भारतीय ज्योतिष में 12 राशियों में से एक मकर राशि में सूर्य के प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं। इसे हिंदुओं का बड़ा दिन भी कहा जाता है। मकर संक्रांति शिशिर ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन का प्रतीक है। इसे भगवान भास्कर की उपासना एवं स्नान-दान का पवित्रतम पर्व माना गया है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जायेगी|
मकर संक्रांति का पर्व जीवन में संकल्प लेने का दिन भी कहा गया है। संक्रांति यानी सम्यक क्रांति। इस दिन से सूर्य की कांति में परिवर्तन शुरू हो जाता है। वह दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हो जाता है। उत्तरायण से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। अंधकार घटने लगता है और प्रकाश में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है। जब प्रकृति शीत ऋतु के बाद वसंत के आने का इंतजार कर रही होती है, तो हमें भी अज्ञान के तिमिर से ज्ञान के प्रकाश की ओर मुड़ने और कदम तेज करने का मन बनाना चाहिए।
महाभारत युद्ध में अर्जुन के बाणों से बिंधे शर शय्या में लेटे भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन तक प्राण न छोड़ने का संकल्प लिया था। आज के दिन मन और इंद्रियों पर अंकुश लगाने के संकल्प के रूप में भी यह पर्व मनाया जाता है। लोग नदी, सरोवर या तीर्थ में स्नान करने जाते हैं। इस दिन तिल, गुड़ के व्यंजन, ऊनी वस्त्र, काले तिल आदि खाने और दान करने का विधान है। मकर संक्रांति ही एक ऐसा त्योहार है, जिसमें तिल का प्रयोग किया जाता है।
माघ मास में पड़ने वाला मकर संक्रांति का पर्व असम में बिहू कहलाता है। पंजाब में इसे लोहड़ी, बंगाल में संक्रांति और समस्त भारत में मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सर्दी का प्रकोप शांत करने के लिए सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस ऋतु में रोजाना प्रात:काल सूर्य को एक लोटा जल चढ़ाने से सारे रोग दूर हो जाते हैं। सूर्य का बारह राशियों से युक्त रथ आकाश के चारों ओर घूमता है। इसी के साथ ऋतुओं में परिवर्तन होता है।
मकर संक्रांति के पर्व पर गुड़, घी, खिचड़ी बनाने के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है। यह पर्व सदा 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। मकर संक्रांति सामाजिक समरसता का पर्व है। मान्यता है कि तिल, घी, गुड़ और काली उड़द की खिचड़ी का दान और उसका सेवन करने से शीत का प्रकोप शांत होता है। दक्षिण भारत में बालकों के विद्याध्ययन का पहला दिन मकर संक्रांति से शुरू कराया जाता है। प्राचीन रोम में इस दिन खजूर, अंजीर और शहद बांटने का उल्लेख मिलता है। ग्रीक के लोग वर-वधू को संतान-वृद्धि के लिए तिल से बने पकवान बांटते थे।
जम्मू-कश्मीर और पंजाब में यह पर्व लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है, जो संक्रांति के एक दिन पहले संपन्न होती है। सिंधी लोग इसे लाल लोही के नाम से जानते हैं। तमिलनाडु में लोग कृषि देवता के प्रति कृतज्ञता दर्शाने के लिए नई फसल के चावल और तिल के भोज्य पदार्थ से विधिपूर्वक पोंगल मनाते हैं। दक्षिण भारत में पोंगल, पश्चिम यूपी में संकरात, पूर्वी यूपी और बिहार में खिचड़ी के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है।
खिचड़ी का आयोजन मौसम के मिले-जुले रूप के स्वागत के तौर पर किया जाता है। दाल-चावल मिलाकर खिचड़ी बनाने का तर्क यह है कि चावल की तासीर ठंडी होती है और दाल की गरम। जिस तरह इस समय ऋतुओं में गरम और ठंडे का समायोजन होता है, ठीक उसी तरह का समायोजन आहार में भी किया जाता है, ताकि बदलते मौसम का स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़े। कई जगहों पर इस दिन मेले लगते हैं। पूर्वान्चल में इस दिन गोरखनाथ बाबा को खिचड़ी चढ़ाने का प्रचलन है।
इस दिन गंगा सागर में स्नान का माहात्म्य है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन देवता भी धरा पर उतर आते हैं। कहीं-कहीं काले कपड़े पहनने का भी रिवाज है।
मकर संक्रान्ति के दिन दान का महत्व:-
इस दिन दान का विशेष महत्व हैं। विद्वानो के मत से मकर संक्रांति के दिन धार्मिक साहित्य-पुस्तक इत्यादी धर्म स्थलों में दान किये जाते हैं। संक्रांति के दिन दान करने से प्राप्त होने वाले पुण्य का फल अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता हैं। इस लिये मकर संक्रांति के दिन यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल एवं गुड का दान करना शुभदायक माना गया हैं। तिल या तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान में दिये जा सकते हैं।
मकर संक्रांति पर स्नान का महत्व:-
मकर संक्रांन्ति के दिन यह मान्यता है कि इस दिन सूर्य के उत्तरायाण में प्रवेश करने से देवलोक में रात्रि समाप्त होती हैं और दिन की शुरूआत होती है। देवलोक का द्वारा जो सूर्य के दक्षिणायण होने से 6 महीने तक बंद होता हैं मंकर संक्रान्ति के दिन खुल जाता हैं। इस दिन दान इत्यादी पुण्य कर्म किये जाते हैं उनका शुभ फल प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति में स्नान एवं दान का भी विशेष महात्मय शास्त्रों में बताया गया है।
भारतीय धर्म ग्रंथों में स्नान का अर्थ शुद्धता एवं सात्विकता है। अत: स्नान को किसी भी शुभ कर्म करने से पहले किया जाता है। मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से सूर्य का सत्व एवं रज गुण बढ़ जाता है जो सूर्य की तेज किरणों से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। यह अलौकिक किरणें हमारे शरीर को ओज, बल और स्वास्थ्य प्रदान करे, अत: इन किरणों को ग्रहण करने हेतु तन-मन की शुद्धि के लिए पुण्यकाल में स्नान करने का विधान है।
सूर्योदय से कुछ घंटे पहले का समय पुण्य काल माना जाता है। पुण्य काल में स्नान करना अत्यंत पुण्य फलदायी माना गया है क्योंकि शुभ संयोगो पर जल में देवताओं एवं तीर्थों का वास होता है। इस लिये इन अवसरों में नदी अथवा सरोवर में स्नान करना शुभफलदायक होता हैं। मकर संक्रांन्ति पर सूर्योदय से पूर्व स्नान दुग्ध स्नान के समान फल देता है अत: इन अवसरों पर पूर्ण शुद्धि हेतु पुण्य काल में स्नान करने की परम्परा युगो से चली आ रही है।
मकर संक्रांति का पर्व जीवन में संकल्प लेने का दिन भी कहा गया है। संक्रांति यानी सम्यक क्रांति। इस दिन से सूर्य की कांति में परिवर्तन शुरू हो जाता है। वह दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हो जाता है। उत्तरायण से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। अंधकार घटने लगता है और प्रकाश में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है। जब प्रकृति शीत ऋतु के बाद वसंत के आने का इंतजार कर रही होती है, तो हमें भी अज्ञान के तिमिर से ज्ञान के प्रकाश की ओर मुड़ने और कदम तेज करने का मन बनाना चाहिए।
महाभारत युद्ध में अर्जुन के बाणों से बिंधे शर शय्या में लेटे भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन तक प्राण न छोड़ने का संकल्प लिया था। आज के दिन मन और इंद्रियों पर अंकुश लगाने के संकल्प के रूप में भी यह पर्व मनाया जाता है। लोग नदी, सरोवर या तीर्थ में स्नान करने जाते हैं। इस दिन तिल, गुड़ के व्यंजन, ऊनी वस्त्र, काले तिल आदि खाने और दान करने का विधान है। मकर संक्रांति ही एक ऐसा त्योहार है, जिसमें तिल का प्रयोग किया जाता है।
माघ मास में पड़ने वाला मकर संक्रांति का पर्व असम में बिहू कहलाता है। पंजाब में इसे लोहड़ी, बंगाल में संक्रांति और समस्त भारत में मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सर्दी का प्रकोप शांत करने के लिए सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस ऋतु में रोजाना प्रात:काल सूर्य को एक लोटा जल चढ़ाने से सारे रोग दूर हो जाते हैं। सूर्य का बारह राशियों से युक्त रथ आकाश के चारों ओर घूमता है। इसी के साथ ऋतुओं में परिवर्तन होता है।
