बिहार में नक्सली हमले के बाद जातीय संघर्ष की आशंका

बिहार के नक्सल प्रभावित औरंगाबाद जिले में नक्सली घटनाएं आम रही हैं, लेकिन गुरुवार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के संदिग्ध नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंग में विस्फोट कर रणवीर सेना के समर्थक माने जाने वाले सुशील पांडेय सहित सात लोगों की हत्या किए जाने के बाद अब जातीय संघर्ष के जोर पकड़ने की आंशका बढ़ गई है।

औरंगाबाद जिले के ओबरा थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने गुरुवार देर शाम बारूदी सुरंग विस्फोट कर सुशील पांडेय सहित सात लोगों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद से औरंगाबाद, रोहतास, अरवल, जहानाबाद के लोग खूनी संघर्ष फिर से शुरू होने की आशंका से सहमे हुए हैं।

गौरतलब है कि 90 के दशक में रणवीर सेना और भाकपा (माओवादी) के बीच हुए खूनी संघर्ष में सैकड़ों लोगों की जान गई थी। जून 2000 में सेना और भाकपा (माओवादी) के बीच संघर्ष औरंगाबाद जिले के मियांपुर गांव में हुआ था, जहां भाकपा (माओवादी) के 33 कथित समर्थकों की हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद दोनों संगठनों के समर्थक एक-दूसरे से टक्कर लेने से बच रहे थे। कहा जाता है कि मियांपुर की घटना अरवल के सेनारी गांव में भाकपा (माओवादी) द्वारा किए गए नरसंहार का बदला था।

इस घटना के बाद जहां सेना सुस्त पड़ते चली गई, वहीं भाकपा (माओवादी) ने भी संघर्ष छोड़ संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दिया। वैसे तो औरंगाबाद में रणवीर सेना का कोई सशक्त संगठन नहीं रहा है, लेकिन समय-समय पर सेना के समर्थक यहां कमान संभालते रहे हैं। सुशील पांडेय भी 90 के दशक के उत्तरार्ध में नक्सलियों के सबसे बड़े शत्रु रहे थे।

औरंगाबाद में गुरुवार को नक्सली घटना के बाद रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्ममेश्वर मुखिया के पुत्र और राष्ट्रवादी किसान संगठन के केंद्रीय अध्यक्ष इंदुभूषण ने सरकार को चेताते हुए कहा है कि किसान जाग जाएंगे तो उन पर काबू पाना सरकार के वश के बाहर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी मंशा साफ करनी चाहिए।

इधर, संगठन के प्रवक्ता देवेंद्र सिंह ने तो सरकार को ही कटघरे में लाते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। वे कहते हैं कि किसान अगर मारे जाते रहेंगे तो हमने भी चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मुखिया हत्याकांड के बाद राज्य सरकार पर सब कुछ छोड़ दिया गया, पर सरकार संगठन की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी है।

सूत्र इस घटना को लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार से भी जोड़कर देख रहे हैं। लक्ष्मणपुर बाथे गांव में दलित समुदाय के 58 लोगों की हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा सजा पाए गए सभी 26 अभियुक्तों को नौ अक्टूबर को पटना उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था। माना जाता है कि इस फैसले के विरोध में भाकपा (माओवादी) ने इस घटना को अंजाम दिया है।

लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार के मामले में पटना की व्यवहार न्यायालय ने वर्ष 2010 में 26 लोगों को दोषी ठहराते हुए 16 को फांसी तथा 10 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी तथा 19 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था। इस मामले में दो आरोपियों की मामले की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी। आरोप है कि रणवीर सेना के लोगों ने एक दिसंबर 1997 को लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 दलितों की हत्या कर दी थी। मरने वालों में 27 औरतें और 16 बच्चे शामिल थे। 

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