पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर विशेष

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ....

कविता "दो अनुभूतियाँ" की यह पंक्तियाँ अपने रचयिता की जिजीविषा को बेहद सहज और सरल तरीके से दर्शाती हैं| इस कविता के रचयिता कोई और नहीं बल्कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं| 25 दिसंबर 1924 को उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्में अटल बिहारी मंगलवार को जीवन के 90वें पड़ाव में कदम रख रहे हैं|

एक सहज और सरल व्यक्तित्व के स्वामी अटल बिहारी का एक ऐसा नाम हैं, जिन्होनें भारतीय राजनीति को एक नया आयाम दिया| अटल बिहारी न सिर्फ एक सफल राजनेता हैं बल्कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि भी हैं|

व्यक्तिगत जीवन

भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक अध्यापक पं. कृष्ण बिहारी के घर में जन्म लिया| उन्होंने बीए की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज में की और कानपुर के डीएवी कालेज से राजनीति शास्त्र में प्रथम श्रेणी में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की| अविवाहित अटल ने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया|

अटल ने राजनीति की शिक्षा डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में ली| उन्होंने साल 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा| इसके बाद साल 1957 में बलरामपुर से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे| अटल साल 1957 से 1977 तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता भी रहे|

राजनीतिक जीवन

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जन संघ की स्थापना करने वालों में से एक है और साल 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रह चुके हैं| अटल ने साल 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा| इसके बाद, साल 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पंहुचे|

अटल साल 1957 से जनता पार्टी की स्थापना के साल 1977 तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे| अटल ने साल 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्टीय अध्यक्ष पद को सुशोभित किया| मोरारजी देसाई की सरकार में वह 1977से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनाई|

1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया| वाजपेयी ने 6 अप्रैल, 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद संभाला| साथ ही वे दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए| साल 1997 में वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली| उन्होंने 19 अप्रैल, 1998 को पुनः प्रधानमंत्री पद की शपथ ली|

सन 2004 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ते हुए "भारत उदय (इण्डिया शाइनिंग)" का नारा दिया|

इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला| ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भाजपा विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई|

कवि के रूप में अटल

मृत्यु या हत्या
अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी वक्तव्यों का संग्रह)
कैदी कविराय की कुण्डलियाँ
संसद में तीन दशक
अमर आग है

कुछ लेख:

कुछ भाषण
सेक्युलर वाद
राजनीति की रपटीली राहें
बिन्दु बिन्दु विचार, इत्यादि|

कोई टिप्पणी नहीं: