगलवार व्रत कथा ||

प्राचीन काल की बात है, एक नगर में एक ब्रह्मण युगल रहता था| उस दम्पत्ति के कोई सन्तान न हुई थी, जिसके कारण पति-पत्नी दुःखी थे| वह ब्राहमण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला गया| वह पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना प्रकट किया करता था| घर पर उसकी पत्नी मंगलवार व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिये किया करती थी| मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी| एक बार कोई व्रत आ गया, जिसके कारण ब्राम्हणी भोजन न बना सकी, तब हनुमान जी का भोग भी नहीं लगाया| वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर अन्न ग्रहण करुंगी|


वह भूखी प्यासी छः दिन पड़ी रही| मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा आ गई तब हनुमान जी उसकी लगन और निष्ठा को देखकर अति प्रसन्न हो गये| उन्होंने उसे दर्शन दिए और कहा – मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ| मैं तुझको एक सुन्दर बालक देता हूँ जो तेरी बहुत सेवा किया करेगा| हनुमान जी मंगलवार को बाल रुप में उसको दर्शन देकर अन्तर्धान हो गए| सुन्दर बालक पाकर ब्राम्हणी अति प्रसन्न हुई
ब्राम्हणी ने बालक का नाम मंगल रखा|


कुछ समय पश्चात् ब्रह्मण वन से लौटकर आया. प्रसन्नचित्त सुन्दर बालक घर में क्रीड़ा करते देखकर वह ब्राहमण पत्नी से बोला – यह बालक कौन है. पत्नी ने कहा – मंगलवार के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी ने दर्शन दे मुझे बालक दिया है| पत्नी की बात छल से भरी जान उसने सोचा यह कुलटा व्याभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिये बात बना रही है| एक दिन उसका पति कुएँ पर पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ, वह मंगल को साथ ले चला और उसको कुएँ में डालकर वापिस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहाँ है|


तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया| उसको देख ब्राहमण आश्चर्य चकित हुआ, रात्रि में उसके पति से हनुमान जी ने स्वप्न में कहे – यह बालक मैंने दिया है| तुम पत्नी को कुलटा क्यों कहते हो| पति यह जानकर हर्षित हुआ| फिर पति-पत्नी मंगल का व्रत रख अपनी जीवन आनन्दपूर्वक व्यतीत करने लगे| जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है और नियम से व्रत रखता है उसे हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होता है|

|| अथ मंगलवार की आरती ||

आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपै । रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ।।

लंका जारि असुर सब मारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे । लाय संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावण की भुजा उखारे ।।
बाईं भुजा असुर संहारे । दाईं भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारें । जय जय जय हनुमान उचारें ।।

कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।
लंक विध्वंस किए रघुराई । तुलसिदास प्रभु कीरति गाई ।।