गंगा ने क्यों बहाया अपने पुत्रों को नदी में...?

हस्तिनापुर नरेश राजा दुष्यंत व शकुंतला का पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट बना। भरत के वंश में आगे जाकर प्रतीप नामक राजा हुए। एक बार प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, 'हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।' इस पर महाराज प्रतीप बोले, 'गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।' यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं। अब महाराज प्रतीप ने पुत्र प्राप्ति के लिये घोर तप करना आरम्भ कर दिया। उनके तप के फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने शान्तनु रखा। शान्तनु के युवा होने पर उसे गंगा के साथ विवाह करने का आदेश दे महाराज प्रतीप स्वर्ग चले गये।

पिता के आदेश का पालन करने के लिये शान्तनु ने गंगा के पास जाकर उनसे विवाह करने के लिये निवेदन किया। इस पर गंगा बोली, राजन! मैं आपके साथ विवाह तो कर सकती हूँ किन्तु आपको वचन देना होगा कि आप मेरे किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।” शान्तनु ने गंगा के कहे अनुसार वचन दे कर उनसे विवाह कर लिया। गंगा के गर्भ से महाराज शान्तनु के आठ पुत्र हुए जिनमें से सात को गंगा ने नदी में प्रवाहित कर दिया| यह सब देखते हुए भी महाराज शांतनु अपने दिए हुए बचनों में बंधे होने के कारण कुछ न बोल सके| 

जब गंगा ने आठवें पुत्र को जन्म दिया और उसे भी नदी में प्रवाहित करने के लिए चली तो राजा शांतनु से रहा नहीं गया और बोले गंगे! तुमने मेरे सात पुत्रों को नदी में प्रवाहित कर दिया मैंने कुछ नहीं बोला और अब मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि कम से कम इस बालक को तो छोड़ दो इस पर गंगा ने कहा कि महाराज आपने अपनी प्रतिज्ञा भग्न कर दी इसलिए मैं अब आपके पास नहीं रह सकती| इतना कहकर गंगा पुत्र के साथ अंतर्ध्यान हो गई| 

गंगा के चले जाने के बाद महाराज शांतनु ने 26 वर्ष तक ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर के व्यतीत कर दिये। एक बार वह गंगा के किनारे गए और गंगा से कहने लगे कि गंगे आज मेरी अपने बालक को देखने की इच्छा हो रही है जिसे तुम अपने साथ लेकर चली आयी थी| तुरंत गंगा उस बालक के साथ प्रकट हुई और बोली यह आपका पुत्र है जिसका नाम देवव्रत इसे आप ग्रहण करें| यह बहुत ही पराक्रमी और गुणवान होगा| इसके साथ-साथ यह शस्त्र विद्या में भी बहुत पारंगत होगा| इतना सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उसे हस्तिनापुर लाकर युवराज घोषित कर दिया।

कोई टिप्पणी नहीं: