एक ऐसे शहर जहाँ आप को आत्मिक शांति तो मिलती साथ ही इस के आसपास का मनोहारी वातावरण आप को अपने पाश में ले लेता है और आप सब कुछ भूल जाते है | पौराणिक, ऐतिहासिक सभ्यता, हरे-भरे जंगल, लहरदार नदियां, पहाड़, जलप्रपात, झील, घाटियां तालाब, झरने, ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़े उद्योग, प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के लिए मशहूर रांची बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। वर्तमान में रांची झारखंड की राजधानी है
दशम जलप्रपात
रांची से 40 किमी दूर रांची-टाटा मार्ग में यह तैमारा घाटी के निकट कांची नदी में निर्मित प्रपात हैं। यहां 144 फीट के प्रपात का निर्माण होता हैं। आप के लिए एक चेतावनी भी है यदि आप को उचाई से दर लगता है तो इस के पास मत जाये |
सीता फॉल
सीता फॉल झारखंड का एक जाना-माना जलप्रपात हैं। यह जलप्रपात रांची से 44 किमी की दूरी पर स्थित हैं। जल प्रपात यहां 280 फीट की ऊंचाई से गिरता है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
रांची हिलपहाड़ी मंदिर
शहर के रातू रोड से दक्षिण में स्थित पहाड़ी को भौगोलिक शब्दावली में रांची हिल और धार्मिक दृष्टि से पहाड़ी मंदिर कहा जाता हैं। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 21,400 फीट तथा आधार से शीर्ष तक 61 मीटर हैं। इस मंदिर में प्रतिदिन प्रात: संध्या विधिवत आरती-पूजा होती हैं। यहां से सम्पूर्ण रांची का दृश्य दिखाई देता हैं।
हुंडरू प्रताप
रांची से 32 किलोमीटर दूर स्वर्णरेखा नदी पर यह जलप्रपात उस स्थान पर बनता हैं जहां रांची पठार स्कार्प (खड़ी ढाल) का निम्न करता हैं। यह 320 फीट ऊंचा हैं। कभी यहां हुंडरू नामक कोई अंग्रेज प्रशासक रहता था जिसके नाम पर इस प्रपात का नाम हुंडरू हो गया हैं। यहां सिकीदरी जलविद्युत स्टेशन भी हैं जिसकी क्षमता 120 मेगावाट विद्युत उत्पादन की हैं।
जगन्नाथपुर मंदिर
जगन्नाथ जी का यह एकमात्र मंदिर हैं जिसकी स्थापना 1691 ई. में ठाकुर ऐनी शाह के द्वारा की गई थी। यह स्थान रांची नगर में ही दक्षिण की ओर स्थित हैं। पुरी मंदिर की तर्ज पर यहां भी 100 फीट ऊंचे मंदिर का निर्माण किया गया हैं। इस मुख्य मंदिर से आधे किमी की दूरी पर मौसीबाड़ी का निर्माण किया गया हैं। रथयात्रा के समय यहां विशाल मेला लगता हैं।
जोन्हा जलप्रपात
रांची-मूरी मार्ग से दक्षिण में स्थित यह प्रपात भी रांची पठार की भ्रंश रेखा पर निर्मित हैं। यह रांची से 40 किमी दूर जोन्हा नामक गांव के पास स्थित हैं। यहां गौतमबुध्द की एक प्रतिमा स्थापित की गई हैं जिसके चलते इसे गौतम धारा भी कहा जाता हैं। इसकी ऊंचाई 150 फीट हैं यह राढू नदी में स्थित हैं। पास में ही सीताधारी नामक एक छोटा प्रपात भी हैं।
हिरणी जलप्रपात
रांची से 70 किमी दूर रांची-चाईबासा मार्ग पर अवस्थित हैं। कल कल की आवाज के साथ 120 फीट ऊंचाई से गिरता यह जलप्रपात अनुपम सौंदर्य प्रर्दशित करता हैं।
अंगराबाड़ी
इसे आम्रेश्वर धाम भी कहा जाता हैं। यहां आम के पेड़ की धड़ से शिवलिंग का निकलना बताया जाता हैं। शिव के अतिरिक्त, गणेश, हनुमान एवं राम-सीता की मूर्तियां भी यहां स्थापित की गई हैं। एक दुर्गा मंदिर का निर्माण हो रहा हैं जो काफी भव्य हैं। इसके गुंबद की ऊंचाई 198 फीट हैं।
टैगोर हिल
रांची के मोरहाबादी नामक स्थान में स्थित इस पहाड़ी को मोरहाबादी पहाड़ी भी कहा जाता हैं। शहर के उत्तर में स्थित इस पहाड़ी को गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बड़े भाई योतिंद्रनाथ ठाकुर ने अपने विश्रामस्थल के रूप में विकसित करने के लिए इस पहाड़ी के साथ पंद्रह एकड़ अस्सी डिसमिल जमीन हरिहर सिंह जमींदार से 23 अक्टूबर 1908 में ली थी। अंग्रेज प्रशासक लेफ्टिनेंट कर्नल ओसले ने सन् 1842 में यहां एड रेस्टहाऊस बनवाया था। ठाकुर परिवार ने इससे मरम्मत करवाई तथा सीढ़ियों का निर्माण करवाया। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2128 फीट हैं।
रॉक गार्डन
अलबर्ट एक्का चौक से 4 किमी की दूरी पर रॉक गार्डन स्थित हैं। इसे देखकर जयपुर के रॉक गार्डन का एहसास होता हैं। पर्यटकों के मनोरंजन हेतु यहां अनेक व्यवस्था हैं। चट्टानों की कई काल्पनिक मूर्तिया यहां की शोभा बढ़ाती हैं। यह कांके डैम के ठीक बगल में स्थित हैं जिसके कारण यहां का दृश्य काफी मनोरम हैं।
पंचघाघ
खूंटी से 14 किमी दूर स्थित यह एक ऐसा प्रपात हैं जिसमे पांच धाराएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। लोककथा के अनुसार प्रचलित हैं कि कभी पांच बहने किसी एक ही व्यक्ति से प्रेम करने लगी थी। असफल प्रेम के कारण ये यहीं नदी में कूद गई और पांच धाराओं में बदलकर प्रवाहित हो रही हैं।
देवड़ी मंदिर
झारखंड में रांची जिला अर्न्तगत सिल्ली, सोनाहातु, बुंडू, तमाड़ और अड़की प्रखंड क्षेत्र को पंचपरगना क्षेत्र भी कहा जाता हैं। इस क्षेत्र में कांची और कारकरी नदी के तटीय भागों में अनेक पौराणिक मंदिर हैं। कहा जाता हैं कि पालवंश काल में अर्थात् 770-850 ई. के मध्य यहां अनेक मंदिर बनवाए गए थे। तमाड़ से 3 किमी दूर देवड़ी गांव में स्थित मंदिर के कारण ही गांव का नाम देवड़ी हो गया हैं। यहां 16 भुजी देवी की मूर्ती हैं। देवी की मूर्ती के ऊपर शिव की मूर्ती हैं, अगल-बगल में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक, गणेश की मूर्तियां हैं।
सूर्य मंदिर
रांची से 35 किमी दूर रांची-टाटा में बुंडू के निकट इस मंदिर कि स्थापना की गई हैं। यह सूर्य के रथ की आकृति कि बनाई गई हैं। इस मंदिर की खूबसूरती के संबंध में स्थानीय साहित्यकारों ने इसे पत्थर पर लिखी कविता कहा हैं।
नक्षत्र वन
हाल के वर्षों में विकसित किए गए नक्षत्र वन बीचों-बीच स्थित धनवंतरी की प्रतिमा लोगों के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। अक्सर लोग यहां लगे औषधीय पौधे व उनके बारे में जानकारी देते बोर्ड को पढ़ते मिल जाएंगे। ग्रह-नक्षत्रों के बारे में वैज्ञानिक तरीके से जानकारी देता यहां का पर्यावरण बच्चों व बड़ों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता हैं। यहां पर बहुत सारे दुर्लभ जड़ी-बूटियों के पौधे हैं।
