तिब्बत में प्राचीन काल से कैलास मानसरोवर हिन्दुओं का ऐसा सर्वोच्च धर्म स्थल है। जहां की यात्रा करना प्रत्येक श्रद्धालु की सबसे बडी इच्छा होती है। किसी भी धर्मस्थल की प्राचीनता वहां बिना नागा लम्बे समय से होने वाली पूजा और गर्भगृह में प्रतिष्ठित भगवान की मूर्ति की भव्यता ही उसे सिद्ध स्थान बनाती है।
यह यात्रा हर वर्ष इन्ही दिनों प्रारम्भ होकर सितम्बर तक चलती है। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थन को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अंतर्राष्ट्रीय नेपाल. तिब्बत चीन से लगे उत्तराखण्ड के सीमावर्ती जिले पिथौरागढ के धारचूला से कैलास मानसरोवर की तरफ जाने वाले दुर्गम पर्वतीय स्थानों पर सडकें न होने और 75 किलोमीटर पैदल मार्ग के अत्यधिक खतरनाक होने के कारण हिमालय के मध्य तीर्थों में सबसे कठिनतम भगवान शिव के इस पवित्र धाम की यह रोमांचकारी यात्रा भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों द्वारा आयोजित की जाती है। कैलास की यात्रा पर केवल भारत ही नहीं अन्य देशों के श्रद्धालु भी जाते हैं
भक्तगण वहां ड्रोल्मापास तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन.भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। पुराणों के अनुसार विश्व में सर्वाधिक समुद्रतल से 17 हजार फुट की उंचाई पर स्थित 120 किलोमीटर की परिधि तथा 3 सौ फुट गहरे मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी. कालांतर में उसी का नाम मानसरोवर हुआ। पुराणों के अनुसार इस पवित्र झील की एक परिक्रमा से एक जन्म तथा दस परिक्रमा से हजार जन्मों के पापों का नाश और 108 बार परिक्रमा करने से प्राणी भवबंधन से मुक्त हो कर ईश्वर में समाहित हो जाता है। शिव पुराण के अनुसार कुबेर ने इसी स्थान पर कठिन तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कैलास पार्वत को अपना स्थायी निवास तथा कुबेर को अपना सखा बनने का वरदान दिया था।
शास्त्रों में इसी स्थान को पृथ्वी का स्वर्ग और कुबेर की अलकापुरी की संज्ञा दी गई है। पुराणों में मानसरोवर और क्षीर सागर माने जाने वाले कैलास में ही सृष्टिपालक श्री विष्णु का भी निवास है। कैलास मानसरोवर सभी धर्मावालंबियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। गुर्लामांधाता पर्वत की घाटियों से होते हुए 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे राक्षसताल के यहीं दर्शन होते हैं1 पुराणों के अनुसार राक्षसों के राजा रावण ने यहीं बैठ कर भगवान को प्रसन्न किया था। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलास परिक्रमा का आधार शिविर है। यहीं से कैलास परिक्रमा आरंभ होती है। कैलास परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। तारचेन से यात्री यमद्वार पहुंचते हैं। घोडे और याक पर चढकर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते है। जहां ठीक सामने कैलास के दर्शन होते हैं|
डेरापुफ में रात्रि विश्राम के बाद श्रद्धालु सबसे कठिन और दिल दहला देने वाली साढे 19 हजार पुट खडी की ऊंचाई पर स्थित ड्रोल्मा की तरफ बढते हैं। ड्रोल्मा में ही शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना करके धर्म पताका फहराई जाती है। श्रद्धालु शिव और गौरी के पूजन के पश्चात ड्रोल्मा से नीचे बर्फ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी स्थित 18400 पुट की ऊंचाई पर बनी पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील,गौरीकुंड के दर्शन भी करते है। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 पुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रुप में पाने कलिए घोर तपस्या की थी।
श्रद्धालु दिल्ली से उत्तराखंड के काठगोदाम होते हुए आधार शिविर धारचूला पहुंचने के बाद पहले पडाव पांग्ला से पैदल यह यात्रा प्रारंभ करते है। धारचूला और नाभीढांग होते हुए कुल 75 किलोमीटर दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों को पैदल पार करके विभिन्न यात्री दल लिपुपास से चीन शासित तिब्बत में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक यात्री दल कैलास यात्रा के एक माह बाद वापस दिल्ली पहुंचता है।
श्रद्धालुओं को कैलास मानसरोवर में 12 दिन बिताने का मौका मिलता है। गुंजी के बाद भारत के साढे 16 हजार फुट की उंचाई पर स्थित लिपुपास से चीन सरकार इस यात्रा को अपने हाथ में ले लेती है। इस मार्ग पर आई टी बी पी भी श्रद्धालुओं को सहयोग देती है। चीन सीमा क्षेत्र में एशिया की सबसे उच्च धार्मिक कैलास मानसरोवर तक जाने वाले श्रद्धालुओं को विदेश मंत्रालय से अनुमति और चीन से वीजा लेना पडता है।
कैलास-मानसरोवर यात्रा मार्ग
हल्द्वानी--→ कौसानी---→ बागेश्वर---→ धारचूला---→ तवाघाट---→ पांगू---→ सिरखा---→ गाला---→ माल्पा---→ बुधि---→ गुंजी---→कालापानी---→ लिपू लेख दर्रा---→ तकलाकोट---→ जैदी---→ बरखा मैदान---→ तारचेन---→ डेराफुक---→श्रीकैलास
यह यात्रा हर वर्ष इन्ही दिनों प्रारम्भ होकर सितम्बर तक चलती है। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थन को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अंतर्राष्ट्रीय नेपाल. तिब्बत चीन से लगे उत्तराखण्ड के सीमावर्ती जिले पिथौरागढ के धारचूला से कैलास मानसरोवर की तरफ जाने वाले दुर्गम पर्वतीय स्थानों पर सडकें न होने और 75 किलोमीटर पैदल मार्ग के अत्यधिक खतरनाक होने के कारण हिमालय के मध्य तीर्थों में सबसे कठिनतम भगवान शिव के इस पवित्र धाम की यह रोमांचकारी यात्रा भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों द्वारा आयोजित की जाती है। कैलास की यात्रा पर केवल भारत ही नहीं अन्य देशों के श्रद्धालु भी जाते हैं
भक्तगण वहां ड्रोल्मापास तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन.भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। पुराणों के अनुसार विश्व में सर्वाधिक समुद्रतल से 17 हजार फुट की उंचाई पर स्थित 120 किलोमीटर की परिधि तथा 3 सौ फुट गहरे मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी. कालांतर में उसी का नाम मानसरोवर हुआ। पुराणों के अनुसार इस पवित्र झील की एक परिक्रमा से एक जन्म तथा दस परिक्रमा से हजार जन्मों के पापों का नाश और 108 बार परिक्रमा करने से प्राणी भवबंधन से मुक्त हो कर ईश्वर में समाहित हो जाता है। शिव पुराण के अनुसार कुबेर ने इसी स्थान पर कठिन तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कैलास पार्वत को अपना स्थायी निवास तथा कुबेर को अपना सखा बनने का वरदान दिया था।
शास्त्रों में इसी स्थान को पृथ्वी का स्वर्ग और कुबेर की अलकापुरी की संज्ञा दी गई है। पुराणों में मानसरोवर और क्षीर सागर माने जाने वाले कैलास में ही सृष्टिपालक श्री विष्णु का भी निवास है। कैलास मानसरोवर सभी धर्मावालंबियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। गुर्लामांधाता पर्वत की घाटियों से होते हुए 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे राक्षसताल के यहीं दर्शन होते हैं1 पुराणों के अनुसार राक्षसों के राजा रावण ने यहीं बैठ कर भगवान को प्रसन्न किया था। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलास परिक्रमा का आधार शिविर है। यहीं से कैलास परिक्रमा आरंभ होती है। कैलास परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। तारचेन से यात्री यमद्वार पहुंचते हैं। घोडे और याक पर चढकर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते है। जहां ठीक सामने कैलास के दर्शन होते हैं|
डेरापुफ में रात्रि विश्राम के बाद श्रद्धालु सबसे कठिन और दिल दहला देने वाली साढे 19 हजार पुट खडी की ऊंचाई पर स्थित ड्रोल्मा की तरफ बढते हैं। ड्रोल्मा में ही शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना करके धर्म पताका फहराई जाती है। श्रद्धालु शिव और गौरी के पूजन के पश्चात ड्रोल्मा से नीचे बर्फ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी स्थित 18400 पुट की ऊंचाई पर बनी पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील,गौरीकुंड के दर्शन भी करते है। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 पुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रुप में पाने कलिए घोर तपस्या की थी।
श्रद्धालु दिल्ली से उत्तराखंड के काठगोदाम होते हुए आधार शिविर धारचूला पहुंचने के बाद पहले पडाव पांग्ला से पैदल यह यात्रा प्रारंभ करते है। धारचूला और नाभीढांग होते हुए कुल 75 किलोमीटर दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों को पैदल पार करके विभिन्न यात्री दल लिपुपास से चीन शासित तिब्बत में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक यात्री दल कैलास यात्रा के एक माह बाद वापस दिल्ली पहुंचता है।
श्रद्धालुओं को कैलास मानसरोवर में 12 दिन बिताने का मौका मिलता है। गुंजी के बाद भारत के साढे 16 हजार फुट की उंचाई पर स्थित लिपुपास से चीन सरकार इस यात्रा को अपने हाथ में ले लेती है। इस मार्ग पर आई टी बी पी भी श्रद्धालुओं को सहयोग देती है। चीन सीमा क्षेत्र में एशिया की सबसे उच्च धार्मिक कैलास मानसरोवर तक जाने वाले श्रद्धालुओं को विदेश मंत्रालय से अनुमति और चीन से वीजा लेना पडता है।
कैलास-मानसरोवर यात्रा मार्ग
हल्द्वानी--→ कौसानी---→ बागेश्वर---→ धारचूला---→ तवाघाट---→ पांगू---→ सिरखा---→ गाला---→ माल्पा---→ बुधि---→ गुंजी---→कालापानी---→ लिपू लेख दर्रा---→ तकलाकोट---→ जैदी---→ बरखा मैदान---→ तारचेन---→ डेराफुक---→श्रीकैलास
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