हमरे अंगना मा फिर से आओ प्यारी गौरैया

कभी हमारे घरों को अपनी चीं..चीं से चहकने वाली गौरैया अब नहीं दिखाई देती है| इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे लेकिन आज वह स्थिति आ गई है कि कभी कभार ही घरों में देखेने को मिलती हैं| दोपहर के समय जब व्यक्ति थका हारा अपने घर में आराम करता था तो मिट्टी के घरों में गौरैया अपने बच्चों को दाना चुगाया करती थी, तो बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे। लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने तथा इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने के इरादे से यह आयोजन किया जाता है। यह दिवस पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। वैसे देखा जाए तो इस नन्ही गौरैया के विलुप्त होने का कारण मानव ही है। हमने तरक्की तो बहुत की लेकिन इस नन्हें पक्षी की तरक्की की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि जो दिवस हमें खुशी के रूप में मनाना चाहिए था, वो हम आज इसलिए मनाते हैं कि इनका अस्तित्व बचा रहे।

वक्त के साथ जमाना बदला और छप्पर के स्थान पर सीमेंट की छत आ गई। आवासों की बनावट ऐसी कि गौरैया के लिए घोंसला बनाना मुश्किल हो गया। एयरकंडीशनरों ने रोशनदान तो क्या खिड़कियां तक बन्द करवा दीं। गौरैया ग्रामीण परिवेश का प्रमुख पक्षी है, किन्तु गांवों में फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग के कारण गांवों में गौरैया की संख्या में कमी हो रही है। पहले घर-घर दिखने वाली इस गौरैया के संरक्षण अभियान में अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी जुड़ गए हैं। उन्होंने राज्य की जनता से गौरैया को लुप्त होने से बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपील की है।

उन्होंने गौरैया के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु वन विभाग से प्रदेश स्तर पर अभियान चलाने के लिए कहा है। प्रकृति ने सभी वनस्पतियों और प्राणियों के लिए विशिष्ट भूमिका निर्धारित की है। इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए।

गौरैया के संरक्षण में इंसानों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आवास की छत, बरामदे अथवा किसी खुले स्थान पर बाजरा या टूटे चावल डालने व उथले पात्र में जल रखने पर गौरैया को भोजन व पीने का जल मिलने के साथ-साथ स्नान हेतु जल भी उपलब्ध हो जाता है। बाजार से नेस्ट हाउस खरीद कर लटकाने अथवा आवास में बरामदे में एक कोने में जूते के डिब्बे के बीच लगभग चार से.मी. व्यास का छेद कर लटकाने पर गौरैया इनमें अपना घांेसला बना लेती है। सिर्फ एक दिन नहीं हमें हर दिन जतन करना होगा गौरैया को बचाने के लिए।

गौरैया महज एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है। बस इनके लिए हमें थोड़ी मेहनत रोज करनी होगी। छत पर किसी खुली छावदार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में इनके लिए चावल और पीने के लिए साफ बर्तन में पानी रखना होगा। फिर देखिये रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।

अब रस्मों को भी अपने अंदाज में समेटने लगा इंसान

अब रस्मों को भी अपने अंदाज में समेटने लगा इंसानहिंदू रीति से होने वाले विवाह में मंडप सबसे अहम होता है। मंडप का मतलब महज आम के पत्ते लगा फूस का छप्पर भर नहीं होता, इसके साथ साक्षी होते हैं वे देवता जिन्हें आवाहन कर बुलाया जाता है और वह नए जीवन में प्रवेश करने वाले वर-वधू को अपना आशीर्वाद देते हैं और उनके वैवाहिक बंधन के साक्षी बनते हैं। अब बदले दौर में परंपराओं का जैसे-जैसे आधुनिकीकरण होता गया, वैसे-वैसे मंडप पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। इसी औपचारिकता के चलते अब रेडीमेड मंडप की मांग बढ़ गई है। हाईटेक और भागम-भाग वाली जिंदगी का हिस्सा बन चुका इंसान अब रस्मों को भी अपने अंदाज में समेटने लगा है।

धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी की रस्मों की शुरुआत मंडप से होती है। इसके लिए पुरोहित दिन व समय निश्चित करते हैं। उचित समय पर गाड़े गए मंडप शादी होने के बाद शुभ मुहूर्त में ससम्मान विसर्जित होते हैं। मान्यता है कि शादी के शुभ मुहूर्त पर पुरोहित के आवाहन पर सभी देवता मंडप के नीचे विराजमान रहते हैं और वैवाहिक जोड़े के लिए सुखी वैवाहिक जीवन के द्वार खोलते हैं।

एक वक्त था, जब कन्यापक्ष के बीच मंडप को लेकर बेहद उत्सकुता और जिम्मेदारी का भाव रहता था। मंडप को इतनी अहयिमत दी जाती थी कि इसके लिए घर के बड़े-बजुर्ग पहले से ही तैयारियों में जुट जाते थे। ऐसी मान्यताएं समाज में प्रारंभ से मानी जा रही हैं। लेकिन वक्त के साथ आए बदलाव का असर है कि आज लोगों ने मंडप का दूसरा फार्मूला तैयार कर लिया है।

बढ़ती आबादी, सिकुड़ते मकान और सीमित जगहों के कारण मंडप कहीं मैरिज हॉल के किसी कोने में रेडिमेड तरीके से खड़ा किया जा रहा है, तो कहीं खुले मैदान में ऐसी जगह मंडप बनाया जा रहा है, जहां सिर्फ वर-वधू पक्ष के सीमित लोग ही मौजूद रह सकें और बाकी जगह शादी की दूसरी व्यवस्थाओं, स्टेज और कैटरिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही है। दरअसल, मंडप अब पीछे छूटता जा रहा है और शादी का सारा आकर्षण 'जयमाल' और डीजे तक सिमटता जा रहा है।

