एक रानी सैकड़ों मील चलकर एक बच्चे को अपनी राजधानी लाना चाहती थी तो उस बच्चे ने महारानी के सामने तीन शर्त रख दी| बच्चे ने कहा मैं आपके साथ तभी चल सकता हूँ जब आप अपना सम्पूर्ण राज्य पाठ मुझे सौपेंगी| और तो और नगर पहुँचते ही वहां का राजा आपके पति नहीं बल्कि मैं बनूँगा| अपने इरादों में अडिग महारानी ने बच्चे की शर्तों को स्वीकार कर लिया और नगर पहुँचते ही अपना सम्पूर्ण राज्य पाठ उस बच्चे के नाम कर दिया|
कहानी कुछ इस तरह है- ओरछा के राजा मधुकर शाह (1554-1592) राधा-कृष्ण के अनन्य भक्त थे और रानी गणेश कुंवरी भगवान श्रीराम की परम भक्त थी| जनश्रुति के अनुसार, एक दिन मजाक ही मजाक में मधुकर शाह ने रानी गणेश कुंवरी से कहा कि तुम्हारे राम इतने ही महान है तो उन्हें ओरछा ले आओ| राजा के इस आदेश को रानी नकार न सकी और रानी ने भगवान राम को ओरछा लाने का निश्चय कर लिया और राजा मधुकर शाह को बिना बताए ही एक मंदिर बनवाना शुरू करवा दिया और एक दिन पैदल ही भगवान राम को ओरछा लाने अयोध्या रवाना हो गईं।
अयोध्या पहुंच कर लक्ष्मण घाट पर श्रीराम की तपस्या आरंभ कर दी। रानी को तप करते काफी समय हो गया। हार कर रानी कुंवरी गणेश ने सरयू नदी में प्राण त्यागने का विचार किया। उसी समय भगवान राम बाल रूप में रानी की गोद में बैठ गए और वर मांगने को कहा। रानी ने कहा कि यदि भगवान आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरे साथ ओरछा चलें। रानी की बात पर श्रीराम ने ओरछा जाने के लिए रानी के सामने शर्त रखी। मैं तुम्हारे साथ चल पडूंगा, पर जहां बैठ जहां जाऊंगा, वहां से फिर नहीं उठूंगा और वहां का राजा बन कर रहूंगा। और हां मैं पुण्य नक्षत्र में ही चलूंगा। रानी ने शर्त स्वीकार कर ली। अयोध्या में रानी कुंवरी गणेश का समाचार आग की तरह फैल गया। भगवान श्रीराम रानी कुंवरी गणेश के साथ ओरछा चल पड़े।
ओरछा से पीछे पन्ना नामक स्थान पर भगवान श्रीराम ने रानी को कृष्ण रूप दिखाकर आश्चर्य में डाल दिया। श्रीराम ने कहा कि यहां मेरा जुगल किशोर नाम का स्थान सर्वपूज्य होगा। श्रावण शुक्ल पंचमी वि.स. 1630 को अयोध्या से पुण्य नक्षत्र में प्रस्थान कर चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार वि.स. 1631 को आठ माह 27 दिन की अवधि में श्रीराम बालरूप में पुण्य नक्षत्र के दिन रानी कुंवरी गणेश के रानी वास पहुंचे। भगवान ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि रानी को भगवान श्रीराम को गोद से रानी वास में ही बिठाना पड़ा। भगवान जब भूमि पर बैठे, उसी समय बालरूप लोप हो गया। और वह एक मूर्ति के रूप में तब्दील हो गए| तभी से महल में राम लला विराजमान हैं और उन्हीं के नाम से ओरछा के राज्य का संचालन हो रहा है।
कहते हैं कि भगवान श्रीराम वरदान के अनुसार स्वयं बाल रूप में अयोध्या से ओरछा रानी के साथ आए। जानकी जी का निवास अयोध्या में ही रहा। इसलिए कहा गया है कि दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास। श्री राम आज भी ओरछा के राजा हैं। मान्यता है कि राम दिन में ओरछा में ही रहते हैं। शयन के लिए अयोध्या चले जाते हैं।
कहानी कुछ इस तरह है- ओरछा के राजा मधुकर शाह (1554-1592) राधा-कृष्ण के अनन्य भक्त थे और रानी गणेश कुंवरी भगवान श्रीराम की परम भक्त थी| जनश्रुति के अनुसार, एक दिन मजाक ही मजाक में मधुकर शाह ने रानी गणेश कुंवरी से कहा कि तुम्हारे राम इतने ही महान है तो उन्हें ओरछा ले आओ| राजा के इस आदेश को रानी नकार न सकी और रानी ने भगवान राम को ओरछा लाने का निश्चय कर लिया और राजा मधुकर शाह को बिना बताए ही एक मंदिर बनवाना शुरू करवा दिया और एक दिन पैदल ही भगवान राम को ओरछा लाने अयोध्या रवाना हो गईं।
अयोध्या पहुंच कर लक्ष्मण घाट पर श्रीराम की तपस्या आरंभ कर दी। रानी को तप करते काफी समय हो गया। हार कर रानी कुंवरी गणेश ने सरयू नदी में प्राण त्यागने का विचार किया। उसी समय भगवान राम बाल रूप में रानी की गोद में बैठ गए और वर मांगने को कहा। रानी ने कहा कि यदि भगवान आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरे साथ ओरछा चलें। रानी की बात पर श्रीराम ने ओरछा जाने के लिए रानी के सामने शर्त रखी। मैं तुम्हारे साथ चल पडूंगा, पर जहां बैठ जहां जाऊंगा, वहां से फिर नहीं उठूंगा और वहां का राजा बन कर रहूंगा। और हां मैं पुण्य नक्षत्र में ही चलूंगा। रानी ने शर्त स्वीकार कर ली। अयोध्या में रानी कुंवरी गणेश का समाचार आग की तरह फैल गया। भगवान श्रीराम रानी कुंवरी गणेश के साथ ओरछा चल पड़े।
ओरछा से पीछे पन्ना नामक स्थान पर भगवान श्रीराम ने रानी को कृष्ण रूप दिखाकर आश्चर्य में डाल दिया। श्रीराम ने कहा कि यहां मेरा जुगल किशोर नाम का स्थान सर्वपूज्य होगा। श्रावण शुक्ल पंचमी वि.स. 1630 को अयोध्या से पुण्य नक्षत्र में प्रस्थान कर चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार वि.स. 1631 को आठ माह 27 दिन की अवधि में श्रीराम बालरूप में पुण्य नक्षत्र के दिन रानी कुंवरी गणेश के रानी वास पहुंचे। भगवान ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि रानी को भगवान श्रीराम को गोद से रानी वास में ही बिठाना पड़ा। भगवान जब भूमि पर बैठे, उसी समय बालरूप लोप हो गया। और वह एक मूर्ति के रूप में तब्दील हो गए| तभी से महल में राम लला विराजमान हैं और उन्हीं के नाम से ओरछा के राज्य का संचालन हो रहा है।
कहते हैं कि भगवान श्रीराम वरदान के अनुसार स्वयं बाल रूप में अयोध्या से ओरछा रानी के साथ आए। जानकी जी का निवास अयोध्या में ही रहा। इसलिए कहा गया है कि दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास। श्री राम आज भी ओरछा के राजा हैं। मान्यता है कि राम दिन में ओरछा में ही रहते हैं। शयन के लिए अयोध्या चले जाते हैं।
ليست هناك تعليقات:
إرسال تعليق