45 के हुए अजय देवगन, जानिए उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें

फिल्म 'फूल और कांटे' से बॉलीवुड में एंट्री कर कामयाबी की चमक बरकरार रखने वाले फिल्मस्टार अजय देवगन आज 45 साल के हो गये हैं| अपनी आँखों से सब कुछ बयान कर देने वाले अजय बिन किसी हंगामे के दर्शकों के आज भी चेहते स्टार हैं|

फ़िल्मी दुनिया के स्टार अजय देवगन का असली नाम विशाल देवगन है| उनका जन्म दिल्ली में 2 अप्रैल, 1969 को हुआ था| अजय के पिता वीरू देवगन हिंदी फिल्मों के नामी स्टंटमैन थे, जबकि उनकी मां वीना देवगन ने एक-दो फिल्मों का निर्माण किया था| बचपन से ही पिता के साथ सेट्स पर जाते-जाते अजय ने भी फिल्मी दुनिया में आने का मन बना लिया| उन्होंने मुंबई में अपनी पढ़ाई पूरी की|

अजय ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1991 में फिल्म 'फूल और कांटे' से की थी| अपनी पहली फिल्म के लिए उन्होंने 'बेस्ट मेल डेब्यू' का फिल्मफेयर अवॉर्ड हासिल किया| इसके बाद उन्होंने वर्ष 1992 में “जिगर” फिल्म में काम किया जो एक हिट फिल्म साबित हुई| वर्ष 1994 तो अजय देवगन के लिए सबसे अच्छा साल साबित हुआ| इस वर्ष अजय देवगन ने तीन हिट फिल्में दीं, जिनमें 'दिलवाले', 'सुहाग' और 'दिलजले' शामिल थीं| वर्ष 1999 में उन्होंने 'प्यार तो होना ही था' और 'जख्म' जैसी फिल्में की| “जख्म” के लिए उन्होंने पहली बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीता|

वर्ष 1995 में आई फिल्म “हलचल” में पहली बार काजोल और अजय की जोड़ी फ़िल्मी पर्दे पर नज़र आई| इस फिल्म के बाद दोनों ने एक साथ कई फिल्में की जो बेहद हिट रहीं जैसे ‘इश्क’, ‘प्यार तो होना ही था’, ‘दिल क्या करे’, ‘राजू चाचा’ और ‘यू मी और हम’|

फ़िल्मी पर्दे पर एक-दूसरे का साथ निभाते-निभाते काजोल और अजय इतने नज़दीक आ गये कि वर्ष 1999 में दोनों ने शादी कर ली| कहा जा सकता है की शादी के बाद का समय अजय के लिए खुशियां लेकर आया| उनके लिए वर्ष 2010 सफल रहा| 'गोलमाल 3', 'राजनीति', 'ऑल द बेस्ट', 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई' जैसी फिल्मों ने उन्हें 2010 का सबसे कमाऊ कलाकार बना दिया था|

जैसी तेरी सूरत, वैसा मेरा जवाब!

दागी, बागी, बाहुबली और भ्रष्टों के खिलाफ वोटिंग मशीन में नोटा (इनमें से कोई नहीं) की मिली शक्ति के कारण ऐसे दागी, बागी और दलबदलू प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हैं। चुनाव में पहली बार इस्तेमाल किए जा रहे 'राइट टू रिजेक्ट' की ताकत से मतदाता बेहद खुश हैं। इस ताकत के प्रयोग की मतदान में प्रबल संभावना है। नेताओं की हर चालों से ऊब चुका मतदाता इस अधिकार से प्रत्याशियों को सबक सिखा सकता है। माना जा रहा है कि राइट टू रिजेक्ट से वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा।

मतदान में नोटा के रूप में मिली इस ताकत का प्रभाव मतदाताओं पर साफ दिख भी रहा है। मतदाता इस बार अधिक संख्या में पोलिंग स्टेशन तक जाने को तैयार हैं। अब तक मतदाता इन बातों पर विचार करता था कि किन पार्टियों से बेदाग छवि के लोग हैं, ईमानदार और कर्मठ प्रत्याशी कौन है, संसद में वह हमारी बात को कैसे रखेगा। लेकिन किसी भी प्रत्याशी के इन मुद्दों पर खरा नहीं उतरने पर मतदाताओं की रूचि मतदान में खत्म होने लगी थी, जिससे मतदान प्रतिशत घटता था।

अब नोटा बटन ने उस वर्ग को मतदान की ओर आकर्षित किया है, जो कसौटी पर खरा न उतरने वाले प्रत्याशियों को देखकर मतदान ही करने नहीं जाते थे। सीतापुर की दोनों संसदीय सीट से दलबदलू एक-दूसरे को आमने-सामने की टक्कर दे रहे हैं। बार-बार पार्टियां बदलने वाले प्रत्याशियों का जनता में खासा विरोध है। अभी तक इन्हीं में से किसी एक को वोट देना मजबूरी बन जाती थी, लेकिन अब नोटा विकल्प से मतदाताओं की बाछें खिल गई हैं।

व्यंग्यकार कवि शांति शरण मिश्र इस पर बेबाक टिप्पणी करते हैं। वह कहते हैं कि नोटा के विकल्प से मतदाता को पहली बार शक्ति मिली है। वह दागदार बाहुबलियों को नकार देगा जो दागी प्रत्याशी और उनको प्रत्याशी बनाने वाली पार्टी दोनों को आईना दिखाएगा यानी 'जैसी तेरी सूरत वैसा मेरा जवाब।' उन्होंने कहा कि यह राजनीतिज्ञों को सचेत करेगा कि वे सुधरें और स्वच्छ छवि के प्रत्याशी चुनाव में उतारें जिससे लोकतंत्र मजबूत हो। उनका यह भी कहना है कि नोटा के वोटों की गणना भी की जानी चाहिए। 

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माँ भगवती की उपासना का पर्व है नवरात्रि

हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्तियों ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्तियों का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं। उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 31 मार्च से प्रारम्भ हैं|

नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। हिन्दू धर्मानुसार यह पर्व वर्ष में दो बार आता है। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की| इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है | जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।

नव दुर्गा-

श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इसके आलावा श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी का हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।

नवरात्रि व्रत की कथा-

नवरात्रि व्रत की कथा के बारे प्रचलित है कि पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्रह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या थी। अनाथ, प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करता था, उस समय सुमति भी नियम से वहाँ उपस्थित होती थी। एक दिन सुमति अपनी साखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मै किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा। पिता के इस प्रकार के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि ‘मैं आपकी कन्या हूँ। मै सब तरह से आधीन हूँ जैसी आप की इच्छा हो मैं वैसा ही करूंगी। रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो। होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है। मनुष्य न जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है, पर होता है वही है जो भाग्य विधाता ने लिखा है। अपनी कन्या के ऐसे कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राम्हण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयानक वन में कुशायुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।उस गरीब बालिका कि ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगी की, हे दीन ब्रम्हणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वरदान माँग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूँ। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्रह्याणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुईं। ऐसा ब्रम्हणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ। तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तेरे और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया।हे ब्रम्हाणी ! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हे मनोवांछित वस्तु दे रही हूँ। ब्राह्यणी बोली की अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मेरे पति के कोढ़ को दूर करो। उसके पति का शरीर भगवती की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया।