अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के जीवन दर्शन और सुविचारों की प्रासंगिकता को इसी बात से समझा जा सकता है कि आज, उनके जन्म के 144वें वर्ष में भी कई फिल्मकार उनके दर्शन और उपदेशों को अपनी फिल्मों में उतारना चाहते हैं, और कई फिल्मकार इस दिशा में लगे भी हुए हैं।
आइए, ऐसी ही कुछ फिल्मों पर एक दृष्टि डालते हैं, जो राष्ट्रपिता के जीवन पर आधारित हैं, साथ-साथ हम ऐसी भी फिल्मों पर दृष्टिपात करेंगे जो गांधी के जीवन पर भले न हों, पर उनमें उनके विचारों को प्रमुखता से रखा गया है :
गांधी (1982) : रिचर्ड एटनबरो के निर्देशन में बनी यह फिल्म गांधी के जीवन पर बनी सबसे उत्कृष्ट फिल्मों में शुमार की जाती है। फिल्म में बेन किंग्स्ले ने गांधी के चरित्र को इतनी खूबसूरती से निभाया है कि उन्हें इस फिल्म में अभिनय के लिए आस्कर अवार्ड से नवाजा गया। फिल्म को सात आस्कर अवार्ड मिले।
द मेकिंग ऑफ द महात्मा (1996) : फातिमा मीर की पुस्तक 'द एप्रेंटिसशिप ऑफ ए महात्मा' का श्रेष्ठ भारतीय फिल्मकार श्याम बेनेगल ने फिल्मी रूपांतर कर इस फिल्म की रचना की। फिल्म में गांधी की भूमिका करने वाले रजित कपूर को उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
लगे रहो मुन्नाभाई (2006) : निर्देशक राजकुमार हिरानी ने अपनी इस फिल्म में गांधी के विचारों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बेहद सहज अंदाज में पेश किया, और 'गंधीगीरी' के रूप में उनके विचारों को लोकप्रिय बनाया।
गांधी माई फादर (2007) : देश के लिए समर्पित गांधी के अपने परिवार से खासकर अपने बड़े बेटे हरीलाल से संबंधों को इस फिल्म में निर्देशक फीरोज अब्बास खान ने बहुत बारीकी से बुना है। फिल्म को तीन वर्गो में राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
आइए, कुछ ऐसी फिल्मों पर भी नजर डालते हैं, जो सीधे तौर पर तो महात्मा गांधी पर केंद्रित तो नही थीं, लेकिन उनमें गांधी और उनके विचारों का उल्लेख अवश्य है।
सरदार (1993) : मुख्यत: सरदार बल्लभभाई पटेल पर बनी इस फिल्म में निर्देशक केतन मेहता ने गांधी और उनके विचारों को भी गंभीरता से चित्रित किया है।
हे राम (2000) : हिंदी और तमिल, दो भाषाओं में बनी इस फिल्म का निर्देशन प्रख्यात अभिनेता कमल हासन ने किया है। यह फिल्म विभाजन और गांधी की हत्या पर केंद्रित है। फिल्म में गांधी का किरदार मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने निभाया है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस : द फॉरगॉटेन हीरो (2005) : श्याम बेनेगल ने एकबार फिर जब आजादी से पूर्व के काल को सुभाष चंद्र बोस की कहानी के माध्यम से फिल्म में उतारा तो गांधी की जिक्र किए बगैर उन्हें फिल्म बनाना अधूरा सा लगा। यह गांधी के दौर की दो विचारधाराओं पर केंद्रित फिल्म है।
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