एक कामाख्या झारखंड में भी


नवरात्र यानी दुर्गापूजा शुरू हो गई है। शक्ति स्वरूपा देवी मां की पूजा के लिए श्रद्धालु देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में पहुंच रहे हैं। ऐसी ही एक शक्तिपीठ झारखंड के गोड्डा जिले में है जिसे मां योगिनी स्थल नाम से जाना जाता है। 

पथरगामा प्रखंड में स्थित मां योगिनी मंदिर तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। तंत्र विद्या के साधक इस प्राचीन मंदिर को असम केकामाख्या मंदिर के समकक्ष मानते हैं।

शिव पुराण के अनुसार, पति भगवान शंकर के अपमान से आहत सती के अग्निकुंड में कूदने के बाद उनके जलते शरीर को लेकर जब शिव तांडव करने लगे थे तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र सुदर्शन से सती के शव को विच्छिन्न किया था। सती के अंग विभिन्न जगहों पर गिरे और मान्यता है कि उनकी बाईं जांघ यहीं गिरी थी। लेकिन इस सिद्धस्थल को गुप्त रखा गया था।

विद्वानों के मुताबिक, हमारे पुराणों में 51 सिद्धपीठों का वर्णन है, लेकिन योगिनी पुराण के अनुसार वास्तव में 52 सिद्धपीठ हैं।

मंदिर में साधना कर रहे पंडित देव ज्योति हलधर बताते हैं कि शहर की गहमागहमी से दूर यह मंदिर तंत्र साधना के लिए कामाख्या मंदिर के समकक्ष है। दोनों मंदिरों में पूजा के विधि-विधान एक सामान हैं। वहां के मंदिर में भी तीन दरवाजे हैं और यहां के मंदिर में भी वैसा ही है। कामाख्या मंदिर की तरह योगिनी मंदिर में भी पिंड की पूजा होती है।

वे कहते हैं कि योगिनी मां अष्टमालिका की सहचरणी हैं। नवरात्र और काली पूजा की रात में यहां विशेष मंत्र सिद्धि के लिए सैकड़ों तांत्रिक आते हैं। माना जाता है कि वास्तु और ग्रह-नक्षत्र के अनुसार मां की अराधना की जाए तो मंत्र सिद्धि आसानी से प्राप्त हो जाती है।

गोड्डा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर बारकोपा स्थित मां योगिनी मंदिर का काफी पुराना इतिहास रहा है। ऐतिहासिक और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार, द्वापरकालीन इस मंदिर में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कई दिन यहां गुजारे थे, जिसकी चर्चा महाभारत में भी की गई है। तब यह मंदिर गुप्त योगिनी के नाम से प्रसिद्ध था।

पथरगामा के एक बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यहां नर बलि दी जाती थी जिसे अंग्रेजों के शासन काल में बंद करवाया गया था। वे कहते हैं कि मंदिर के सामने स्थित वटवृक्ष काफी पुराना है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, साधक पहले इस वटवृक्ष पर बैठकर साधना किया करते थे।

पुजारी आशुतोष बताते हैं कि इस मंदिर में प्रतिदिन 400 से 500 श्रद्धालु पहुंचते हैं, परंतु नवरात्र के दिनों में भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से आने वाले लोगों की पीड़ा मां दूर करती हैं। योगिनी पुराण के मुताबिक, मां योगिनी सभी देवियों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

इस मंदिर की विशेषता है उसका गर्भगृह। 354 सीढ़ियां ऊपर चढ़ने पर पहाड़ पर मां का गर्भगृह दिखाई देता है। गर्भगृह के अंदर जाने के लिए एक गुफा से होकर गुजरना पड़ता है। बाहर से देखने पर गुफा में अंधेरा नजर आता है, लेकिन प्रवेश करते ही प्रकाश ही प्रकाश नजर आता है, जबकि गुफा के अंदर बिजली की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु इसे चमत्कार मानते हैं।

बाहर से गुफा का द्वार और अंदर चारों तरफ नुकीले पत्थरों को देखकर लोग अंदर जाने से घबराते हैं, लेकिन देखा गया है कि मोटा से मोटा व्यक्ति भी इस संकरी गुफा में आसानी से प्रवेश कर जाता है और मां का जयकारा लगाते हुए सकुशल निकल आता है। गुफा के अंदर टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता है। अंदर गर्भगृह में भी कई साधु अपनी साधना में लीन रहते हैं।

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि पांच दशक पूर्व तक यहां लोगों की कम आवाजाही थी। घने जंगल के बीच मंदिर होने के कारण काफी कम लोग यहां पहुंचते थे, लेकिन अब यहां लोगों की भीड़ लगी रहती है। कहा जाता है कि एक साधक ने यहां आकर गुफा में गर्भगृह होने का खुलासा किया था।

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