बुंदेलखंड में जमघट से शुरू होती है गोवर्धन पूजा

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में हर तीज-त्योहार मनाने के कुछ अलग ही रिवाज हैं। प्रकाश पर्व दीपावली के दूसरे दिन जमघट से दो अलग-अलग मान्यताओं के साथ गोवर्धन पूजा की शुरुआत होती है, अपने को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताने वाले ग्वालवंशी 'गोवर्धन पर्वत' और किसान वर्ग 'गोबर धन' के रूप में एक पखवाड़े तक पशुओं के गोबर से बने टीले की पूजा करते हैं।

वैसे, उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में हर तीज-त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं, लेकिन रीति-रिवाज और मान्यताएं कुछ अलग हैं। अब आप प्रकाश पर्व दीपावली के दूसरे दिन जमघट से एक पखवाड़ा तक चलने वाली गोवर्धन पूजा को ही ले लीजिए। इस पूजा में भी दो अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

अपने को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताने वाले ग्वालवंशी (यादव) पशुओं के गोबर से बने टीले को गोवर्धन पर्वत और किसान वर्ग इस टीले की पूजा गोबर-धन के रूप में करते हैं। गांव-देहातों में इसे गोधन दाई के नाम से पुकारते हैं।

बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा को लेकर दो अलग-अलग मान्यताएं हैं, पहली मान्यता के बारे में बांदा जिले के पनगरा में रहने वाले ग्वालवंशी लाला यादव का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जमघट के दिन अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत उठा कर गोकुलवासियों की रक्षा की थी, तभी से पशुओं के गोबर का पर्वत (गोधन दाई) बनाकर इसकी एक पखवाड़ा तक पूजा की जाने लगी है।

दूसरी मान्यता के बारे में गड़ाव गांव के बुजुर्ग किसान काशी प्रसाद तिवारी का कहना है कि पशुओं का गोबर किसान का सबसे बड़ा धन है, इसलिए किसान गोबर-धन की पूजा करता है। सबसे खास बात यह है कि गोवर्धन पर्वत में इस्तेमाल किए गए गोबर को एक पखवाड़ा बाद हर किसान अपने खेत में फेंककर अच्छी फसल की मन्नत मांगते हैं। इस दौरान किसान अपने पशुओं का गोबर पड़ोसियों को मुफ्त में नहीं देते।

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