मकर संक्रांति के पर्व पर गुड़, घी, खिचड़ी बनाने के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है। यह पर्व सदा 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। मकर संक्रांति सामाजिक समरसता का पर्व है। मान्यता है कि तिल, घी, गुड़ और काली उड़द की खिचड़ी का दान और उसका सेवन करने से शीत का प्रकोप शांत होता है। दक्षिण भारत में बालकों के विद्याध्ययन का पहला दिन मकर संक्रांति से शुरू कराया जाता है। प्राचीन रोम में इस दिन खजूर, अंजीर और शहद बांटने का उल्लेख मिलता है। ग्रीक के लोग वर-वधू को संतान-वृद्धि के लिए तिल से बने पकवान बांटते थे।
जम्मू-कश्मीर और पंजाब में यह पर्व लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है, जो संक्रांति के एक दिन पहले संपन्न होती है। सिंधी लोग इसे लाल लोही के नाम से जानते हैं। तमिलनाडु में लोग कृषि देवता के प्रति कृतज्ञता दर्शाने के लिए नई फसल के चावल और तिल के भोज्य पदार्थ से विधिपूर्वक पोंगल मनाते हैं। दक्षिण भारत में पोंगल, पश्चिम यूपी में संकरात, पूर्वी यूपी और बिहार में खिचड़ी के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है।
खिचड़ी का आयोजन मौसम के मिले-जुले रूप के स्वागत के तौर पर किया जाता है। दाल-चावल मिलाकर खिचड़ी बनाने का तर्क यह है कि चावल की तासीर ठंडी होती है और दाल की गरम। जिस तरह इस समय ऋतुओं में गरम और ठंडे का समायोजन होता है, ठीक उसी तरह का समायोजन आहार में भी किया जाता है, ताकि बदलते मौसम का स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़े। कई जगहों पर इस दिन मेले लगते हैं। पूर्वान्चल में इस दिन गोरखनाथ बाबा को खिचड़ी चढ़ाने का प्रचलन है।
इस दिन गंगा सागर में स्नान का माहात्म्य है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन देवता भी धरा पर उतर आते हैं। कहीं-कहीं काले कपड़े पहनने का भी रिवाज है।
मकर संक्रान्ति के दिन दान का महत्व:-
इस दिन दान का विशेष महत्व हैं। विद्वानो के मत से मकर संक्रांति के दिन धार्मिक साहित्य-पुस्तक इत्यादी धर्म स्थलों में दान किये जाते हैं। संक्रांति के दिन दान करने से प्राप्त होने वाले पुण्य का फल अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता हैं। इस लिये मकर संक्रांति के दिन यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल एवं गुड का दान करना शुभदायक माना गया हैं। तिल या तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान में दिये जा सकते हैं।
मकर संक्रांति पर स्नान का महत्व:-
मकर संक्रांन्ति के दिन यह मान्यता है कि इस दिन सूर्य के उत्तरायाण में प्रवेश करने से देवलोक में रात्रि समाप्त होती हैं और दिन की शुरूआत होती है। देवलोक का द्वारा जो सूर्य के दक्षिणायण होने से 6 महीने तक बंद होता हैं मंकर संक्रान्ति के दिन खुल जाता हैं। इस दिन दान इत्यादी पुण्य कर्म किये जाते हैं उनका शुभ फल प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति में स्नान एवं दान का भी विशेष महात्मय शास्त्रों में बताया गया है।
भारतीय धर्म ग्रंथों में स्नान का अर्थ शुद्धता एवं सात्विकता है। अत: स्नान को किसी भी शुभ कर्म करने से पहले किया जाता है। मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से सूर्य का सत्व एवं रज गुण बढ़ जाता है जो सूर्य की तेज किरणों से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। यह अलौकिक किरणें हमारे शरीर को ओज, बल और स्वास्थ्य प्रदान करे, अत: इन किरणों को ग्रहण करने हेतु तन-मन की शुद्धि के लिए पुण्यकाल में स्नान करने का विधान है।
सूर्योदय से कुछ घंटे पहले का समय पुण्य काल माना जाता है। पुण्य काल में स्नान करना अत्यंत पुण्य फलदायी माना गया है क्योंकि शुभ संयोगो पर जल में देवताओं एवं तीर्थों का वास होता है। इस लिये इन अवसरों में नदी अथवा सरोवर में स्नान करना शुभफलदायक होता हैं। मकर संक्रांन्ति पर सूर्योदय से पूर्व स्नान दुग्ध स्नान के समान फल देता है अत: इन अवसरों पर पूर्ण शुद्धि हेतु पुण्य काल में स्नान करने की परम्परा युगो से चली आ रही है।
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