महाकाल की नगरी: उज्जैन

उज्जैन : हिन्दुओं में मोक्ष प्राप्ति का सबसे आसन साधन है तीर्थ स्थल का भ्रमण करना| भारत के मध्य प्रदेश में स्थित प्राचीन नगरी उज्जैन देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हैं, जो महाकाल सदा शिव के आशीर्वाद की छत्र-छाया में है| विंध्यपर्वतमाला के समीप एवं क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित 'महाकाल की नगरी' के नाम से विख्यात इस नगरी में आकर आप शिव कि भक्ति में खो जाएंगे| कथा पुरानो में कहा गया है कि जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब उसमें से कई अमूल्य चीजें निकली थीं। इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और राक्षसों में बारह दिनों तक भीषण संघर्ष हुआ| इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी| उन्ही अमृत बूंदों में से एक बूंद से शिप्रा नदी का निर्माण हुआ जिसके तट पर स्थित है पवित्र नगरी उज्जैन| इस पवित्र नगरी को ‘कालिदास नगरी’ भी कहा जाता है|

चारों तरफ महादेव के भव्य मंदिरों से घिरे इस नगर में महाकालेश्वर मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, काल भैरव मंदिर जैसे कई प्राचीन मंदिर हैं| इसके अतिरिक्त बड़े गणेश मंदिर, हरसिध्दि देवी मंदिर, और भर्तृहरि की गुफा भी मौजूद है जहां जाकर आप अलोकिक शक्तियों को महसूस कर पाएंगे| भारत में कुम्भ का आयोजन प्रयास, नासिक, हरिध्दार और उज्जैन में किया जाता है। उज्जैन में आयोजित आस्था के इस पर्व को सिंहस्थ के नाम से पुकारा जाता है और ऐसा भी कहा जाता है कि सिंहस्थ कुम्भ में स्नान करने से मोक्ष कि प्राप्ति होती है|

आकर्षण केंद्र-
महाकाल मंदिर- उज्जैन का खास आकर्षण यहां का महाकाल मंदिर है। यहां का ज्योतिर्लिग पुराणों में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है। इसकी आस्था दूर-दूर तक फैली हुई है। यह मंदिर आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था, जिसके निर्माण में पुराने अवशेषों का उपयोग हुआ है| महाकालेश्वर का वर्तमान मंदिर तीन भागों में बंटा है। सबसे नीचे तलघर में महाकालेश्वर (मुख्य ज्योतिर्लिग), उसके ऊपर ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर नाग चंदेश्वर मंदिर है। नाग चंदेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक बार खुलता है, नागपंचमी के अवसर पर। महाकालेश्वर की यह स्वयंभू मूर्ति विशाल और नागवेष्टित है। शिवजी के समक्ष नंदीगण की पाषाण प्रतिमा है। शिवजी की मूर्ति के गर्भगृह के द्वार का मुख दक्षिण की ओर है। तंत्र में दक्षिण मूर्ति की आराधना का विशेष महत्व है। पश्चिम की ओर गणेश और उत्तर की ओर पार्वती की मूर्ति है। शंकर जी का पूरा परिवार यहीं है।

द्वारकाधीश मंदिर- यहां के द्वारकाधीश मंदिर में श्रीकृष्ण की चांदी की भव्य प्रतिमा रखी हुई है। मंदिर का परिसर और वातावरण इतना सुन्दर है कि यहां दर्शनार्थियों की हमेशा भीड़ लगी रहती है| मंदिर के दरवाजे भी चांदी के हैं।

हरसिद्धि देवी मंदिर- हरसिद्धि देवी सम्राट विक्रमादित्य की परम आराध्य थीं। कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने हरसिद्धि को ग्यारह बार अपना मस्तक काटकर चढ़ाया और हर बार फिर मस्तक जुड़ गया। इस मंदिर में चार द्वार हैं, दक्षिण में एक बावड़ी है। इसी मंदिर में अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति भी है। मंदिर के बीच एक गुफा भी मौजूद है जहां साधक साधना करते हैं। मंदिर के समक्ष दो ऊंचे विशाल दीप स्तंभ हैं, जिन पर 726 दीपों के स्थान बनाए हुए हैं। नवरात्रि के समय यहां दीप जलाए जाते हैं, जिनका भव्य दृश्य इस मंदिर को आलोकित करता है।
अमृतजल शिप्रा- यह पवित्र नदी हरसिद्धि देवी और श्रीराम मंदिर के पीछे पूर्वी छोर पर बहती है। इसका गुणगान महाकवि कालिदास और बाणभट्ट ने अपने काव्य में किया है, पर आज की शिप्रा दयनीय हालत में है। भक्तगण इसकी स्वच्छता का बहुत कम ध्यान रखते हैं। शिप्रा तट पर विशाल घाट, कई मंदिर और छतरियां बनी हुई हैं| दूर-दूर तक अनेकों घाट बने हुए हैं जिनमें रामघाट, नृसिंह घाट, छत्री घाट, सिद्धनाथ घाट, गंगा घाट और मंगलनाथ घाट प्रसिद्ध हैं।

चिंतामणि मंदिर- नगर के बाहर छह किलोमीटर की दूरी पर चिंतामणि गणेशजी का मंदिर है। यह मंदिर हमेशा ही दर्शनार्थियों से भरा रहता है। इच्छापूर्ण और चिंताहरण गणेश जी के इस मंदिर में चैत्र मास में एक विशाल मेला लगता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा होती है। विवाह का पहला निमंत्रण चिंतामणि को देने की प्रथा यहां काफी लंबे समय से चली आ रही है। चिंतामणि से और आगे भर्तृहरि की गुफा है। कहते हैं गुफा से चारों धाम जाने के लिए मार्ग है, जो अब बंद कर दिया गया है।

काल भैरव मंदिर- यह मंदिर तकरीबन चार सौ वर्ष पुराना होगा। इसे राजा भद्रसेन ने बनवाया था। मंदिर में कालभैरव की करीब चार फुट ऊंची प्रतिमा है और जैसे भगवान शिव के मंदिर के सामने नंदी होते हैं, वैसे ही कालभैरव के सामने श्वान की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। भक्तगण काल भैरव को चढ़ावे में शराब भी चढ़ाते हैं। प्रतिमा के शराब पीना का जादू देखना हो यह एक मात्र ऐसी जगह है जहां ऐसा कारनामा हर रोज़ देखने को मिलता है|कई लोगों ने इस बात की छानबीन भी कराई, पर हाथ कुछ न लगा।

बौद्ध स्तूप- उज्जैन के निकट सांची स्थित है| प्राचीन काल में यह बौद्ध कला और धर्म का बड़ा केंद्र रहा होगा। सम्राट अशोक ने यहां पहाड़ी पर कई स्तूप बनवाए। अशोक के बाद उनके पुत्र महेंद्र ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जगह-जगह बुद्ध की मूर्ति और स्तूप बनवाए। उन्होंने संपूर्ण भारत में चौरासी हजार स्तूप बनवाए। इनमें आठ सांची में हैं। यहां स्तूपों के पत्थरों पर बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और धर्मोपदेश के दृश्य को गढ़ा गया है।

उज्जैन जाने के वैसे तो अनेकों तरीके उपलब्ध हैं लेकिन इंदौर से उज्जैन जाना सबसे आसन तरीका है|यहां से उज्जैन केवल 55 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके लिए आप बस, ट्रेन या विमान किसी का भी प्रयोग कर मात्र 45 मिनट में पहुंच सकते हैं| तो चलिए फिर महादेव जी की शरण में और कर लीजिए अपनी सभी संकट दूर|

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