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कांग्रेस को ध्वस्त कर देने वाली और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय रथ का पहिया थाम देने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के धूमकेतु की तरह उदित होने के पीछे मजबूत इरादे वाला यह आदमी खड़ा है जिसके नस-नस में राजनीति बसी हुई है। यह इसी आदमी का करिश्मा है जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को महज दो वर्षो के भीतर एक सफल राजनीतिक दल में बदल कर रख दिया।
दिल्ली पर हुकूमत करने जा रहे केजरीवाल (45) अभी तक एकमात्र ऐसे प्रहरी बने हुए हैं जो कांग्रेस के साथ रोटी साझा करने के लिए तैयार नहीं है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पर तीखा प्रहार करने से बाज नहीं आने वाले अरविंद की अल्पमत की सरकार उसी पार्टी के बाहरी समर्थन पर टिकी रहेगी।
आप ने न केवल 28 सीटें बटोर कर राजनीतिक सनसनी पैदा कर दी, बल्कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 25000 से ज्यादा मतों से पराजित कर केजरीवाल देश में एक प्रमुख राजनीतिक हैसियत भी बनाने में कामयाब रहे। आप को 28 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 8 पर सिमट गई और भाजपा का रथ 31 पर जाकर अटक गया।
दिल्ली 70 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के अभाव में उनकी एक वर्ष पुरानी पार्टी की कुछ अपनी बंदिशें होंगी। लेकिन केजरीवाल और उनके दोस्तों का कहना है कि वे हमेशा से लड़ाके रहे हैं। हरियाणा के सिवान गांव में 16 अगस्त 1968 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे केजरीवाल की प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के मिशनरी स्कूल में हुई।
परिवारवाले केजरीवाल को चिकित्सक बनते देखना चाहते थे, लेकिन परिवार की मर्जी के खिलाफ उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में दाखिला लिया और वहां से उन्होंने यांत्रिक अभियंत्रण की पढ़ाई पूरी की।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे भारतीय राजस्व सेवा में आए और भ्रष्टाचार के लिए सर्वाधिक बदनाम माने जाने वाले आयकर विभाग में अधिकारी नियुक्त हुए। राजस्व सेवा की नौकरी छोड़ सामाजिक बदलाव के लिए उतरे केजरीवाल को वर्ष 2006 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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