चैत्र नवरात्रि कल से, जानिए कलश स्थापना मुहूर्त और विधि

नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। हिन्दू धर्मानुसार यह पर्व वर्ष में दो बार आता है। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की| इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है | जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।

आपको बता दें की इस बार की चैत्र नवरात्रि 10 दिन की होंगी। तिथियों की घटत-बढ़त के कारण ऐसा होगा। नवरात्र पर्व 23 मार्च से शुरू होकर 1 अप्रैल तक रहेगा। इस दौरान शुभ संयोग भी खूब रहेंगे।

हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार का कहना है कि चैत्र नवरात्र का आरंभ देवी के वार यानी शुक्रवार से हो रहा है। ऐसे में ये देवी आराधना करने वाले साधकों के लिए विशेष फलदायी रहेंगे। खरीदारी व नवीन कार्यो के लिए भी ये नवरात्र श्रेयस्कर रहेंगे। उन्होंने यह भी बताया है कि नवरात्र के दौरान 29, 30 व 31 मार्च को छोड़कर हर दिन विशेष संयोग भी बन रहे हैं।

इस बार नवरात्रि में राम जन्म पर महामुहूर्त का संयोग है| राम नवमी एक अप्रैल को राम जन्मोत्सव मनेगा। चैत्र नवरात्र की पूर्णता की तिथि महानवमी के साथ सुकर्मा योग व कौलवकरण होने से यह दिन विशेष शुभ होगा। 

घट स्थापना मुहूर्त-

नवरात्र में तिथि वृद्धि सुखद संयोग माना जाता है। प्रतिपदा तिथि रात 10 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। नवरात्र पूजन का प्रारंभ घट स्थापना से होता है। घट स्थापना प्रात: काल 6 बजकर 30 मिनट से लेकर 7 बजकर 30 मिनट तक, द्विस्वभाव लग्न मीन में एवं दोपहर 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 50 मिनट तक अभिजीत काल में किया जाना उचित है। दोपहर बाद घट स्थापना एवं देवी पूजन प्रारंभ करने से गृह भंग एवं यश हानि होती है। 

घट स्थापना विधि-

आचार्य विजय कुमार ने कहा है कि नवरात्र पूजन में कई लोग घट व नारियल स्थापना उन्होंने कलश स्थापना की सही विधि घट सही तरीके से न करने से शुभ की जगह अशुभ फल प्राप्त होता है।

आपको बता दें कि मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा के मध्य में स्थित ईशान कोण में मिट्टी या धातु के पात्र में साख लगाएं। इसके बाद पात्र में घट (कलश) की स्थापना करें। घट धातु का ही होना चाहिए, तांबे या पीतल धातु का शुभ होता है। घट को मौली बांधे, उसमें जल, चावल, पंचरतनी, चुटकी भर तुलसी की मिट्टी, स्र्वोष्धी, तिलक, फूल व द्रूवा व सिक्के डाल कर आम के नौ पत्ते रख कर उस पर चावल से भरे दोने से ढक सभी देवी-देवताओं का ध्यान कर उनका आह्वान करें।

इसके बाद चावलों के ऊपर नारियल का मुख अपनी और इस तरह रखें कि उसे देखने पर साधक की नजरें सीधे मुख पर पड़े। शास्त्रों में वर्णित श्लोक के मुताबिक 'अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊ‌र्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्तमात् शुभम संमुख्यम नारीकेलम' के अनुसार स्थापना के दौरान नारियल का मुख नीचे रखने से शत्रु बढ़ते हैं, ऊपर रखने से रोग में वृद्धि, पूर्व दिशा में करने से धन हानि होती है। इसलिए नारियल का मुख अपनी तरफ रख ही उसकी स्थापना करनी चाहिए। नारियल जिस तरफ से पेड़ पर लगा होता है, वह उसका मुख वह होता और उसका ठीक उल्टा हिस्सा नुकीला होता है। 

कोई टिप्पणी नहीं: