सभी कष्टों के निवारण को शिव का नाम ही पर्याप्त है। वेदों, शास्त्रों तक में शिव का शाब्दिक अर्थ कल्याण, सुख का आनंद बताया गया है। हिंदू धर्म के मुताबिक पूरी प्रकृति ही शिव का रूप है। हिंदू कलेंडर में पांचवें माह श्रावण यानी सावन माह में शिव अराधना का विशेष महत्व है। इस बार सावन की शुरुआत 4 जुलाई दिन बुधवार से हो रही है और इसकी समाप्ति 2 अगस्त को होगी|
सावन की विशेषता-
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। इसके आलावा एक अन्य कथा के मुताबिक, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव कृपा प्राप्त की। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे|
इस तरह करें भगवान शिव की पूजा-
आपको बता दें कि सावन मास में भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों संग करनी चाहिए| इस माह में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। इसलिए इस मास में प्रत्येक दिन रुद्राभिषेक किया जा सकता है जबकि अन्य माह में शिववास का मुहूर्त देखना पड़ता है। भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है| अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, समीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं| अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रुप में चढा़या जाता है|
शिवलिंग पर बेलपत्र तथा शमीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में भी उल्लेख किया गया है| बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढा़या जाता है| कहा जाता है कि एक फूल शिवलिंग पर चढाने से सोने के दान के बराबर फल देता है वो आक के फूल को चढाने से मिल जाता है, हज़ार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों के चढाने की अपेक्षा एक बिल्व-पत्र से मिल जाता है| हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराकर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।
इसलिए बढ़ा बेलपत्र का महत्व-
शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका बेलपत्र है| बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्व है| इस कथा के अनुसार भील नाम का एक डाकू था| यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था| एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया| एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला|
जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था वह बेल का पेड़ था| रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा| पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, जो पत्ते वह तोडकर फेंख रहा था वह अनजाने में शिवलिंग पर गिर रहे थे| लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा ,उस दिन से बिल्व-पत्र का महत्व और बढ़ गया|
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