वहीं फेरों के लिए अब मंडप औपचारिकता भर रह गया है। शादी के अन्य इंतजामों के साथ-साथ टेंट वाले को मंडप का भी जिम्मा सौंप दिया जाता है, जिसके कारीगर आनन-फानन में मिनटों में मंडप तैयार करके चले जाते हैं। शादी के बाकी इंतजामों को लेकर भले ही कन्या पक्ष को चिंता हो, लेकिन आमतौर पर मंडप अब चिंता का विषय नहीं बनता। वहीं दहेज रहित विवाहों के समारोहों में तो सैकड़ों मंडप थोक के भाव एक साथ मंगाए जाते हैं और शादियां समाप्त होने के बाद सभी मंडप उठ जाते हैं।

परंपराओं से हो रहे खिलवाड़ पर पं. कृष्णदेव शुक्ल कहते हैं कि मंडप का महत्व लोग भूल रहे हैं और जाने-अनजाने में धार्मिक परंपराओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। इससे वैवाहिक जीवन में दुश्वारियां आ सकती हैं, लेकिन अतिव्यस्त जीवन शैली में समयाभाव के कारण लोग विकल्प तलाशने लगे हैं। शुक्ल के मुताबिक, रेडीमेड मंडपों का उपयोग परंपरा के लिहाज से ठीक नहीं है। खासतौर से जैसे-जैसे इसका व्यवसायीकरण हो रहा है, वैसे वैसे परंपपराएं पीछे छूटती जा रही हैं और मंडप भी खानापूर्ति का हिस्सा बनते जा रहे हैं।

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होलिका दहन 16 को, जानिए क्या है शुभ समय

होली का त्यौहार हमारी पौराणिक कथाओं में श्रद्धा विश्वास और भक्ति का त्यौहार माना गया है तथा साथ ही होली के दिन किये जाने वाले अद्‌भूत प्रयोगों से मानव अपने जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति भी पा सकता है। होली हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनायी जाती है तथा भद्रारहित समय में होली का दहन किया जाता हैं। इस बार होलिका दहन 16 मार्च दिन रविवार को है| आपको बता दें कि प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं| 

होलिका दहन में आहुतियाँ देना बहुत ही जरुरी माना गया है इसलिए याद रहे कि होलिका दहन में आहुतियाँ जरुर दें| होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि है|

पूजन विधि -

ध्यान रहे होलिका दहन से पहले होली की पूजा की जाती है| जिस वक्त आप होली की पूजा कर रहे हों उस समय आपका मुख पूर्व या उतर दिशा की ओर होना चाहिए उसके पश्चात निम्न सामग्रियों का प्रयोग करना चाहिए|

एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए| इसके अलावा नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है| इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल रख दें| 

होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका की पूजा करें| गोबर से बनाई गई ढाल की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख लें इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है|

होली – होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।

अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ ॥

होलिका दहन के पश्चात उसकी जो राख निकलती है, जिसे होली – भस्म कहा जाता है, उसे शरीर पर लगाना चाहि‌ए। होली की राख लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।

अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

ऐसा माना जाता है कि होली की जली हु‌ई राख घर में समृद्धि लाती है। साथ ही ऐसा करने से घर में शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।

शुभ मुहूर्त-

होली पूजन के पश्चात होलिका का दहन किया जाता है। यह दहन सदैव उस समय करना चाहि‌ए जब भद्रा लग्न न हो। ऐसी मान्यता है कि भद्रा लग्न में होलिका दहन करने से अशुभ परिणाम आते हैं, देश में विद्रोह, अराजकता आदि का माहौल पैदा होता है। इसी प्रकार चतुर्दशी, प्रतिपदा अथवा दिन में भी होलिका दहन करने का विधान नहीं है। होलिका दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहि‌ए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूसरी ओर होलिया का यह त्योहार न‌ई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है।

तो आइए जाने इस वर्ष क्या है शुभ मुहूर्त-

हमारे ज्योतिशाचर्य के मुताबिक 16 मार्च को रात 10 बजकर 27 मिनट पर होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त का शुभ मुहूर्त है। चौघडिय़ा के हिसाब से भी होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार का होलिका दहन भद्रा मुक्त रहेगा। सुबह 9 बजकर 45 मिनट पर भद्रा खत्म हो जाएगी। रात पूरी तरह से भद्रा मुक्त है।

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जानिए क्यों डालते हैं जलती होली में धान या गेंहूँ

होली बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन कहते है। होलिका दहन में एक परंपरा जो बरसों से चली आ रही है वह है जलती होली में नया अन्न या धान डालने की| क्या आप जानते हैं कि आखिर जलती होली में धान या नया अन्न क्यों डाला जाता है अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं|

आपको बता दें कि इस परंपरा का कारण हमारे देश का कृषि प्रधान होना है। होलिका के समय खेतों में गेहूं और चने की फसल आती है। ऐसा माना जाता है कि इस फसल के धान के कुछ भाग को होलिका में अर्पित करने पर यह धान सीधा नैवैद्य के रूप में भगवान तक पहुंचता है। होलिका में भगवान को याद करके डाली गई हर एक आहूति को हवन में अर्पित की गई आहूति के समान माना जाता है।

इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस तरह से नई फसल के धान को भगवान को नैवैद्य रूप में चढ़ा कर और फिर उसे घर में लाने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। इसलिए होलिका में धान डालने की परंपरा बनाई गई। आज भी हमारे देश के कई क्षेत्रों में इस परंपरा का अनिवार्य रूप से निर्वाह किया जाता है।

