दमिश्क शहर में मुस्तफा नाम का एक धनवान रहता था। उसके सैयद नाम का एक लड़का था। मुस्तफा बेटे सैयद को व्यापार-व्यवसाय में कुशल बनाने का प्रयत्न करता रहता था। लेकिन सैयद की दोस्ती एक बुरे आदमी के साथ हो गई थी और उस आदमी के कहे अनुसार ही वह चलता था। मुस्तफा को इससे दुख होता था। उसे इस बात की चिंता सताने लगी कि यदि यही हाल रहा, तो उसके गुजर जाने पर सैयद अपने दोस्त की सोहबत में पड़कर सारा पैसा बर्बाद कर देगा।
एक दिन मुस्तफा ने एक तरकीब सोची। उसने सैयद को बुलाया और कहा, "बेटा सैयद, हम दोनों को कुछ दिनों के लिए तिजारत के काम से बगदाद जाना होगा। इन दिनों दमिश्क में चोरों का त्रास बहुत ही बढ़ गया है। इसलिए हमें सोचना यह है कि हम अपने कीमती जेवरों की पेटी किसे सौंपकर जाएं?"
सैयद बोला, "मेरे दोस्त के जैसा ईमानदार आदमी दमिश्क में दूसरा कोई नहीं है। इसलिए अगर आप यह पेटी इन्हें सौंप देंगे तो कोई हर्ज न होगा। पेटी बंद रहेगी, इसलिए फिकर की वैसे भी कोई वजह नहीं है।"
मुस्तफा ने कहा, "सैयद, मुझे भी तुझ पर भरोसा है। ले यह पेटी, तू अपने दोस्त को सौंप आ।" सैयद वैसा ही किया। फिर बाप-बेटे बगदाद के लिए रवाना हुए। वहां कुछ दिन रहकर और व्यापार-संबंधी जरूरी काम निपटाकर वे घर वापस आ गए।
घर आने पर मुस्तफा ने कहा, "बेटा, तू जा और अपनी वह पेटी अपने दोस्त के घर से ले आ।" लेकिन कुछ ही देर बाद सैयद लाल-पीला होता हुआ आया और गुस्से-भरी आवाज में मुस्तफा से कहने लगा, "बाबाजान, आपने मेरे दोस्त की बड़ी तौहीन की है। उसने मुझसे कहा कि आपने उस पेटी में कीमती जेवरों के बदले पत्थर भर रखे थे। इस तरह उसकी तौहीन करके आपने मेरी ही तौहीन की है।"
मुस्तफा ने धीरज के साथ कहा, "लेकिन बेटा, तेरे दोस्त को पता कैसे चला कि पेटी में पत्थर भरे थे? तू तो जानता ही है कि पेटी में तीन-तीन ताले लगे थे। इसका मतलब तो यही हुआ कि तेरे दोस्त ने किसी तरकीब से उन तालों को खोलकर पेटी के अंदर का सामान देखा और फिर ताले ज्यों-के-त्यों बंद कर दिए। अच्छा हुआ कि मैंने पेटी में कीमती जेवर रखने के बदले पत्थर रख दिए थे, नहीं तो तेरा वह दोस्त पता नहीं, क्या-क्या कर डालता! बोल, जो मैंने किया, सो ठीक ही किया न?"
बेचारा सैयद क्या बोलता! वह नीचा सिर करके कहने लगा, "बाबाजान, मुझसे बड़ी भूल हुई। आज तक मैं ऐसे दोस्तों पर यकीन रखकर चलता था। अब मैं कभी इन लोगों को अपना दोस्त नहीं बनाऊंगा।"
पर्दाफाश
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