काल भी थर्राता है शिव के इस स्वरुप से


हिन्दू धर्म शास्त्रों में भगवान भोलेनाथ के अनेक कल्याणकारी रूप और नाम की महिमा बताई गई है। भगवान शिव ने सिर पर चन्द्रमा को धारण किया तो शशिधर कहलाये| पतित पावनी मां गंगा को आपनी जटाओं में धारण किया तो गंगाधर कहलाये| भूतों के स्वामी होने के कारण भूतवान पुकारे गए| विषपान किया तो नीलकंठ कहलाये| इसी क्रम में शिव का एक अद्भुत स्वरूप है मृत्युञ्जय का। कहा जाता है की शिव के इस स्वरुप ले आगे काल भी पराजित हो जाता है| 

मृत्युञ्जय का अर्थ ही होता है मृत्यु को जीतने वाला| शास्त्रों के मुताबिक शिव का मृत्युञ्जय स्वरुप अष्टभुजाधारी है। सिर पर बालचन्द्र धारण किए हुए हैं। कमल पर विराजित हैं। ऊपर के हाथों से स्वयं पर अमृत कलश से अमृत धारा अर्पित कर रहें हैं। बीच के दो हाथों में रुद्राक्ष माला व मृगमुद्रा। नीचे के हाथों में अमृत कलश थामें हैं। 

महामृत्युञ्जय के मृत्यु को पराजित करने के पीछे शास्त्रों में कहा गया है कि यह स्वरुप आनंद, विज्ञान, मन, प्राण व वाक यानी शब्द, वाणी, बोल इन पांच कलाओं का स्वामी है। यही कारण है कि आनंद स्वरूप महामृत्युञ्जय शिव की उपासना से मिलने वाली प्रसन्नता से मौत ही मात नहीं खाती बल्कि निर्भय व निरोगी जीवन भी प्राप्त होता है। 

कोई टिप्पणी नहीं: