जब इंद्र को करनी पड़ी भूत की सृष्टि


 प्राचीन काल में समाज में शांति और सद्भाव स्थापित करने के लिए कुछ नैतिक मूल्यों को मानदंड बनाया गया था और इन मूल्यों का अनुपालन अत्यंत कड़ाई के साथ करवाया जाता था। उन्हीं मूल्यों और मानदंडों पर आधारित कहानियां पुराणों के निर्माण में सहायक सिद्ध हुई। ऐसी गाथाओं में मातृपंचक और पितृपंचक सम्बंधी आदर्शो को अधिक प्रधानता दी गई है। ऐसी ही एक कथा यहां पर प्रस्तुत है, जिसमें पितृभक्ति के माहात्म्य का वर्णन हुआ है :- 

प्राचीन काल में द्वारका नगर में शिवशर्मा नामक एक ब्राह्मणवंशी गृहस्थ रहा करते थे। उनके पांच पुत्र थे- यज्ञशर्मा, वेदशर्मा, धर्मशर्मा, दवेशर्मा और सोमशर्मा। ये सब समस्त शास्त्रों के ज्ञाता थे और पितृभक्ति को सवरेत्तम धर्म मानते थे। शिवशर्मा ब्रह्मज्ञान रखते थे। एक बार उनके मन में अपने पुत्रों की पितृभक्ति की परीक्षा लेने का संकल्प उदित हुआ। उन्होंने अपनी मायाशक्ति के बल पर अपनी पत्नी को मृत घोषित कर उनका शव अपने पुत्रों को दिखाया। पांचों पुत्र अपनी माता की मृत्यु पर शोक संतप्त हुए। ऐसी स्थिति में शिवशर्मा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र यज्ञशर्मा के हाथ में एक शस्त्र देकर आदेश दिया, "पुत्र, तुम इस शस्त्र से अपनी माता के अवयवों का खंडन करके इन्हें फेंक दो।"

यज्ञशर्मा ने बिना किसी प्रकार के प्रतिवाद के अपनी माता के अवयवों का खंडन किया। शिवशर्मा अपने ज्येष्ठ पुत्र की मितृभक्ति पर अत्यंत प्रसन्न हुए। तदनंतर शिवशर्मा ने अपने द्वितीय पुत्र वेदशर्मा को बुलाकर आदेश दिया, "वत्स, मैं एक युवती के सौंदर्य पर आसक्त हूं। वह यहीं समीप में संचार कर रही है। उसको मेरी इच्छा बताकर यहां पर ले आओ।" यह कहकर शिवशर्मा ने अपनी मायाशक्ति से एक अनुपम सुंदरी की सृष्टि की।

वेदशर्मा ने उस रमणी के पास जाकर निवेदन किया, "मेरे पिताजी आप पर आसक्त हैं। आप कृपया उनकी कामना की पूर्ति कीजिए।" इस पर युवती ने कहा, "तुम्हारे पिता वृद्ध हो चुके हैं। मैं उनकी कामना की पूर्ति नहीं कर सकती। तुम परिपूर्ण यौवन से सुशोभित हो। तुम्हारे साथ संसर्ग करने की मैं अभिलाषा रखती हूं।" वेदशर्मा ने समझाया, "देवी, तुम्हारा कथन धर्म-संगत नहीं है। मैं अपने पिता की इच्छापूर्ति के लिए अपना सर्वस्व तुम्हें अर्पित कर सकता हूं।" 

युवती ने शर्त लगाई, "यदि तुम इंद्र आदि देवताओं का मुझे दर्शन करा सकोगे, तो मैं तुम्हारे पिता के मनोरथ को पूरा कर सकती हूं।" वेदशर्मा ने अपने तपोबल से उस रमणी को देवताओं के दर्शन कराए। युवती ने मुदित होकर वेदशर्मा की पितृभक्ति की परीक्षा लेने के विचार से दूसरी शर्त रखी, "अगर तुम इस शस्त्र से अपना सिर काटकर मुझे अर्पित करोगे, तो मैं तुम्हारे पिता की कामना की पूर्ति करूंगी।" तत्काल वेदशर्मा ने अपना सिर काटकर युवती के हाथ में धर दिया। युवती वेदशर्मा का सिर लेकर शिवशर्मा के पास पहुंची और सारा वृत्तांत उन्हें सुनाया। शिवशर्मा अपने द्वितीय पुत्र वेदशर्मा की पितृभक्ति पर परम आनंदित हुए।

इसके उपरांत शिवशर्मा ने अपने तृतीय पुत्र धर्मशर्मा को निकट बुलाकर कहा, "तुम वेदशर्मा के सिर और धड़ को जोड़कर पुनर्जीवित करो।" धर्मशर्मा ने धर्म देवता का स्मरण किया और वेदशर्मा के सिर और धड़ को जोड़कर कहा, "देव, यदि मैं सचमुच अपने पिता के प्रति भक्ति रखता हूं, तो वेदशर्मा तत्काल जीवित हो जाए।"

धर्म देवता ने 'तथास्तु' कहकर वेदशर्मा को प्राण दान किया। तदुपरांत शिवशर्मा ने अपने चौथे पुत्र देवशर्मा को आदेश दिया, "पुत्र, मैं इस कामिनी के साथ संसर्ग चाहता हूं। तुम स्वर्ग में जाकर यौवनप्रद अमृत लाओ।"

