फिर आओ प्यारी गौरैया


घर के आंगन से लेकर दालान चहचहाने वाली गौरैया ने अब घर आना ही छोड़ दिया है। आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ ने इन नन्हें प्यारे पक्षियों का घर में आना जाना बंद कराया, तो वहीं कीट-नाशक के इस्तेमाल ने खेतों से इनके आशियाने को छीन लिया। इससे इस छोटी प्यारी से चिड़िया के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। इनके कम नजर आने से यह बात से साफ हो जाती है कि इनकी संख्या में तेजी से घट रही है।


घरों को अपनी चीं..चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती । इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे । अब स्थिति बदल गई है । गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं..कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती ।

पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो इंसानी बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे । लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है ।पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है । यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले ।

ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन आफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है ।आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है । यह हृास ग्रामीण और शहरी..दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है ।पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है ।गौरैया पर मंडरा रहे खतरे के कारण ही सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई दिलावर जैसे लोगों के प्रयासों से आज दुनियाभर में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मानाया जाता है, ताकि लोग इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें । 

दिलावर द्वारा शुरू की गई पहल पर ही आज बहुत से लोग गौरैया बचाने की कोशिशों में जुट रहे हैं ।सिंह के अनुसार आवासीय हृास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं ।उन्होंने कहा कि लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं । कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं । इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है ।

इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है ।पक्षी विज्ञानी के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। 

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