लोकगीतों की सोंधी महक को समेटे और आल्हा की तान, बिरहा का दर्द, फाग की
सुरीली धुन और कजरी की मिठास लिए लोक गायन से सजे लखनऊ दूरदर्शन पर
प्रसारित होने वाले 'माटी के बोल' कार्यक्रम को पहली ही कड़ी से खूब सराहा
जा रहा है।
लखनऊ दूरदर्शन पर हर सोमवार और मंगलवार शाम 7.30 बजे यह कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है। इस कार्यक्रम को जहां लोकगीतों के पुरोधाओं ने खुलकर सराहा, वहीं उन्होंने उम्मीद भी जताई है कि 'माटी के बोल' उत्तर प्रदेश में लोकगीतों की फसल को सींचेगा और युवा पीढ़ी भी अपनी संस्कृति और उसकी मिठास से वाकिफ होगी।
इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हाल ही में जब मेगाऑडिशन राउंड में उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभागियों की भीड़ उमड़ पड़ी, तभी से इसकी सफलता की उम्मीद लगाई जाने लगी थी। निर्णायक मंडल में शामिल सुप्रिसद्ध अवधी लोक गायिका कुसुम वर्मा के मुताबिक, लोक संगीत एक ऐसी विधा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण की प्रवृत्ति रखती है, और समाज में व्याप्त रिवाजों और संस्कारों को अनोखा और आकर्षक रूप प्रदान करती है।
लोक गायन के क्षेत्र की बेहद चर्चित हस्तियां और इस कार्यक्रम के दो अन्य निर्णायक जया श्रीवास्तव एवं मनोज मिहिर के मुताबिक, इस तरह के लोकगीतों से जुड़े कार्यक्रमों को सिर्फ एक रियल्टी शो या प्रतियोगिता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इनका खुले दिल से प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि लोक गायन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के तौर पर मिलता रहे।
दरअसल, लोक कलाएं संस्कृति की अभिव्यक्ति हैं जो अनंत काल से लोगों के द्वारा गाई जाती रही हैं। खासतौर से भारतीय परिवेश में जहां 'कोस-कोस पे बदले पानी, कोस-कोस पे बानी' की कहावत प्रचलित है वहां लोकगीतों का संसार और भी व्यापक है।
भारतीय समाज में लोक संगीत जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न पहलुओं से जुड़ा हुआ है। लोकगीतों में जीवन के विभिन्न चरणों के लिए विभिन्न अभिव्यक्ति प्रदान करने की अद्भुत क्षमता है, जैसे जन्म संस्कार से लेकर नामकरण, मुंडन, अन्नप्राशन, जनेऊ, विवाह, वर खोजाई, तिलक, बन्ना-बन्नी, सुहाग, कन्यादान, भांवरगीत, विदाई आदि जीवन के हर पड़ाव के लिए लोकगीतों में अनेक विधाओं में गीत सुनने को मिल जाते हैं।
वहीं बुंदेलखंड का शौर्यगीत 'आल्हा' आज भी लोगों में जोश और उत्साह पैदा करने वाले गीत के रूप में विश्वविख्यात है। आल्हा की तान के बल पर बुंदेली कलाकार पूरी दुनिया में अपनी ओजपूर्ण शैली का डंका पीटते आए हैं। इसी तरह लोक गायन की अहम विधा बिरहा, जब श्रीकृष्ण विकल गोपियों को छोड़कर ब्रज से चले गए तो उनके दुख को अभिव्यक्त करने के लिए गाया गया।
वहीं काठ के घोड़े पर सवार और रंग-बिरंगे परिधानों से सजे कमर मटकाते कलाकार अपने खास देसी अंदाज में घोबिया गीत की याद दिलाते रहे हैं। इनके अलावा नौटंकी, करमा, पाईडंडा, ऋतु पर्व के गीत, फाग, कजरी, चैती हमारे जीवन से विभिन्न रूपों में जुड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पहली बार 'माटी के बोल' जैसा लोकगायन का एक बड़ा रियलिटी शो लाने वाले सिनेक्राफ्ट प्रोडक्शन के कार्यकारी निदेशक विवेक अग्रवाल और क्रिएटिव डायरेक्टर संजय दुबे भी दर्शकों द्वारा कार्यक्रम को पसंद किए जाने पर बेहद उत्साहित हैं।
लखनऊ दूरदर्शन पर हर सोमवार और मंगलवार शाम 7.30 बजे यह कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है। इस कार्यक्रम को जहां लोकगीतों के पुरोधाओं ने खुलकर सराहा, वहीं उन्होंने उम्मीद भी जताई है कि 'माटी के बोल' उत्तर प्रदेश में लोकगीतों की फसल को सींचेगा और युवा पीढ़ी भी अपनी संस्कृति और उसकी मिठास से वाकिफ होगी।
इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हाल ही में जब मेगाऑडिशन राउंड में उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभागियों की भीड़ उमड़ पड़ी, तभी से इसकी सफलता की उम्मीद लगाई जाने लगी थी। निर्णायक मंडल में शामिल सुप्रिसद्ध अवधी लोक गायिका कुसुम वर्मा के मुताबिक, लोक संगीत एक ऐसी विधा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण की प्रवृत्ति रखती है, और समाज में व्याप्त रिवाजों और संस्कारों को अनोखा और आकर्षक रूप प्रदान करती है।
लोक गायन के क्षेत्र की बेहद चर्चित हस्तियां और इस कार्यक्रम के दो अन्य निर्णायक जया श्रीवास्तव एवं मनोज मिहिर के मुताबिक, इस तरह के लोकगीतों से जुड़े कार्यक्रमों को सिर्फ एक रियल्टी शो या प्रतियोगिता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इनका खुले दिल से प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि लोक गायन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के तौर पर मिलता रहे।
दरअसल, लोक कलाएं संस्कृति की अभिव्यक्ति हैं जो अनंत काल से लोगों के द्वारा गाई जाती रही हैं। खासतौर से भारतीय परिवेश में जहां 'कोस-कोस पे बदले पानी, कोस-कोस पे बानी' की कहावत प्रचलित है वहां लोकगीतों का संसार और भी व्यापक है।
भारतीय समाज में लोक संगीत जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न पहलुओं से जुड़ा हुआ है। लोकगीतों में जीवन के विभिन्न चरणों के लिए विभिन्न अभिव्यक्ति प्रदान करने की अद्भुत क्षमता है, जैसे जन्म संस्कार से लेकर नामकरण, मुंडन, अन्नप्राशन, जनेऊ, विवाह, वर खोजाई, तिलक, बन्ना-बन्नी, सुहाग, कन्यादान, भांवरगीत, विदाई आदि जीवन के हर पड़ाव के लिए लोकगीतों में अनेक विधाओं में गीत सुनने को मिल जाते हैं।
वहीं बुंदेलखंड का शौर्यगीत 'आल्हा' आज भी लोगों में जोश और उत्साह पैदा करने वाले गीत के रूप में विश्वविख्यात है। आल्हा की तान के बल पर बुंदेली कलाकार पूरी दुनिया में अपनी ओजपूर्ण शैली का डंका पीटते आए हैं। इसी तरह लोक गायन की अहम विधा बिरहा, जब श्रीकृष्ण विकल गोपियों को छोड़कर ब्रज से चले गए तो उनके दुख को अभिव्यक्त करने के लिए गाया गया।
वहीं काठ के घोड़े पर सवार और रंग-बिरंगे परिधानों से सजे कमर मटकाते कलाकार अपने खास देसी अंदाज में घोबिया गीत की याद दिलाते रहे हैं। इनके अलावा नौटंकी, करमा, पाईडंडा, ऋतु पर्व के गीत, फाग, कजरी, चैती हमारे जीवन से विभिन्न रूपों में जुड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पहली बार 'माटी के बोल' जैसा लोकगायन का एक बड़ा रियलिटी शो लाने वाले सिनेक्राफ्ट प्रोडक्शन के कार्यकारी निदेशक विवेक अग्रवाल और क्रिएटिव डायरेक्टर संजय दुबे भी दर्शकों द्वारा कार्यक्रम को पसंद किए जाने पर बेहद उत्साहित हैं।
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