देवशर्मा को अपने पिता के अनुग्रह से खेचरत्व प्राप्त हुआ। वे स्वर्ग के समीप पहुंच ही रहे थे कि उनके कार्य में विघ्न डालने के लिए इंद्र ने मेनका को भेजा। देवशर्मा मेनका के रूप, यौवन और विभ्रम का तिरस्कार करके आगे बढ़े। इस पर इंद्र ने भूत-सृष्टि की। प्रेत, बेताल, राक्षस, दैत्य, सिंह, शार्दूल भी उनके प्रयत्न में बाधा नहीं डाल पाए। वेदशर्मा ने मन ही मन कहा, "जो मुझे दंड देना चाहने हैं, वे दंडित हों।-यो हत्यात्स विहन्यते।" उन्होंने यह भी संकल्प किया कि मैं स्वयं अपने तपोबल से एक और इंद्र की सृष्टि करके स्वर्ग पर शासन कराऊंगा। देवशर्मा के संकल्प से भयभीत हो इंद्र ने उनसे क्षमा मांगी और उनकी पितृभक्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा करके अमृत ला दिया।

देवशर्मा ने अपने पिता को अमृत सौंपकर निवेदन किया, "पिताश्री, इस अमृत का सेवन करके आप अपने मनोरथ को पूर्ण कीजिए।" 

शिवशर्मा अपने पुत्रों की पितृभक्ति पर प्रसन्न होकर बोले, "बेटे, तुम लोग आज्ञाकारी पुत्र हो। तुम सब जो भी कठिन वर मांगो, मैं देने के लिए तैयार हूं।" इस पर सभी पुत्रों ने एक स्वर में निवेदन किया, "हमारी माता जीवित हो जाए।" पुत्रों की प्रार्थना पर शिवशर्मा ने अपनी पत्नी 'सुव्रता' को जीवित किया। सुव्रता ने हर्षित हो कहा, "वत्स, तुम लोग पितृभक्त हो, इसलिए तुम लोग सदा सुखी और प्रसन्न रहो।"

पुत्रों ने अपनी माता के चरणों में प्रणाम करके कहा "मां, पुण्यात्माओं को ही योग्य माता-पिता प्राप्त होते हैं। अगले जन्म में भी आप दोनों हमारे माता-पिता हों, यही हमारी प्रबल कामना है।"

शिवशर्मा अपने पुत्रों की प्रार्थना पर प्रसन्न होकर बोले, "वत्सों, मैं तुम लोगों की मातृ-पितृ भक्ति पर प्रसन्न हूं। कोई वर मांग लो।"

पुत्रों ने विष्णु के सान्निध्य की कामना की। शिवशर्मा ने उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति का वरदान दिया। इस पर स्वयं विष्णु ने प्रत्यक्ष होकर सबको अपने लोक में आमंत्रित किया, परंतु शिवशर्मा ने श्रीमहाविष्णु से निवेदन किया, "भगवान! इस समय मेरे चार पुत्र आपके लोक में जाएंगे, मैं अपने अंतिम पुत्र सोमशर्मा और अपनी पत्नी के साथ थोड़े दिन और भूलोक में निवास करना चाहता हूं। अनुग्रह कीजिए।" विष्णु ने शिवशर्मा की प्रार्थना मान ली और उसी समय शिवशर्मा के चार पुत्र विष्णु लोक में पहुंचे।

इसके बाद शिवशर्मा अमृत कलश सामशर्मा के हाथ सौंपकर अपनी पत्नी के साथ तपस्या करने निकल पड़े। कई वर्ष बाद अपने पुत्र की परीक्षा लेने के लिए कुष्ठ रोग पीड़ित हाकेर घर लौटे। सोमशर्मा ने आदरपूर्वक अपने माता-पिता का स्वागत किया और अपने माता-पिता को रोगग्रस्त होने के कारण पर आश्चर्य प्रकट किया। "आप जैसे पुण्यात्मा और पतिव्रता को यह भीषण रोग कैसे प्राप्त हो सकता है?" शिवशर्मा ने अपने पूर्वजन्मों का कर्मफल बताकर सोमशर्मा को शांत किया।

सोमशर्मा भक्ति-भाव से अपने माता-पिता की सेवा-शुश्रूषा में लग गया। उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया, फिर भी शिवशर्मा हर बात की शिकायत करते। परंतु सोमशर्मा किंचित भी असंतुष्ट हुए बिना अपने माता-पिता की सेवा में निमग्न रहे। शिवशर्मा अपने पुत्र सोमशर्मा के इस कर्मयोग से पूर्ण संतुष्ट हुए, फिर भी उनकी अंतिम परीक्षा लेने के विचार से अमृत कलश में से अमृत को अदृश्य किया और पुत्र से अमृत लाने को कहा।

सोमशर्मा ने कलश को रिक्त पाकर अपने तपोबल से पुन: अमृत से भरवा दिया और अपने पिता के हाथ में सौंप दिया। शिवशर्मा सोमशर्मा की पितृभक्ति और तपोशक्ति पर संतुष्ट होकर अपने निज रूप में प्रत्यक्ष हुए। सोमशर्मा ने भक्ति-भाव से माता-पिता के चरणों में प्रणाम किया। पिता ने पुत्र को संतुष्ट हृदय से अनेक वरदान प्रदान किए। हमारे शास्त्रों में पिता को ब्रह्मा, विष्णु और महेश बताया गया है और पितृभक्ति को सर्वफलदायक माना गया है- पिता ब्रह्मा, पिता विष्णु, पिता देवो महेश्वर:।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार

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