छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में सांप्रदायिक सौहाद्र्र का अनूठा उदाहरण है जलाउद्दीन बगदाद वाले बाबा की मजार। इस मजार की पूरी देख-रेख यहां के लिए बनी हिन्दुओं की समिति करती है। पिनकापार गांव में एकमात्र मुस्लिम परिवार निवास करता है। मुस्लिम परिवार भी हिन्दुओं की इस धार्मिक आस्था से बेहद प्रसन्न है।
गांव में बने मजार का पिछले 100 वर्षो से यहां के हिंदू पूरी शिद्दत से देखभाल करते आ रहे हैं। इसके लिए कमेटी बनाई गई है। कमेटी जलाउद्दीन बगदाद वाले बाबा के नाम से लोकप्रिय मजार को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए पहले अस्थाई शेड बनाना चाहते हैं। इसीलिए वे गांव के लोगों से धन संग्रह कर रहे हैं।
यहां की आबादी करीब 450 परिवारों की है, जिसमें एक मात्र मुस्लिम परिवार है। शुरुआत में परकोटे का निर्माण दाऊ शशि देशमुख ने कराया। प्रत्येक शुक्रवार को 20 से अधिक हिंदू परिवार मजार पर अगरबत्ती व धूप से इबादत करते हैं।
90 साल के प्रेमलाल देवांगन, झाड़ूराम सारथी व बसंत देशमुख ने बताया कि 1905 में मजार मिट्टी की बनी थी, जिसे चूना व पत्थर से पक्का कर दिया गया। वे मजार निर्माण का सही समय नहीं बता पाए, पर उनका कहना है कि किसी भी तरह की परेशानी आने पर यहां आकर फरियाद करते रहे हैं तो लाभ मिलता है। इसीलिए लोगों का मजार के प्रति विश्वास बढ़ता गया।
बुजुर्गों का कहना है कि 1890 में यहां करीब 70 मुस्लिम परिवार रहते थे। अब एक ही मुस्लिम परिवार सत्तार खां ही रहते हैं। बताया गया कि एक दशक पहले हिंदुओं के सहयोग से महबूब खां ताजिया निकाला करते थे। जबसे उनकी मृत्यु हुई, तब से ताजिया निकलनी बंद हो गई है।
पिनकापार से करीब 12 किलोमीटर दूर ग्राम जेवरतला है। यहां के निवासी धनराज ढोबरे (मराठा) पिछले 26 सालों से प्रत्येक शुक्रवार को मजार आ रहे हैं। ढोबरे का कहना है कि यहां आने पर उन्हें सुकून मिलता है।
इसी तरह से बीस साल से इतवारी रजक भी मजार पर आ रहे हैं। रजक ने अपने होटल में मजार के विस्तार के लिए दानपात्र रखा है। सालों से हर शुक्रवार को आने वालों में मुजगहन के नकुल सिन्हा, संतोष देवांगन, इंदू भूआर्य, जाग्रत देवांगन, ओमप्रकाश कोसमा व कु.शशि साहू हैं। अब तो यहां आसपास के गांव से भी हिन्दू इबादत के लिए पहुंचने लगे हैं।
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