दशम जलप्रपात
रांची से 40 किमी दूर रांची-टाटा मार्ग में यह तैमारा घाटी के निकट कांची नदी में निर्मित प्रपात हैं। यहां 144 फीट के प्रपात का निर्माण होता हैं। आप के लिए एक चेतावनी भी है यदि आप को उचाई से दर लगता है तो इस के पास मत जाये |
सीता फॉल
सीता फॉल झारखंड का एक जाना-माना जलप्रपात हैं। यह जलप्रपात रांची से 44 किमी की दूरी पर स्थित हैं। जल प्रपात यहां 280 फीट की ऊंचाई से गिरता है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
रांची हिलपहाड़ी मंदिर
शहर के रातू रोड से दक्षिण में स्थित पहाड़ी को भौगोलिक शब्दावली में रांची हिल और धार्मिक दृष्टि से पहाड़ी मंदिर कहा जाता हैं। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 21,400 फीट तथा आधार से शीर्ष तक 61 मीटर हैं। इस मंदिर में प्रतिदिन प्रात: संध्या विधिवत आरती-पूजा होती हैं। यहां से सम्पूर्ण रांची का दृश्य दिखाई देता हैं।
हुंडरू प्रताप
रांची से 32 किलोमीटर दूर स्वर्णरेखा नदी पर यह जलप्रपात उस स्थान पर बनता हैं जहां रांची पठार स्कार्प (खड़ी ढाल) का निम्न करता हैं। यह 320 फीट ऊंचा हैं। कभी यहां हुंडरू नामक कोई अंग्रेज प्रशासक रहता था जिसके नाम पर इस प्रपात का नाम हुंडरू हो गया हैं। यहां सिकीदरी जलविद्युत स्टेशन भी हैं जिसकी क्षमता 120 मेगावाट विद्युत उत्पादन की हैं।
जगन्नाथपुर मंदिर
जगन्नाथ जी का यह एकमात्र मंदिर हैं जिसकी स्थापना 1691 ई. में ठाकुर ऐनी शाह के द्वारा की गई थी। यह स्थान रांची नगर में ही दक्षिण की ओर स्थित हैं। पुरी मंदिर की तर्ज पर यहां भी 100 फीट ऊंचे मंदिर का निर्माण किया गया हैं। इस मुख्य मंदिर से आधे किमी की दूरी पर मौसीबाड़ी का निर्माण किया गया हैं। रथयात्रा के समय यहां विशाल मेला लगता हैं।
जोन्हा जलप्रपात
रांची-मूरी मार्ग से दक्षिण में स्थित यह प्रपात भी रांची पठार की भ्रंश रेखा पर निर्मित हैं। यह रांची से 40 किमी दूर जोन्हा नामक गांव के पास स्थित हैं। यहां गौतमबुध्द की एक प्रतिमा स्थापित की गई हैं जिसके चलते इसे गौतम धारा भी कहा जाता हैं। इसकी ऊंचाई 150 फीट हैं यह राढू नदी में स्थित हैं। पास में ही सीताधारी नामक एक छोटा प्रपात भी हैं।
हिरणी जलप्रपात
रांची से 70 किमी दूर रांची-चाईबासा मार्ग पर अवस्थित हैं। कल कल की आवाज के साथ 120 फीट ऊंचाई से गिरता यह जलप्रपात अनुपम सौंदर्य प्रर्दशित करता हैं।
अंगराबाड़ी
इसे आम्रेश्वर धाम भी कहा जाता हैं। यहां आम के पेड़ की धड़ से शिवलिंग का निकलना बताया जाता हैं। शिव के अतिरिक्त, गणेश, हनुमान एवं राम-सीता की मूर्तियां भी यहां स्थापित की गई हैं। एक दुर्गा मंदिर का निर्माण हो रहा हैं जो काफी भव्य हैं। इसके गुंबद की ऊंचाई 198 फीट हैं।
टैगोर हिल
रांची के मोरहाबादी नामक स्थान में स्थित इस पहाड़ी को मोरहाबादी पहाड़ी भी कहा जाता हैं। शहर के उत्तर में स्थित इस पहाड़ी को गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बड़े भाई योतिंद्रनाथ ठाकुर ने अपने विश्रामस्थल के रूप में विकसित करने के लिए इस पहाड़ी के साथ पंद्रह एकड़ अस्सी डिसमिल जमीन हरिहर सिंह जमींदार से 23 अक्टूबर 1908 में ली थी। अंग्रेज प्रशासक लेफ्टिनेंट कर्नल ओसले ने सन् 1842 में यहां एड रेस्टहाऊस बनवाया था। ठाकुर परिवार ने इससे मरम्मत करवाई तथा सीढ़ियों का निर्माण करवाया। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2128 फीट हैं।
रॉक गार्डन
अलबर्ट एक्का चौक से 4 किमी की दूरी पर रॉक गार्डन स्थित हैं। इसे देखकर जयपुर के रॉक गार्डन का एहसास होता हैं। पर्यटकों के मनोरंजन हेतु यहां अनेक व्यवस्था हैं। चट्टानों की कई काल्पनिक मूर्तिया यहां की शोभा बढ़ाती हैं। यह कांके डैम के ठीक बगल में स्थित हैं जिसके कारण यहां का दृश्य काफी मनोरम हैं।
पंचघाघ
खूंटी से 14 किमी दूर स्थित यह एक ऐसा प्रपात हैं जिसमे पांच धाराएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। लोककथा के अनुसार प्रचलित हैं कि कभी पांच बहने किसी एक ही व्यक्ति से प्रेम करने लगी थी। असफल प्रेम के कारण ये यहीं नदी में कूद गई और पांच धाराओं में बदलकर प्रवाहित हो रही हैं।
देवड़ी मंदिर
झारखंड में रांची जिला अर्न्तगत सिल्ली, सोनाहातु, बुंडू, तमाड़ और अड़की प्रखंड क्षेत्र को पंचपरगना क्षेत्र भी कहा जाता हैं। इस क्षेत्र में कांची और कारकरी नदी के तटीय भागों में अनेक पौराणिक मंदिर हैं। कहा जाता हैं कि पालवंश काल में अर्थात् 770-850 ई. के मध्य यहां अनेक मंदिर बनवाए गए थे। तमाड़ से 3 किमी दूर देवड़ी गांव में स्थित मंदिर के कारण ही गांव का नाम देवड़ी हो गया हैं। यहां 16 भुजी देवी की मूर्ती हैं। देवी की मूर्ती के ऊपर शिव की मूर्ती हैं, अगल-बगल में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक, गणेश की मूर्तियां हैं।
सूर्य मंदिर
रांची से 35 किमी दूर रांची-टाटा में बुंडू के निकट इस मंदिर कि स्थापना की गई हैं। यह सूर्य के रथ की आकृति कि बनाई गई हैं। इस मंदिर की खूबसूरती के संबंध में स्थानीय साहित्यकारों ने इसे पत्थर पर लिखी कविता कहा हैं।
नक्षत्र वन
हाल के वर्षों में विकसित किए गए नक्षत्र वन बीचों-बीच स्थित धनवंतरी की प्रतिमा लोगों के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। अक्सर लोग यहां लगे औषधीय पौधे व उनके बारे में जानकारी देते बोर्ड को पढ़ते मिल जाएंगे। ग्रह-नक्षत्रों के बारे में वैज्ञानिक तरीके से जानकारी देता यहां का पर्यावरण बच्चों व बड़ों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता हैं। यहां पर बहुत सारे दुर्लभ जड़ी-बूटियों के पौधे हैं।
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