लोकसभा चुनाव की घोषणा में अभी भले ही तीन-चार महीने की देरी हो, मगर सर्वाधिक सीटों वाले उत्तर प्रदेश में चुनावी हलचल तेज हो गई है। बड़े राजनीतिक दलों की रैलियों से चुनावी बिगुल बजने लगा है। रैलियों की होड़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) सबसे आगे है। एक ओर जहां भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कई रैलियां की हैं, वहीं सपा प्रमुख ने भी अपना दम दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अभी एक ही रैली की है, पर इसमें जुटे लोगों की भीड़ ने पूर्व में आयोजित रैलियों को पीछे छोड़ दिया। प्रदेश में होने वाली रैलियों में कांग्रेस भी पीछे नहीं है, पर भीड़ के लिहाज से उसकी रैलियां अपना खास असर नहीं छोड़ पाई हैं।
सूबे में राजनीतिक हाशिए पर पड़ी भाजपा ने पिछले साल सितंबर महीने से ही रैलियों की शुरुआत कर चुकी है। मोदी की इन रैलियों को भाजपा नेतृत्व ने 'विजय शंखनाद' नाम दिया। कानपुर में मोदी की पहली रैली आयोजित की गई। रैली आयोजन स्थल के लिए प्रशासनिक अनुमति को लेकर छिड़े विवाद ने ही इस रैली के प्रचार का काम किया। मोदी की इस रैली में जुटी भीड़ ने मानो भाजपा में नई जान फूंकने का काम किया। चंद रोज बाद ही बुंदेलखंड के झांसी में मोदी ने दूसरी रैली कर विरोधी दलों को चुनावी मैदान तैयार करने को मजबूर कर दिया।
भाजपा ने एक ओर जहां पूर्वाचल के बहराइच में चुनावी हुंकार भरी तो दूसरी ओर पश्चिम में आगरा में भी मोदी ने बदलाव की बयार बहाने का प्रयास किया। आगरा में खराब मौसम के बाद भी रैली ग्राउंड से लेकर काफी दूर तक भाजपा का रंग दिखा। इस रैली की खासियत रही कि मंच पर जिस कुर्सी पर मोदी बैठे थे, उसे खरीदने की लोगों में होड़ मच गई। मामूली कुर्सी की कीमत लाखों में पहुंच गई, मगर कुर्सी के मालिक ने इसे बेचने से इनकार कर दिया। उनसे इच्छा जताई कि जीतने के बाद मोदी एक बार आकर फिर इसी कुर्सी पर बैठें।
भाजपा के इस आक्रामक रुख को कम करने के लिए समाजवादी पार्टी ने भी चुनावी जंग में ताल ठोंककर उतरने का फैसला लिया। कमान खुद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने संभाली। 28 अक्टूबर को पूर्वाचल के आजमगढ़ में 'देश बचाओ-देश बनाओ' रैली में भारी भीड़ जुटाकर पार्टी सपा प्रमुख ने चुनावी शंखनाद किया।
इसके चंद रोज बाद ही मुलायम और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पश्चिम के मैनपुरी में कई विकास योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करने के साथ ही बड़ी रैली आयोजित कर जनता से संवाद बनाया। इसके बाद सपा की रैलियों का भी सिलसिला चल पड़ा। भाजपा की ताबड़तोड़ रैलियों का जवाब सपा ने निराले अंदाज में दिया। पार्टी ने उसी दिन रैली आयोजित की जिस दिन भाजपा की रैली थी।
बरेली में मुलायम व मुख्यमंत्री अखिलेश ने 21 नवंबर को महारैली कर अपनी ताकत का अहसास कराया, वहीं ठीक उसी दिन आगरा में मोदी ने जनता को विकास का पाठ पढ़ाया। इसके चंद दिन बाद ही मुलायम सिंह यादव व मुख्यमंत्री ने बदायूं में रैली कर विपक्ष को चुनौती दी। इसके बाद सपा नेतृत्व ने मोदी का जवाब देने के लिए झांसी में रैली की। झांसी की यह रैली भीड़ के लिहाज से सपा की आजमगढ़ व बरेली की रैलियों से बड़ी थी। सपा ने एक बार फिर मोदी की गोरखपुर रैली के दिन 23 जनवरी को ही पूर्वाचल के ही दूसरे गढ़ वाराणसी में चुनावी शंखनाद किया।
चुनावी जमीन तैयार करने के लिए यूं तो कांग्रेस के 'युवराज' राहुल गांधी ने भी कई महीने पहले ही उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में रैलियां आयोजित कीं। राहुल इन रैलियों के आयोजन के केंद्र में 'खाद्य सुरक्षा विधेयक' को रखकर जनता के बीच कांग्रेस के 'मिशन 2014' का अहसास दिलाया। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने सबसे पहले पश्चिम के मुस्लिम इलाकों रामपुर और अलीगढ़ में रैलियां कीं। एक ही दिन में इन दोनों ही जगहों पर की गई रैलियों में कांग्रेस भाजपा व सपा के मुकाबले भीड़ जुटाने में पीछे रह गई।
इसी क्रम में एक ही दिन में बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के राठ और पूर्वाचल के देवरिया जिले के सलेमपुर में रैली आयोजित की गई। दोनों की जगह राहुल गांधी ने रैली की कमान संभाली, लेकिन यहां भी कांग्रेस भीड़ जुटाने में सफल नहीं रही।
प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले इस प्रदेश में भाजपा, सपा और कांग्रेस की रैलियों की आंधी के बीच बसपा ने अपने सधे हुए अंदाज में कदम रखा। लंबे इंतजार के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रैली का ऐलान किया। रैली में प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश से लोगों को बुलाया गया। लखनऊ में रैली के लिए तीन दिन पहले से ही लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। रैली के दिन खराब मौसम के बावजूद यहां जुटी भीड़ ने विपक्षी दलों की रैलियों के रिकार्ड ध्वस्त कर दिए।
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