इसलिए याद रहे जब भी आप होलिका दहन में जाएँ तो अपने साथ धान या फिर नया अन्न जरुर लेकर जाएँ|

होली: प्रेम व उल्लास का प्रतीक

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। इस बार रंगो का यह त्यौहार 16 व 17 मार्च को पड़ रहा है| 

आखिर क्यों मनाई जाती है होली-

रंगों से भरा रंगीला त्योहार, बच्चे, वृद्ध, जवान, स्त्री-पुरुष सभी के ह्रदय में जोश, उत्साह, खुशी का संचार करने वाला पर्व है। इसके एक दिन पहले वाले सायंकाल के बाद भद्ररहित लग्न में होलिका दहन किया जाता है। इस अवसर पर लकडियां, घास-फूस, गोबर के बुरकलों का बडा सा ढेर लगाकर पूजन करके उसमें आग लगाई जाती है।

वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते है, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पडा। वैसे होलिकोत्सव को मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित है। कुछ लोग इसको अग्निदेव का पूजन मानते हैं, तो कुछ इसे नवसंम्बवत् को आरंभ तथा बंसतांमन का प्रतीक मानते हैं। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था। अतः इसे मंवादितिथि भी कहते हैं। 

एक कथा के अनुसार इस पर्व का संबंध प्रहलाद से है। हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए पर वह मारा नहीं। हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए हिरण्यकश्यपु ने इस वरदान का लाभ उठाकर लकडियों के ढेर में आग लगवाई।

फागुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है । इसी के साथ होली उत्सव मनाने की शुरु‌आत होती है। होलिका दहन की तैयारी भी यहाँ से आरंभ हो जाती है। इस पर्व को नवसंवत्सर का आगमन तथा वसंतागम के उपलक्ष्य में किया हु‌आ यज्ञ भी माना जाता है। वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ।

सबसे ज्यादा प्रचलित हिरण्यकश्यप की कथा है, जिसमें वह अपने पुत्र प्रहलाद को जलाने के लि‌ए बहनहोलिका को बुलाता है। जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठती हैं तो वह जल जाती है और भक्त प्रहलाद जीवित रह जाता है। तब से होली का यह त्योहार मनाया जाने लगा है।

होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है। कहा जाता है कि फागुन पूर्णिमा – होली के दिन जो लोग चित्त को एकाग्र करके हिंडोले (झूला) में झूलते हु‌ए भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं, वे निश्चय ही वैकुंठ को जाते हैं।

भविष्य पुराण के अनुसार नारदजी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा था कि हे राजन! फागुन पूर्णिमा – होली के दिन सभी लोगों को अभयदान देना चाहि‌ए, ताकि सारी प्रजा उल्लासपूर्वक हँसे और अट्टहास करते हु‌ए यह होली का त्योहार मना‌ए। इस दिन अट्टहास करने, किलकारियाँ भरने तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश होता है।

होली – होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।

अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ ॥

होलिका दहन-

होली पूजन के पश्चात होलिका का दहन किया जाता है। यह दहन सदैव उस समय करना चाहि‌ए जब भद्रा लग्न न हो। ऐसी मान्यता है कि भद्रा लग्न में होलिका दहन करने से अशुभ परिणाम आते हैं, देश में विद्रोह, अराजकता आदि का माहौल पैदा होता है। इसी प्रकार चतुर्दशी, प्रतिपदा अथवा दिन में भी होलिका दहन करने का विधान नहीं है। होलिका दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहि‌ए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूसरी ओर होलिया का यह त्योहार न‌ई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है।

होलिका दहन के पश्चात उसकी जो राख निकलती है, जिसे होली – भस्म कहा जाता है, उसे शरीर पर लगाना चाहि‌ए। होली की राख लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।

अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

ऐसा माना जाता है कि होली की जली हु‌ई राख घर में समृद्धि लाती है। साथ ही ऐसा करने से घर में शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।

दुनिया में होली के अनेकों रंग

रंगों का त्यौहार 'होली' का पर्व शुरु हो गया है| होलिका रुपी सामाजिक बुराई और आपसी द्वेष को जड़ से मिटाने का त्यौहार है 'होली'| यह त्यौहार सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में धूम-धाम से मनाया जाता है| ये जानकार आपको आश्चर्य होगा कि होली भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है| इस अवसर पर कई दिनों तक समारोह आयोजित किये जाते हैं और आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है|

पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में भारतीय परंपरा के अनुरूप होली मनाई जाती है| प्रवासी भारतीय दुनिया के जिन-जिन कोनों में जाकर बसे हैं वहां पर होली मनाने की परंपरा है| जिस तरह से भारत में कई प्रकार से होली मनाई जाती है ठीक वैसे ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अगल-अलग तरह से होली मनाने का प्रावधान है| कैरिबियाई देशों में लोग इस त्यौहार का बेसब्री से इन्तजार करते हैं| 

19वीं सदी के आखिरी और 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय लोग कैरिबियाई देश गए थे| इस दौरान गुआना और सुरिनाम जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय जा बसे, जिससे वहां की मिट्टी से भी भारतीय त्यौहारों और रस्मों-रिवाजों की महक आने लगी और लोग धीरे-धीरे इसके रंग में रंगने लगे| वैसे होली को लेकर गुआना में एक अलग ही क्रेज है| गुआना के गांवों में इस अवसर पर विशेष तरह के समारोहों का आयोजन होता है| यहां पर संगीत, नाच-गाना और सांस्कृतिक उत्सवों के जरिए होली मनाई जाती है| यही नहीं अन्य देशों में भी वैसे ही होली मनाई जाती है जैसे कि भारत में| 

इसके साथ ही इटली, फ्रांस और अमेरिका में भी होली की धूम होती है| इटली में लोग मूर्तियों का निर्माण करते हैं| इसके बाद इन मूर्तियों को रथ में रखकर जुलूस निकालते हैं| जब ये जुलूस मुख्य चौक पर पहुंचता है तो वहां रखी सूखी लकड़ियों को रथ में रखकर उसमे आग लगा दी जाती है| इस दौरान लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और नाच-गाना करते हैं| 

इसी तरह फ्रांस में घास से बनी मूर्ति को लोग पूरे शहर में गाजे-बाजे के साथ घूमाते हैं| इसके बाद एक निश्चित स्थान पर पहुंचने पर वह भद्दे शब्द बोलते हुए मूर्ति में आग लगा देते हैं| ऐसा कहा जाता है कि यहां के लोग जिस मूर्ति में आग लगाते हैं वह बुराई की देवी होती है जिसे वह जड़ से खत्म करने के लिए आग के हवाले करते हैं| जर्मनी में भी होली का क्रेज किसी अन्य देश से कम नहीं है| यहां पर होली कुछ अलग तरीके से मनाई जाती है| लोग पेड़ों को काटकर उसके आस-पास घास का ढेर लगा देते हैं| इसके बाद उसमे आग लगाकर परिक्रमा करते हैं| लोग एक-दूसरे के कपड़ों में ठप्पे लगाने के साथ रंग खेलते हैं| 

इस तरह होली का त्यौहार सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है| बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने वाली होली का त्यौहार हमारे संपूर्ण जीवन में रच बस गया है| इस पर्व पर रंग की तरंग में छाने वाली मस्ती वातावरण में आनंद भर देती है और दिल झूमकर इसके रंग में सराबोर हो जाता है|

होली के रंगो से लाल पीली हो गई तनीषा, देखें तस्वीरें

अभी हाल ही में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को सपोर्ट करते हुए दक्षिण भारतीय फिल्मों की अभिनेत्री तनीषा सिंह ने न्यूड फोटोशूट करवाया था अब तनीषा एक बार फिर अपने नए फोटोशूट से सुर्खियों में हैं| इस बार मौका खास है होली का| तनीषा होली के रंगो से लाल पीली हो गई हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, बीते दिन मुंबई में तनीषा ने होली के लिए स्पेशल फोटोशूट करवाया है। लाल और पीले रंग में रंगी हुई तनीषा अपनी क्लीवेज दिखाती नजर आ रही हैं। सफ़ेद ब्लाउज और शॉर्ट्स में अपनी हॉट न सेक्सी आदएं दिखा रही हैं।






इसी दिन पार्वती का गौना लेकर काशी आये थे बाबा विश्वनाथ

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है| इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है| इस बार रंगभरी एकादशी 12 मार्च दिन बुधवार को पड़ रही है| कहते हैं बाबा विश्वनाथ की आज्ञा बिना पत्ता तक नहीं हिलता। इसलिए रंगभरी एकादशी को बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार कर होली का पर्वकाल प्रारंभ हो जाता है | 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बाबा विश्वनाथ फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि के दिन मां पार्वती से विवाह रचाने के बाद फाल्गुन शुक्ल एकादशी पर गौना लेकर काशी आये थे| अवसर पर शिव परिवार की चल प्रतिमायें काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंगल वाध्ययंत्रो की ध्वनि के साथ अपने काशी क्षेत्र के भ्रमण पर अपनी जनता, भक्त, श्रद्धालुओं का यथोचित लेने व आशीर्वाद देने सपरिवार निकलते है|

वहीँ, इस बार रंगभरी एकादशी पर 12 मार्च को बाबा विश्वनाथ की दो प्रमुख आरतियों के समय में परिवर्तन कर दिया गया है। शाम की सप्तर्षि आरती निर्धारित समय से चार घंटा पहले ही हो जाएगी। रात की शृंगार-भोग आरती का भी समय बदल दिया गया है।

मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुशील कुमार मौर्य ने रंगभरी एकादशी के दिन 12 मार्च हो होने वाली बाबा की दो प्रमुख आरती के समय में बदलाव की सूचना जारी की है। इस दिन सप्तर्षि आरती शाम सात बजे की बजाय अपराह्न तीन बजे होगी। वहीं, रात 9.30 बजे होने वाली शृंगार भोग आरती शाम पांच बजे होगी। इसके बाद रात 11 बजे तक बाबा का सुसज्जित दरबार भक्तों के दर्शन के लिए खुला रहेगा।

मूवी रिव्यू : 'गुलाब गैंग'

कलाकार: माधुरी दीक्षित, जूही चावला
निर्देशक: सौमिक सेन 

मुंबई। सौमिक सेन निर्देशित फ़िल्म गुलाब गैंग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 8 मई तक रोक लगा दी थी। लेकिन फिर कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद ये फ़िल्म शुक्रवार को रिलीज हो गई। इस फ़िल्म में जूही और माधुरी बिल्कुल नए अवतार में नजर आयेगीं। यह फिल्म कथित रूप से उत्तर प्रदेश की सामाजिक कार्यकर्ता संपत पाल की जीवनी पर आधारित है। पाल ने अपने दम पर समाजिक बुराइयों से लड़ने वाली महिलाओं की फौज तैयार की जिसका नाम 'गुलाबी गैंग' है। लेकिन फिल्म के निर्देशक सौमिक सेन इस बात से इंकार करते हैं।

'गुलाब गैंग" में रज्जो (माधुरी दीक्षित) और सुमित्रा देवी (जूही चावला) के संघर्ष की कहानी है। रज्जो महिलाओं के हक़ के लिए लड़ती हैं। वो एक महिला आश्रम चलाती है। उसकी कोशिश होती है कि महिलाओं को अपने पांव पर खड़ा किया जाए। उनका एक समूह है जो महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाता है। धीरे धीरे अब रज्जो की पहचान बन चुकी है। जैसा होता है उसकी लोकप्रियता जैसे जैसे बढ़ती है उसके दुश्मन भी बनते जातें हैं। सुमित्रा देवी ऐसी राजनेता हैं जो अपने कुर्सी के लिए कुछ भी भी कर सकती है। जो रज्जो की बढ़ती लोकप्रियता का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहती है। यहीं शुरू होती हैं दोनों के बीच जंग। 

माधुरी दीक्षित का एक्शन अवतार देखने को मिला है। माधुरी अपने किरदार में पूरी तरह फिट बैठी है। वहीं जूही चावला ने कोई कमी नहीं रखी। कई सीन में जूही माधुरी से एक कदम आगे नजर आई है। दोनों एक्ट्रेस अपनी एक्टिंग के जरिए दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब हुई है। माधुरी और जूही केमिस्ट्री और नोकझोंक पर्दे पर अच्छी लगती है। मगर ज्यादा ड्रामा डालने की वजह से फिल्म प्लॉट से भटकी हुई नजर आती है। वहीं तनिष्ठा चटर्जी, प्रियंका बोस और दिव्या जगदाले ने भी अपने रोल को बखूबी निभाया है। एक निर्देशक के तौर पर सौमिक सेन ने इतनी शानदार स्टारकास्ट का सही इस्तेमाल नहीं कर पाए। इस तरह के सब्जेक्ट पर पहले फिल्में बन चुकी हैं। फिल्म के संवाद अच्छे हैं। फ़िल्म के कुछ सीन काफी मनोरंजक हैं।

मनुष्य ही नहीं पक्षी भी देते हैं तलाक!

अभी तक आपने केवल इंसानों में तलाक और बेवफाई की ख़बरें सुनी होगी लेकिन अभी जो खबर आ रही है वह बेहद हैरान कर देने वाली है| खबर के मुताबिक़ पक्षी भी अपने साथी को तलाक दे देते हैं इतना ही नहीं कई पक्षी तो ऐसे हैं जो मादा को रिझाने के लिए तरह-तरह की आवाजें निकालते हैं और यदि वह मादा उसकी अदा पर फ़िदा हो गई तो वह उसके साथ हो लेते हैं और अपने साथी का त्याग कर देते हैं| कुछ पक्षी कई से रिश्ते बनाने के शौकीन होते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में वाइल्ड लाइफ विभाग के प्रो. एचएसए याहया ने दशकों के शोध से कई नायाब चीजें पुस्तक में संजोई हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रो. एचएसए याहया गत 40 साल से पक्षियों पर शोध कार्य में लगे हुए हैं। खासकर वारबेट प्रजाति के पक्षी, खरमोर, नरकोंडम हॉर्न बिल व सफेद पंख वाली बतख पर। अभी हाल ही में उन्होंने अपनी उर्दू में लिखित पुस्तक गर्द-ओ-पेश में कई चिड़ियों के बारे में पूरा उल्लेख किया है। उनके मुताबिक़, सारस और आस्ट्रिया का पहाड़ी कौवा (रैबीन) एक ही जीवनसाथी के साथ पूरी उम्र काट देते हैं। नर हो या मादा, कोई अपनी जिंदगी में दूसरे को नहीं आने देता। 

इसके अलावा शोध में पाया गया कि बया पक्षी सबसे ज्यादा जोड़े बनाते हैं। नर पक्षी घोंसला अधूरा छोड़ देता है। बाकी का घोंसला जोड़ा बनने पर दोनों बनाते हैं। मादा बया को अच्छा नर मिल जाता है तो वह पहले वाले को छोड़ देती है। वहीँ, मोर व गुजरात में पाए जाने वाले खरमोर का जीवन सबसे जुदा होता है। यहां नर अपना जोड़ा बनाने के लिए उछलकूद करके खास आवाज निकालते हुए मादा को रिझाता है। मादा मोर इनकी अदा पर फिदा हो जाती है। यही वजह है कि मोर के साथ एक से अधिक मोरनियां रहती हैं| 

इसके अलावा शोध में यह भी पाया गया कि अमेरिकन मॉकिंग व‌र्ल्ड व पॉलीएंड्री ऐसी प्रजातियां हैं, जिसमें मादा एक से अधिक नर से संबंध बनाती है। व‌र्ल्ड ऑफ पैराडाइज की भी एक प्रजाति ऐसी ही है जो गलत साथी का चयन या फिर दुर्घटना में घायल होने पर भी नर या मादा पार्टनर बदल लेते हैं। इतना ही नहीं दूसरा नर अगर ज्यादा आकर्षक है तो भी मादा अपने पुराने साथी को छोड़ उसके साथ हो लेती है|

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महिला दिवस पर विशेष: वे महिलाएं जिन्होंने शुरुआत की नये भारत की

किसी भी राष्ट्र के विकास का आकलन उसके देश की महिलाओं से किया जाता है। इसलिए महिलाओं का विकास देश का विकास है। 8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन हम महिलाओं के अधिकारों उनके सम्मान की बात करतें हैं। महिलाओं को कभी अबला माना जाता था लेकिन आज वही महिलाएं तमाम चुनौतियों को दरकिनार कर इन जो मुकाम हासिल किया वह वास्तव में सराहनीय और प्रेरणा दायक है। आज महिलाएं पुरुषों से किसी बात में कम नहीं हैं। आज देश और दुनिया की कमान इन महिलाओं ने ही संभाल रखी हैं। यह महिलाएं आज भी देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत बन गईं। आज हम उन महिलाओं की बात करेंगें जो अपने अधिकारों और सम्मान को पाने के साथ-साथ दूसरों के लिए प्रेरणा का श्रोत बनी।

