गरीबी के कारण बरखा (कल्पित नाम) को मात्र 12 वर्ष की अवस्था में पश्चिम बंगाल से दिल्ली आकर घरेलू नौकरानी का काम अपनाना पड़ा। उसने जब पश्चिमी दिल्ली में एक चिकित्सक के घर खाना पकाने का काम शुरू किया तो उसे विश्वास था कि अब उसका जीवन बेहतर हो जाएगा।
लेकिन उसकी उम्मीदें तब धूमिल पड़ने लगीं, जब उसके मालिक ने उसे छोटी-छोटी गलतियों पर गाली देना और मारना-पीटना शुरू कर दिया। बरखा ने बताया कि वह मुझे बिना वजह मारता था और चिल्लाता था। मुझे गर्मियों की चिलचिलाती धूप में खड़े रहना पड़ता था। वे मुझे खाना तक नहीं देते थे और घर में ताला लगाकर बंद रखते थे। अंतत: बरखा एक दिन अपने अभिभावकों को फोन करने में कामयाब रही। तब कहीं जाकर बरखा के अभिभावकों द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद बरखा को 2012 में आजाद करवाया जा सका।
वास्तव में यह कहानी सिर्फ एक बरखा की नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस के सामने पिछले एक वर्ष में घरेलू नौकरानियों के साथ दुर्व्यवहार एवं हिंसा के ऐसे 170 मामले सामने आ चुके हैं। उप्र के बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सांसद धनंजय सिंह की दंत चिकित्सक पत्नी जागृति सिंह द्वारा अपनी नौकरानी राखी को पीट-पीटकर मार डालने की घटना ने पिछले दिनों राजधानी को हिलाकर रख दिया।
जागृति को अपनी 35 वर्षीय नौकरानी राखी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है। जागृति पर अपने दो अन्य नौकरों के साथ भी अक्सर मारपीट करने के आरोप हैं। इस मामले में सांसद धनंजय सिंह को भी साक्ष्य मिटाने एवं किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। दोनों इस समय पुलिस हिरासत में हैं।
राजधानी स्थित गैर सरकारी संगठन 'शक्ति वाहिनी' के प्रवक्ता ऋषिकांत के अनुसार, घरेलू नौकरानियों पर अत्याचार के मामलों में काफी वृद्धि हुई है। ऋषिकांत ने बताया कि इस तरह के मामलों में काफी तेजी आई है। समाज में हर पहलू से गिरावट आई है। ऋषिकांत के अनुसार, "इसका संबंध आर्थिक स्थिति से भी है। लोगों के पास तेजी से पैसा आ रहा है, जिसके कारण उनका गरीबों और उनके लिए काम करने वाले लोगों के प्रति रवैया बुरा होता जा रहा है।"
ऋषिकांत ने बताया कि इसी प्रकार 2006 में आठ से 12 वर्ष की आयु के बीच की तीन बच्चियों को बेहद बुरे हालात में फरीदाबाद के एक घर से आजाद करवाया गया था। पुलिस उपायुक्त एस. बी. एस. त्यागी ने बताया कि तीनों बच्चियां एक अभियंता के घर में काम करती थीं। मकान मालकिन कुंठित थी या बेहद तनाव में रहती थी, जिसके कारण वह तीनों बच्चियों के साथ बहुत निर्मम व्यवहार करती थी।
एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले दशक में इस तरह के मामलों में तेजी आई है, तथा उनमें से अधिकतर मामलों में नाबालिग लड़कियां ही पीड़ित पाई गईं। दिल्ली में घरों में काम करने के लिए अमूमन पूर्वी राज्यों जैसे, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और झारखंड तथा आंध्र प्रदेश से भी बच्चियों को लाया जाता है। उनमें से अधिकांश बच्चियों को प्लेसमेंट एजेंसी के दलाल दिल्ली की चकाचौंध और नौकरी दिलाने का लालच दिखाकर लाते हैं। लेकिन दिल्ली लाकर ये दलाल उन्हें अमीरों के यहां बेच देते हैं।
दिल्ली पुलिस के अनुसार इस तरह गैर कानूनी तौर पर काम करने वाली एजेंसियों की संख्या हजारों में है। दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने बताया कि हमें जैसे ही इस तरह की प्लेसमेंट एजेंसी का पता लगता है, हम तत्काल उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करते हैं। पिछले दो महीनों में राजधानी में घरेलू नौकरानियों के साथ मारपीट के तीन मामले सामने आए हैं। इन सबके बावजूद देश में गृह सहायक कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक विशेष कानून तक नहीं है।
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