बाबा बैद्यनाथ धाम में है रावण की लायी चंद्रकांत मणि


भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में झारखंड के देवघर का बैद्यनाथ धाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक बैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यहां सावन में गंगाजल अर्पण का विशेष महत्व है। 

धर्माचार्यो के मुताबिक, शिव पुराण और बैद्यनाथ महात्म्य में वर्णित तथ्यों में कहा गया है कि बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग को गंगाजल और विल्वपत्र अर्पण करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। उन्हें अभिष्ट की प्राप्ति होती है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग और गंगाजल का अन्योन्याश्रय सम्बंध है। आपको बता दें कि कांवड़िए सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरने के बाद करीब 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। 

धर्म के जानकार जय कुमार पाठक कहते हैं कि प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में कहीं भी कांवड़ के सम्बंध में विशेष उल्लेख तो नहीं मिलता, लेकिन पुराणों में कांवड़ की आंशिक चर्चा है। पितृभक्त श्रवण कुमार की कथा में कांवड़ का उल्लेख किया गया है। पाठक हालांकि यह भी मानते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में इसकी चर्चा भले ही न हो, लेकिन ऐतिहासिक पुस्तकों या प्राचीन चित्रों में कांवड़ की चर्चा और उसके चित्र अवश्य मिलते हैं। 

बैद्यनाथ धाम का मंदिर ठोस पत्थरों से निर्मित है। मंदिर के मध्य प्रांगण में बना शिव का भव्य और विशाल मंदिर मनमोहक है। यह मंदिर कब बना और किसने बनवाया, यह गंभीर शोध का विषय है। मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव के 72 फीट ऊंचे मंदिर के अलावा उसी प्रांगण में अन्य 22 मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है। 

इस मंदिर की विशेषता है कि यहां शिवलिंग पर मंदिर के ऊपर लगे चंद्रकांत मणि से बराबर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। मान्यता के अनुसार, चंद्रकांत मणि यहां लंकापति रावण ने धन देवता कुबेर से हासिल कर यहां लगवाया था। चंद्रकांत मणि अष्टदल कमल की आकृति के बीच में लगा हुआ है। 

पुजारियों के मुताबिक, इस मंदिर में रात को होने वाली श्रृंगार पूजा में शिवलिंग पर जो चंदन का लेप किया जाता है, उसके ऊपर रातभर चंद्रकांत मणि से बूंदें टपकती रहती हैं। यही कारण है कि सुबह इस चंदन को लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगती है। लोगों का कहना है कि यह घाम चंदन अमृत के समान होता है। इससे सभी रोग और दुख दूर हो जाते हैं। 

यहां के पंडितों का कहना है कि इस बात का पता वर्ष 1962 में उस समय चला जब सरकार की ओर से इस मंदिर में एक और दरवाजा बनाने के लिए खुदाई की जा रही थी। चंद्रकांत मणि मिलने के बाद दरवाजा बनाने का कार्य रोक दिया गया था। पंडितों ने बताया कि एक और चंद्रकांत मणि देवी लक्ष्मी के मंदिर में है। 

कुछ लोग मानते हैं कि बैद्यनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने करवाया था। पंडित कामेश्वर मिश्र ने बताया कि पुराणों में उल्लेख है कि रावण जब शिवलिंग को धरती पर रखकर चला गया, उसके बाद भगवान विष्णु स्वयं इस शिवलिंग के दर्शन के लिए पधारे थे। तब विष्णु ने शिव की षोडषोपचार पूजा की थी। शिव ने विष्णु से यहां एक मंदिर निर्माण कराने की बात कही थी। इसके बाद विष्णु के आदेश पर भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण किया था। 

मंदिर निर्माण को लेकर इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं के मत अलग-अलग हैं। कुछ इतिहासकार इसे पालकालीन मानते हैं तो कई इसे गुप्तकालीन बताते हैं। पुरातत्ववेत्ता एवं संस्कृत साहित्य के विद्वान डा. मोहनानंद मिश्र के अनुसार, रावणेश्वर मंदिर का निर्माण इंडो-आर्य कला का खूबसूरत उदाहरण है। इस मंदिर पर अब तक किसी प्राकृतिक आपदा का प्रभाव नहीं पड़ा है।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार 

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