इंदिरा गांधी: भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इन्दिरा को उनका "गांधी" उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के पश्चात मिला था। इनके पितामह मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे।

प्रतिभा सिंह पाटिल: भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति । प्रतिभा पाटिल का जन्म 'जलगाँव' के 'नदगाँव' नामक ग्राम में 19 दिसम्बर, 1934 को हुआ था। इनके पिता का नाम 'नारायण राव पाटिल' था, जो पेशे से सरकारी वकील थे। इन्होने राजस्थान के गवर्नर के रूप में भी कार्य किया है।

सरोजनी नायडू: भारत की पहली महिला राजयपाल होने का गौरव सरोजनी नायडू को प्राप्त है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भू‍मिका निभाने वाली सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद में हुआ। प्रसिद्ध कवयित्री और भारत देश के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक थीं।

हरित कौर: पहली महिला एयरफोर्स पायलट हरिता कौर देवल ने एविएशन उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाईं थी। साल 1994 में वे देश की पहली महिला एयरफोर्स पायलट बनीं।

विजया लक्ष्मी पंडित - संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला अध्यक्षा बनीं भारत की। विजया भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाला नेहरू की बहन थीं। वो कैबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं। वर्ष 1937 में वो संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के लिए निर्वाचित हुईं और स्थानीय स्वशासन और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री के पद पर नियुक्त की गईं। वर्ष 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली वह विश्व की पहली महिला थीं। वे राज्यपाल और राजदूत जैसे कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहीं।

कल्पना चावला- अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला हैं। भारत की कल्पना चावला का जन्म करनाल, हरियाणा, में एक पंजाबी हिंदू भारतीय परिवार में पैदा हुआ था ।कल्पना चावाला की प्रथम उड़ान एस टी एस 87 कोलम्बिया (STS 87 Columbia) शटल से सम्पन्न हुई। इसकी अवधि 19 नवम्बर 1997 से 5 दिसम्बर 1997 थी। कल्पना की दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई। यह 16 दिन का अन्तरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसन्धान पर आधारित था। इस मिशन में अन्तरिक्ष यात्रियों ने 2 दिन काम किया था और 80 परिक्षण और प्रयोग सम्पन्न किये थे। लेकिन 01 फरवरी 2003 को कोल्म्बियाँ स्पेस शटल लेंडिंग से पहले ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया और कल्पना के साथ बाकी सभी 6 अन्तरिक्ष यात्रियों की मृत्यु हो गयी।

रीता फारिया: पूरा नाम रीता फारिया पॉवेल (1945) मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय और एशियाई मूल की महिला हैं। वे पहली भारतीय मिस वर्ल्ड हैं, जिन्होने चिकित्सा शास्त्र में विशेषज्ञता हासिल की।

सुष्मिता सेन: पहली भारतीय महिला जिसने मिस यूनिवर्स का ख़िताब पर कब्ज़ा किया बॉलीवुड। बॉलीवुड की अभिनेत्री हैं। इन्होंने 1994 में मिस इंडिया और ब्रह्माण्ड सुन्दरी का खिताब जीता था। मिस इंडिया स्पर्धा में इन्होंने ऐश्वर्या राय को हराया था।

किरन बेदी: भारतीय पुलिस सेवा की पहली वरिष्ठ महिला अधिकारी होने का गौरव किरन वेदी को प्राप्त है। इन्होने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं।

मीरा कुमार: मीरा कुमार देश की पहली महिला लोकसभा स्पीकर। अल्पसंख्यक होते हुए भी उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया और इस पद को हासिल किया। मीरा कुमार पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री जगजीवन राम की सुपुत्री हैं। मीरा कुमारी 1973 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुई। वे कई देशों में नियुक्त रहीं और बेहतर प्रशासक साबित हुई।

'क्वीन' एक लड़की के अधूरे सपनों को पूरा करने की दास्तान

प्रमुख कलाकार: कंगना रनौत, राजकुमार राव और लिजा हेडन।
निर्देशक: विकास बहल।
संगीतकार: अमित त्रिवेदी।

अभिनेत्री कंगना रनौत की फ़िल्म क्वीन शुक्रवार को रिलीज हो गई। इस फ़िल्म के द्वारा कंगना ने साबित कर दिया कि वो इस दौर की सबसे बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक हैं। वो किसी भी तरह की भूमिका को बखूबी निभा सकतीं हैं। फ़िल्म में कंगना रानौत का किरदार किसी का भी दिल जीत सकता है। बेशक कंगना की पिछली फिल्म रज्जो बॉक्स आफिस पर कहीं टिक ना पाई हो लेकिन इस रज्जो के किरदार को कंगना ने पर्दे पर पूरी ईमानदारी के साथ जीवंत किया। इस फ़िल्म को क्रिटिक्स ने भी काफी सराहा और कंगना की काफी तारीफ की। ये फ़िल्म कंगना की सारी फिल्मों से हट कर साबित होगी। 

'क्वीन' कहानी है दिल्ली के राजौरी गार्डन की रानी (कंगना रानौत) की एक बिंदास लड़की है। जिसके जीने का अंदाज काफी निराला है। रानी की शादी विजय (राजकुमार राव) से होने वाली है। रानी तमाम सपनों से हटकर अब अपने शादी के सपने देखने लगती है। उसका सपना होता है कि वो फ्रांस जा कर अपना हनीमून मनाये और इसके लिए उसने फ़्रांस के एम्सटर्डम में हनीमून के पैकेज की बुकिंग भी करा ली है। लेकिन विजय शादी से दो दिन पहले रानी को मिलने के लिए बुलाता है और उसे बताता है कि वो उससे शादी नहीं कर सकता। ये सुनकर एक पल को रानी सुन्न पड़ जाती है। उसके सारे सपने एक झटके में बिखर जातें हैं। फिर भी वो अपने आप को संभाल लेती है और अपने सपने पूरे करने के लिए वो अकेले ही हनीमून पर चली जाती है। इस फैसले में उसका परिवार भी उसका साथ देता है। वो फ़्रांस पहुँच जाती है। फ़्रांस पहुँच कर उसके तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है उसकी लाईफ काफी एडवेंचरस हो जाती है। रानी के सफ़र के कई सीन बड़े ही शानदार है। कहानी काफी हट के है। फ़िल्म देखते वक़्त ये नहीं सोचा जा सकता क्या सही ? क्या गलत? बस कंगना का किरदार असलियत के क़रीब लगता है और उसकी बेवफ़ूकी की हरकतों पर भी आपको उस किरदार से हमदर्दी होती है। इसके अलावा दादी का किरदार भी बहुत अच्छा है। 

रानी का किरदार निभा रही कंगना रानौत ने कमाल का अभिनय किया है। इस फ़िल्म में कंगना ने मिडल क्लास की लडकी का रोल निभाया है जो अपने किरदार से हमें यह सीख देती है कि कैसे किसी एक चले जाने से दूसरों के सपने नहीं टूटते, हमे सिखाती है की हम अपने सपनों को कैसे पूरा कर सकतें हैं। उनकी दोस्त के किरदार निभाने वाली लीज़ा हेडन भी पीछे नहीं रही हैं।राजकुमार राव का रोल बहुत ज़्यादा नहीं है मगर उन्होंने अच्छा अभिनय किया है। निर्देशक विकास बहाल ने फ़िल्म की कहानी को हकीकत का रूप देने की भरपूर कोशिश की है। एक महिला प्रधान फिल्म में पूरा मनोरंजन करते हुए बेहतरीन संदेश दे दिया है। फ़िल्म का संगीत भी ठीक-ठाक है।

अश्लील और द्विअर्थी होली गीतों से संस्कृति हो रही दूषित

एक समय था जब वसंत पंचमी के दिन ही होलिका स्थापित करने के बाद जोगीरा और होली गीतों की मदमस्त राग से वातावरण ओत-प्रोत हो जाता था। तब के होली गीतों में राग-विहाग, सुर लय ताल, साहित्य, विनम्रता, सौम्यता एवं संस्कारित संदेश हुआ करते थे, मगर अफसोस कि अब ऐसा नहीं है। 'होली खेले रघुबीरा अवध में..,' 'गौरा संग लिए शिवशंकर खेलत फाग..,' 'आज बिरज में होरी रे रसिया..,' जैसे कर्णप्रिय होली गीतों पर देर रात तक थिरकते लोग प्रेम एवं मस्ती के सागर में विभोर हो जाया करते थे। अब ऐसे मदमस्त गीत सुनाई नहीं देते। इनका स्थान ले लिया है अश्लील और द्विअर्थी गानों ने। 

होली आज अश्लीलता का पर्याय बन गई है। बीच में कुछ फिल्मी होली गीत भी आए जो लोगों की जुबान पर चढ़े तो आज तक नहीं उतरे। जैसे- फिल्म 'सिलसिला' का यह गीत 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे..' फिल्म 'मदर इंडिया' का गाना 'होली आई रे कन्हाई रंग बरसे..' और 'कोहिनूर' का गाना 'तन रंग लो जी, मन रंग लो जी' तथा फिल्म 'कटी पतंग' का गाना 'आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली'.. लेकिन आज के बदलते परिवेश में संस्कारित होली गीतों के मस्ती के सागर में अश्लीलता एवं फूहड़ता का ऐसा प्रदूषण फैल गया है कि इससे समाज का प्रबुद्ध वर्ग मर्माहत है। 

वरिष्ठ नागरिकों के मुताबिक आज की होली का स्वरूप तो आंखों से देखा नहीं जाता, गीत परिवार में सुनने लायक नहीं रहे। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए ये लोग कहते हैं कि सभी एक साथ मिलकर होली मनाते थे। बुजुर्गों का कहना है कि एक वक्त था जब वास्तव में होली दुश्मनी भुलाकर गले मिलने का पर्व था, अब तो होली के बहाने लोग दुश्मनी निकालने लगे हैं। 

पहले होली गीतों में देवर-भाभी संवाद-'अखियां त हउवे जैसे ठाकुर जी बुझालें नकिया सुगनवा के ठोर, अस मन करेला की छर देना छींट देतीं, लेइ लेत बबुआ बटोर' जैसे संवाद हुआ करते थे वहीं आज के परिवेश में 'धीरे से रंगवा डालू रे देवरा भीतरा लगेला पाला रे' तथा 'छोड़ब ना तो के पतरकी, चाहे चली लाठी भाला..' आदि बेसिर-पैर और द्विअर्थी संवादों से युक्त होली गीत संस्कृति को दूषित कर रहे हैं।

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होलाष्टक 8 मार्च से, जानिए इससे जुड़ी ख़ास बातें

होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है| होली शीत ऋतु के उपरांत बंसत के आगमन, चारों और रंग- बिरंगे फूलों का खिलना होली आने की ओर इशारा करता है| होली का त्योहर प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है| होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है| होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जा सकता है| “होलाष्टक” शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।

