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मतदान में नोटा के रूप में मिली इस ताकत का प्रभाव मतदाताओं पर साफ दिख भी रहा है। मतदाता इस बार अधिक संख्या में पोलिंग स्टेशन तक जाने को तैयार हैं। अब तक मतदाता इन बातों पर विचार करता था कि किन पार्टियों से बेदाग छवि के लोग हैं, ईमानदार और कर्मठ प्रत्याशी कौन है, संसद में वह हमारी बात को कैसे रखेगा। लेकिन किसी भी प्रत्याशी के इन मुद्दों पर खरा नहीं उतरने पर मतदाताओं की रूचि मतदान में खत्म होने लगी थी, जिससे मतदान प्रतिशत घटता था।
अब नोटा बटन ने उस वर्ग को मतदान की ओर आकर्षित किया है, जो कसौटी पर खरा न उतरने वाले प्रत्याशियों को देखकर मतदान ही करने नहीं जाते थे। सीतापुर की दोनों संसदीय सीट से दलबदलू एक-दूसरे को आमने-सामने की टक्कर दे रहे हैं। बार-बार पार्टियां बदलने वाले प्रत्याशियों का जनता में खासा विरोध है। अभी तक इन्हीं में से किसी एक को वोट देना मजबूरी बन जाती थी, लेकिन अब नोटा विकल्प से मतदाताओं की बाछें खिल गई हैं।
व्यंग्यकार कवि शांति शरण मिश्र इस पर बेबाक टिप्पणी करते हैं। वह कहते हैं कि नोटा के विकल्प से मतदाता को पहली बार शक्ति मिली है। वह दागदार बाहुबलियों को नकार देगा जो दागी प्रत्याशी और उनको प्रत्याशी बनाने वाली पार्टी दोनों को आईना दिखाएगा यानी 'जैसी तेरी सूरत वैसा मेरा जवाब।' उन्होंने कहा कि यह राजनीतिज्ञों को सचेत करेगा कि वे सुधरें और स्वच्छ छवि के प्रत्याशी चुनाव में उतारें जिससे लोकतंत्र मजबूत हो। उनका यह भी कहना है कि नोटा के वोटों की गणना भी की जानी चाहिए।
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