ब्रिटिश हुकूमत काल की एक और बचीखुची निशानी इतिहास के किताबों में समाने जा रही है। धौलपुर से आगरा के टनटपुर तक 65 किलोमीटर लंबी संकरी रेल लाइन (नैरोगेज) पर चलने वाली ट्रेन के दिन गिनती के बचे हैं। शताब्दी पुरानी इसी रेल मार्ग से दिल्ली में भारतीय सत्ता की शक्ति के प्रतीक राष्ट्रपति भवन और संसद भवन के निर्माण में धौलपुर के मशहूर पत्थर ढोए गए थे। अब यह रेल मार्ग आधुनिक और उन्नत युग के रेल मार्ग से जुड़ने जा रहा है।
उत्तर मध्य रेलवे ने इस रेल लाइन के गेज परिवर्तन की योजना बनाई है और इस वर्ष के रेल बजट में धौलपुर और सीर मथुरा के बीच काम शुरू करने के लिए 212 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। ढाई फीट चौड़ी रेल लाइन की जगह ब्रॉड गेज लाइन बिछाई जाएगी।
चूंकि ट्रेन अब इतिहास बनने जा रहा है, इसलिए इलाके के लोग वीतराग से भरे हैं। क्षेत्र के एक वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना ने कहा कि वे धीमी गति की ट्रेन की कमी महसूस करेंगे। सक्सेना ने कहा, "धीमी गति का यह अपूर्व अनुभव अब खत्म हो जाएगा।" श्री मथुरा राजघराने के राव नरेंद्र सिंह ने कहा, "एक आलसी की तरह इसकी चाल धीमी होती है। आप इससे उतरकर फिर वापस चढ़ सकते हैं और इसकी छत पर सफर करने का अलग ही मजा है।"
उन्होंने बताया, "1950 के आखिर में धौलपुर जाने के लिए हम इस ट्रेन को श्री मथुरा में पकड़ते थे। श्री मथुरा ही बाद में सीर मथुरा हो गया।" राव नरेंद्र सिंह ने बताया, "ब्रिटिश अपनी राजधानी कोलकाता से दिल्ली लाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने इस इलाके में रेल का जाल बिछाया ताकि दिल्ली में सरकारी भवन बनाने के लिए धौलपुर के पत्थर ढोए जा सकें।"
पर्दाफाश
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