इस वर्ष होलाष्टक 8 मार्च से प्रारम्भ होकर 15 मार्च तक रहेंगे। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी| वहीँ, पौराणिक दृष्टि से प्रह्लाद का अधिग्रहण होने के कारण यह समय अशुभ माना गया है लेकिन पर्यावरण एवं भौतिक दृष्टि से पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद-दुखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वह चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्टग्रहों की अशुभ प्रभाव से क्षीण होने पर अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल से प्रदर्शित करता है।

होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है| जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है| जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है| होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है|

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पंचमढ़ी: खूबसूरती का अद्भुत नज़ारा

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित पंचमढ़ी मध्य भारत के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में से एक हैं। इसे सतपुड़ा की रानी के उपनाम से भी जाना जाता है। सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच समुद्र तल से 3550 फीट की ऊंचाई पर बसा है पंचमढ़ी। यहाँ चारो तरफ हरियाली ही हरियाली है। बहुत-सी नदियों और झरनो की कल कल करतीं आवाजें यहाँ शांत वतावरण की तन्द्रा को भंग करती सी प्रतीत होती है। यहाँ की खूबसूरती सैलानियों में मंत्रमुग्ध कर देती हैं। पंचमढ़ी घाटी की खोज 1857 में बंगाल लान्सर के कैप्टन जेम्स फोरसिथ ने की थी। इस स्थान को अंग्रेजों ने सेना की छावनी के रूप में विकसित किया। पंचमढ़ी में आज भी ब्रिटिश काल के अनेक चर्च और इमारतें देखी जा सकती हैं।

यहां पर्यटकों को आकर्षित करने की हर चीज मौजूद है। खूबसूरत वाटरफॉल्स, कलकल बहती नदी, सुन्दर घाटियां जैसे प्रकृतिक के अद्भुत सौन्दर्य है। इसके अलावा पंचमढ़ी का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। मान्यता है कि पचमढ़ी या पंचमढ़ी पांडवों की पांच गुफाओं से बना है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान ज्यादा समय यही बिताया था। पंचमढ़ी का नाम पाँच मढ़ियों या प्राचीन गुफाओं के कारण पंचमढ़ी पड़ा है। यहाँ महादेव पहाड़ी के शैलाश्रयों में शैलचित्रों का भण्डार मिला है। इनमें से अधिकतर शैलचित्र पाँचवी से आठवीं शताब्दी के हैं, किंतु सबसे प्राचीन चित्र दस हज़ार साल पहले के माने जाते हैं।

महादेव पर्वत शृंखलाओं में 5 मील (लगभग 8 कि.मी.) के घेरे में लगभग पचास शिलाश्रय चित्रित पाए गए हैं। इस स्थल की मुख्य गुफाएँ- इमली-खोह, बनियाबेरी, मोण्टेरोजा, डोरोथीडीप, जम्बूदीप, निम्बूभोज, लश्करिया खोह, भांडादेव आदि हैं। पंचमढ़ी के चित्रकारों ने मानव जीवन के सामान्य जन-जीवन को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है। इन गुफ़ाओं में शेर का आखेट, स्वस्तिक की पूजा, क्रीड़ा-नर्तन, बकरी, सितार वादक, गर्दभ मुँह वाला पुरुष, तंतुवाद्य का वादन करते पुरुष, दिव्यरथवाही, धनुर्धर तथा अनेक मानव व पशुओं की आकृतियाँ चित्रित की गई हैं। यहाँ की चित्रकारी की खास बात ये है कि ज्यादा चित्रकारी शिकार पर आधारित हैं। 

देखने योग्य 

सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क : वर्ष 981 में स्थापित सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क 524 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला है। यह पार्क असंख्य दुर्लभ पक्षियों का घर है। यहां बिसन, टाइगर, तेन्दुए और चार सींग वाले हिरन जसे जानवरों को देखा जा सकता है।

धूपगढ़ः यह सतपुड़ा रेंज का सबसे ऊंचा प्वाइंट है। इसे सनराइज और सनसेट प्वाइंट के नाम से भी जाना जाता है। 

चारुगढ़ः यह दूसरा सबसे ऊंचा प्वाइंट है। इसका धार्मिक महत्व भी है क्योंकि इसके शिखर पर एक शिव मंदिर स्थित है। 

पांडव गुफाएं: यहां प्राचीन कालीन पांच गुफाएं हैं। हिंदू कथाओं के अनुसार, महाभारत काल के दौरान यहां पांडवों ने आश्रय लिया था। गुफा के पास ही एक बेहद खूबसूरत गार्डन भी है।अब इन गुफाओं को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। सबसे साफ सुथरी और हवादार गुफा को द्रोपदी कुटी कहा जाता है जबकि सबसे अंधेरी गुफा भीम कोठरी के नाम से लोकप्रिय है। 
जलप्रपातः यहां कई झरने मौजूद हैं। इनमें से प्रमुखः 2800 फीट से अधिक ऊंचा सिल्वर फॉल या रजत प्रपात, बी-फॉल (मशहूर पिकनिक स्पॉट) , लिटिल फॉल, डचेस फॉल हैं। 

महादेव मंदिरः यह एक गुफा मंदिर है, जो खूबसूरत पेंटिंग्स के लिए प्रसिद्ध है। यह गुफा लगभग 30 मीटर लंबी है। 

अप्सरा विहार: पांडव गुफा के साथ ही अप्सरा विहार या परी ताल को मार्ग जाता है जहां पैदल चाल द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। यह तालाब एक छोटे झरने से बना है जो 30 फीट ऊंचा है।