आपने नवरात्रि व गणेश चतुर्थी पर देखा होगा कि लोग देवी देवताओं की मूर्तियां बड़े ही आदर के साथ अपने घर लाते हैं और उसकी पूजा करते हैं बाद में किसी नदी या तालाब में ले जाकर विसर्जित कर देते हैं| क्या कभी आपने यह सोंचा है कि आखिर देवी देवताओं की प्रतिमा को लोग जल में ही क्यों विसर्जित करते हैं?
इसको लेकर हमारे ज्योतिषाचार्य विजय कुमार बताते हैं कि इसका उत्तर शास्त्रों में है। शास्त्रों के अनुसार, जल को ब्रह्म का स्वरुप माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि सृष्टि के आरंभ में और अंत में संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ जल ही जल होता है। जल बुद्घि और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इसके देवता गणेश जी हैं। जल में ही श्रीहरि का निवास है इसलिए वह नारायण भी कहलाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब देव प्रतिमाओं को जल में विसर्जित कर दिया जाता है तो देवी देवताओं का अंश मूर्ति से निकलकर वापस अपने लोक को चला जाता है यानी परम ब्रह्म में लीन हो जाता है। यही कारण है कि मूर्तियों और निर्माल को जल में विसर्जित किया जाता है।
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6 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी है ,लेकिन जिस सामग्री से जल प्रदूषित होता हो उसे जल में विसर्जित न करें ,और मिट्टी से ही निर्माण करें तो सबसे अच्छा!
अच्छी जानकारी
ऐसी जानकारियां मिलती रहनी चाहिये ताकि परम्पराओं से जुडे अंधविश्वासों को दूर किया जासके और उनके अर्थों को समझा जा सके.
धन्यवाद.
सत्य है..
सत्य है..
टिपण्णी करने के लिए आप सबका बहुत बहुत आभार
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