लखनऊ| कितनी सुहानी थी 15 अगस्त 1947 की वह सुबह जब देश आज़ाद हुआ| कितने समय बाद देशवासियों ने बिना किसी बंधन के नई सुबह का स्वागत किया था, दिल में उमंग था और देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बलिदानियों के सम्मान में मस्तक झुका हुआ था|
आज़ादी की इस पहली सुबह के दिन राज्यपाल सरोजनी नायडू लखनऊ मेल से सुबह सात बजे दिल्ली से राजधानी लखनऊ पहुंची। स्टेशन पर उन्हें लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे| सरोजनी नायडू रेलवे स्टेशन से सीधे राजभवन पहुंचीं जहां पर उन्होंने आज़ादी की सुबह ठीक आठ बजे झंडारोहण किया| इस दौरान पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बच्चे भी घरों से बाहर निकल आए और सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ आया|
इसके बाद तो जैसे पूरा लखनऊ खुशी से झूम उठा। सभी लोग सड़कों पर ही नज़र आ रहे थे, भीड़ इतनी थी कि लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा था कि किस ओर जाएं। हजरतगंज से विशेश्र्वरनाथ रोड तक तो इतनी भीड़ थी कि लोगों को थोड़ी दूर जाने में ही घंटों लग जाते थे| आसपास के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों लोग काफी उत्साहित थे, सड़कों पर ढोल-नगाड़े के साथ जश्न का माहौल था| मिठाई की दुकान हो या दूध की दुकान हर तरफ आजादी का जश्न का माहौल था। मुफ्त में मिठाई व दूध बांटा जा रहा था|
भीड़ के बीच किसी के हाथ में अखबार दिख जाता तो लोग उसे पढ़ने के लिए टूट पड़ते। अंग्रेज क्या कह गए कांग्रेस से? लोग इस विचार में डूबे थे कि कहीं फिर से अंग्रेजों का खेल शुरू
न हो जाये?
अगर देखा जाये तो यह चर्चाएं भी आम थीं। मुस्लिम टीले वाली मस्जिद में अल्लाह से देश को आजादी मिलने का शुक्रिया अदा करने कर रहे थे| इस मौके पर ईसाई भी पीछे नहीं रहे उन्होंने भी कई आयोजन चर्च में किये। इस दिन कैसरबाग बारादरी में ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन ने झंडा फहराया था। राजा विशेश्र्वर दयाल सेठ ने भी पायनियर हाउस में झंडारोहण किया था। इसी दिन शाम को छह बजे अमीनाबाद पार्क में मीटिंग भी हुई थी लिहाजा शाम होते ही भीड़ उधर बढ़ चली। हर रास्ते रोशनी से जगमगा गए थे| गोमती में महिलाएं और बच्चे स्वतंत्रता की देवी को दीप अर्पित कर रहे थे|
आज़ादी की इस पहली सुबह के दिन राज्यपाल सरोजनी नायडू लखनऊ मेल से सुबह सात बजे दिल्ली से राजधानी लखनऊ पहुंची। स्टेशन पर उन्हें लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे| सरोजनी नायडू रेलवे स्टेशन से सीधे राजभवन पहुंचीं जहां पर उन्होंने आज़ादी की सुबह ठीक आठ बजे झंडारोहण किया| इस दौरान पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बच्चे भी घरों से बाहर निकल आए और सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ आया|
इसके बाद तो जैसे पूरा लखनऊ खुशी से झूम उठा। सभी लोग सड़कों पर ही नज़र आ रहे थे, भीड़ इतनी थी कि लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा था कि किस ओर जाएं। हजरतगंज से विशेश्र्वरनाथ रोड तक तो इतनी भीड़ थी कि लोगों को थोड़ी दूर जाने में ही घंटों लग जाते थे| आसपास के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों लोग काफी उत्साहित थे, सड़कों पर ढोल-नगाड़े के साथ जश्न का माहौल था| मिठाई की दुकान हो या दूध की दुकान हर तरफ आजादी का जश्न का माहौल था। मुफ्त में मिठाई व दूध बांटा जा रहा था|
भीड़ के बीच किसी के हाथ में अखबार दिख जाता तो लोग उसे पढ़ने के लिए टूट पड़ते। अंग्रेज क्या कह गए कांग्रेस से? लोग इस विचार में डूबे थे कि कहीं फिर से अंग्रेजों का खेल शुरू
न हो जाये?
अगर देखा जाये तो यह चर्चाएं भी आम थीं। मुस्लिम टीले वाली मस्जिद में अल्लाह से देश को आजादी मिलने का शुक्रिया अदा करने कर रहे थे| इस मौके पर ईसाई भी पीछे नहीं रहे उन्होंने भी कई आयोजन चर्च में किये। इस दिन कैसरबाग बारादरी में ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन ने झंडा फहराया था। राजा विशेश्र्वर दयाल सेठ ने भी पायनियर हाउस में झंडारोहण किया था। इसी दिन शाम को छह बजे अमीनाबाद पार्क में मीटिंग भी हुई थी लिहाजा शाम होते ही भीड़ उधर बढ़ चली। हर रास्ते रोशनी से जगमगा गए थे| गोमती में महिलाएं और बच्चे स्वतंत्रता की देवी को दीप अर्पित कर रहे थे|
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